देश में कोरोना से मौत का आंकड़ा तीन लाख पार चला गया. अपने आप में यही डेटा बहुत डरावना है लेकिन कई एक्सपर्ट और रिपोर्ट कहती हैं कि ये डेटा असल मौतों से काफी कम है. उत्तर प्रदेश में मौत के डेटा के बारे में क्विंट ने तफ्तीश की तो ऐसा ही मामला नजर आता है.
कानपुर में कुछ तो गड़बड़ है
स्वास्थ्य विभाग जन्म-मृत्यु कार्यालय, कानपुर नगर निगम ने वर्ष 2019 के अप्रैल और मई महीने में क्रमशः 1527 और 1499 डेथ सर्टिफिकेट जारी किये थे. अगर 2019 मई के हर दिन का औसत निकाल ले तो प्रतिदिन लगभग 48.35 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए. इस हिसाब से 1 अप्रैल 2019 से 17 मई 2019 के बीच कार्यालय ने लगभग 2349 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए थे.
जब हम इस वर्ष 2021 में 1 अप्रैल से 17 मई तक का डाटा देखते हैं तो कार्यालय ने कुल 3551 डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिए हैं. यानी 2019 के इसी पीरियड से 1202 डेथ सर्टिफिकेट ज्यादा जारी किए गए हैं. अगर CMO के आंकड़े के मुताबिक इसमें 783 लोगों की मौत कोरोना से हुई है ,तब भी बाकी बची 419 मौतें. यानी जितनी मौतें कोरोना से हुई (783) उसकी 53.51% मौतें कैसे हुईं पता नहीं. कहीं कानपुर में कोरोना से अलग कोई और महामारी तो नहीं चल रही है?या यहां भी प्रशासन आंकड़ों के जादूगरी में लगा है.
अगर इसी कार्यालय द्वारा 2020 में जारी डेथ सर्टिफिकेट के आंकड़े देखते हैं तो लगता है कायाकल्प हो गया, क्योंकि 2020 अप्रैल,मई में क्रमशः 458 और 1443 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए थे. यानी 2019 अप्रैल और मई से 1125 मौतें कम हुई थी. आश्चर्य की बात है कि 2020 मेंं इन महीनों में करोना के कारण भी लोगों की मृत्यु हो रही थी. 2019 अप्रैल-मई की अपेक्षा 2020 अप्रैल-मई में मौतों में 37.17% की कमी आ गई. अगर सिर्फ अप्रैल 2019 और अप्रैल 2020 के बीच जारी डेथ सर्टिफिकेट पर ध्यान दें तो इन आंकड़ों के मुताबिक मौतों में 70% की कमी आ गई
2020 में अप्रैल और पूरे मई को मिलाकर 1901 डेथ सर्टिफिकेट जारी हुए. और 2021 अप्रैल और 17 मई तक 3551. यानी अप्रैल और मई के 17 दिनों में ही पिछले साल के मुकाबले 86% ज्यादा मौते हुईं. संख्या के हिसाब से 1450 ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. सवाल ये उठता है कि जब इसी दरम्यान CMO ऑफिस सिर्फ 783 मौतें स्वीकार कर रहा है तो बाकी की मौतें कैसे हो रही हैं. क्या कानपुर में कोरोना के साथ कोई और महामारी भी जारी है? 2019 के मुकाबले भी इस दौरान 17% ज्यादा मौतें हुई हैं. इसे दोबारा याद कर लीजिए कि ये सिर्फ 17 मई तक का हिसाब है. यानी पूरे महीने के हिसाब से संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी.
वाराणसी
इसी तरह वाराणसी निगम के आंकड़े के मुताबिक अप्रैल 2021 में 887 डेथ सर्टिफिकेट जबकि 1 मई से 16 मई के बीच 1265 डेथ सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं. CM ऑफिस के कोरोना से मौत के आंकड़े के मुताबिक वाराणसी में अप्रैल में 176 मौतें जबकि 1 मई से 20 मई के बीच 145 मौतें हुई है. यानी नगर निगम द्वारा जारी डेथ सर्टिफिकेट में अप्रैल से मई में तो 176% की वृद्धि हुई है (अगर मई में अबतक के आंकड़ों से पूरे महीने का आकलन करे तो) लेकिन सरकारी आंकड़ों में कोरोना से मौत में मात्र 27.7% की ही वृद्धि हुई है
हमने यहां दो शहरों के डेटा का विश्लेषण किया है लेकिन यूपी में मौत के डेटा में गड़बड़ी खबरें लगातार छप रही हैं. जरा उनपर भी नजर डालिए.
