नोवेल कोरोना वायरस महामारी के बीच दुनिया के कई हिस्सों में इससे निपटने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल शुरू हो चुका है. हालांकि, इस बीच इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि COVID-19 वैक्सीन तक पहुंच के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच असमानता की बड़ी खाई है. यह मसला इतना गंभीर है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तक ने इसे लेकर भारी चिंता जताई है.
ब्लूमबर्ग की 18 जनवरी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ अपने नागरिकों को COVID-19 वैक्सीन की लगभग 24 मिलियन खुराक दे चुके हैं - जो दुनियाभर में दी गई खुराकों की आधे से ज्यादा हैं - जबकि बड़ी संख्या में ऐसे भी देश हैं, जहां अभी टीकाकरण शुरू तक नहीं हुआ है.
हालांकि, यह असमानता - वैक्सीन तक पहुंच रखने वाले और अभी भी उससे दूर - दोनों तरह के देशों के लिए खतरा मानी जा रही है क्योंकि इससे कोरोना वायरस के नए और ज्यादा खतरनाक स्ट्रेन के पैदा होने को बढ़ावा मिल सकता है. जिसके चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी आगे और मार पड़ सकती है.
दुनियाभर में अलग-अलग देश जिंदगी बचाने और कारोबारों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रभावी टीकाकरण पर निर्भर हैं. साथ ही, इस साल वर्ल्ड बैंक का 4 फीसदी ग्रोथ का अनुमान भी वैक्सीन के व्यापक प्रसार पर निर्भर करता है. ऐसे में COVID-19 के मामलों में बढ़ोतरी और वैक्सीन के वितरण में देरी से यह विस्तार महज 1.6 फीसदी तक ही सीमित हो सकता है.
WHO ने दी तीखी प्रतिक्रिया
इस मामले पर WHO के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा है कि कुछ देशों में COVID-19 वैक्सीन को पहले अपने ही लोगों को दिए जाने की प्रवृत्ति से वैक्सीन की न्यायसंगत सुलभता पर जोखिम खड़ा हो गया है.
घेबरेयेसस ने सोमवार को कार्यकारी बोर्ड को संबोधित करते हुए कहा कि वैक्सीन से उम्मीद पैदा हुई है, लेकिन ये स्थिति, दुनिया में साधन-सम्पन्न और वंचितों के बीच मौजूद असमानता की दीवार में एक और ईंट बन गई है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी प्रमुख ने कहा कि कम से कम 49 अमीर देशों में अब तक कोरोना वायरस वैक्सीन की 39 मिलियन खुराक दी जा चुकी हैं, जबकि एक न्यूनतम आय वाले देश में सिर्फ 25 खुराक दी गई हैं.
घेबरेयेसस ने कहा, “मैं बिना लागलपेट के कहना चाहता हूं कि दुनिया एक विनाशकारी नैतिक विफलता के कगार पर है और इस विफलता की कीमत दुनिया के सबसे गरीब देशों में जिंदगियों और आजीविकाओं से चुकाई जाएगी.”
WHO चीफ ने ‘COVAX फैसिलिटी’ का भी जिक्र किया, जिसका टारगेट सभी देशों में COVID-19 वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करना है. उन्होंने कहा कि न्यायसंगत सुलभता की भाषा बोलते हुए भी कुछ देश और कंपनियां COVAX से हटते हुए द्विपक्षीय समझौतों को प्राथमिकता देने में लगे हैं, जिससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई है और लाइन तोड़कर आगे आने की कोशिश हो रही है, यह गलत है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)