श्मशान में मंजर सरकारी आंकड़ों से भयावह है
दैनिक जागरण ने 30 अप्रैल को अपने कानपुर संस्करण में एक रिपोर्ट प्रकाशित किया. रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े के मुताबिक कानपुर में 17 अप्रैल से 29 अप्रैल के बीच 196 लोगों की मौत हुई जबकि नगर निगम के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह के आंकड़ों के मुताबिक 1044 लोगों की जान गई थी. इसमें भैरव घाट में 912 और भगवतदास घाट पर 132 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया. हालत इतनी बुरी थी कि शवों के अंतिम संस्कार के लिए एक-एक दिन का वेटिंग चल रहा था. भैरव घाट इलेक्ट्रिक शवदाहगृह में शवों की बढ़ती संख्या को देखते हुए 19 अप्रैल से लकड़ियों से भी अंतिम संस्कार कराया जा रहा है.
अमर उजाला ने भी अपने कानपुर संस्करण में छापा कि शहर में एक दिन में 476 शव का अंतिम संस्कार किया गया .लगातार पांचवें दिन घाटों पर जगह कम पड़ने के कारण रात 8 बजे तक गंगा किनारे रेत और पार्कों में चिता जलानी पड़ी.शवों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इलेक्ट्रिक शवदाहगृह में टोकन व्यवस्था भी शुरू करनी पड़ी. जबकि सरकारी आंकड़ों में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा मात्र 3 था. जहां सामान्य दिनों में घाटों पर 90 से 100 शवों का अंतिम संस्कार होता है वहां अब मात्र 3 कोरोना मौत के बाद 100+3 का जोड़ 476 कैसे पहुंच गया?
कोरोना से मौत पर सरकार से जूझता शिक्षक संघ
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने 12 अप्रैल को ही राज्य निर्वाचन आयोग को चिट्ठी लिखते हुए शिक्षकों के लिए कोरोना से सुरक्षा सुविधाओं की मांग की थी. उसके बाद 28 अप्रैल को चिट्ठी भेजी गयी. फिर से उसके बाद 29 अप्रैल को मुख्यमंत्री तथा राज्य निर्वाचन आयोग दोनों को चिट्ठी भेजकर पंचायत चुनाव को स्थगित करने की मांग की गई. तब तक उनके मुताबिक 706 शिक्षकों/कर्मचारियों की मौत ट्रेनिंग और वोटिंग के दौरान कोरोना के कारण हो चुकी थी, जिनकी सूची उन्होंने नाम, पद, विद्यालय, विकास क्षेत्र तथा जनपद के साथ उस चिट्ठी में लिखा था.
उसके बाद भी मतगणना नहीं रोका गया. अब शिक्षक संघ के मुताबिक कोरोना से मरने वाले शिक्षकों/कर्मचारियों की संख्या 1621 हो चुकी है लेकिन सरकार सिर्फ 3 मौत मान रही है.
सरकारी आंकड़ों: 'यहां सब शांति शांति है'
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों में तस्वीर इतनी भयावह नजर नहीं आती जितना राज्य के श्मशानों और नदियों के किनारे लगी भीड़ खुद बयां कर रही है. देश में सबसे ज्यादा पांच कोरोना केस वाले राज्यों में यूपी भी है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से 20 मई तक कोरोना के कारण उत्तर प्रदेश में 19,209 लोगों की मौत हुई है जबकि तमिलनाडु ,महाराष्ट्र ,कर्नाटक और दिल्ली में उससे कहीं ज्यादा मौतें. फिर इन राज्यों की पॉपुलेशन डेंसिटी और हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की तुलना उत्तर प्रदेश से करने पर लगता है कि उत्तर प्रदेश सरकार वाकई कमाल कर रही है.
कोरोना से पांच सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में कोरोना पीक के समय का टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (कुल टेस्ट में से पॉजिटिव का प्रतिशत) देखें तो फिर से बड़ी चौंकाने वाली नजर आती है. CERG के चेयरमैन ओंकार गोस्वामी के अनुसार 26 अप्रैल को जब उत्तर प्रदेश में कोरोना का पीक आया तो उस दिन उसकी पॉजिटिविटी रेट 19.3% थी, जो कि महाराष्ट्र के पीक वाले दिन से 9.7% कम ,कर्नाटक से 20.4% कम ,केरल से 10.4% कम, तमिलनाडु से 1.9% कम और भारत से 6% कम थी .
प्रयागराज के फाफा मऊ पुल से नीचे गंगा किनारे जहां तक देखिए, हजारों लाशें मिट्टी से बाहर नजर आती हैं. इनमें से कितनी मौतें कोरोना में हुईं नहीं मालूम. शायद ये बाहर आकर यही पूछ रही हैं हम किस कैटेगरी में हैं?
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