बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव न लड़ने के लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के फैसले में चुनाव समीकरणों को बदलने की क्षमता है.
यह फैसला दिलचस्प है क्योंकि चिराग पासवान के नेतृत्व वाली LJP की, नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने की संभावना है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ नहीं, जबकि वो भी इसी गठबंधन का हिस्सा है.
दरअसल, LJP ने कहा है कि उसका मकसद बिहार में BJP की अगुवाई वाली सरकार है. इससे इन आरोपों को हवा मिल रही है कि JDU को सीमित करने के लिए LJP से जुड़े कदम की मास्टरमाइंड BJP है.
ऐसे में यहां ये सवाल अहम हो जाते हैं:
- LJP के पास कितना समर्थन है?
- इससे NDA पर कितना असर हो सकता है और क्या इससे RJD-कांग्रेस गठबंधन को फायदा हो सकता है?
- इस कदम से JDU पर क्या असर पड़ेगा?
चलिए, एक-एक करके इन सवालों के जवाब तलाशते हैं
LJP के पास कितना समर्थन है?
- LJP का मुख्य आधार दुसाध या पासवान दलित समुदाय है. अन्य दलित समुदायों की तुलना में उन्हें राजनीतिक रूप से ज्यादा प्रभावी माना जाता है. दुसाध बिहार में कुल आबादी के लगभग 5 से 6 फीसदी और राज्य की दलित आबादी के लगभग 30-40 फीसदी हैं.
- CVoter के हालिया सर्वे में कहा गया था कि 6.5 फीसदी लोगों ने कहा कि वे चाहते हैं कि LJP फाउंडर रामविलास पासवान मुख्यमंत्री बनें.
- बिहार के दक्षिणी और मध्य जिलों में अपेक्षाकृत मजबूत LJP की पूरे राज्य में मौजूदगी है, जो इसे एक खतरनाक स्पॉइलर और किसी भी गठन के लिए उपयोगी सहयोगी बनाती है.
- LJP ने पिछले दो चुनाव बड़े दलों के साथ गठबंधन में लड़े थे. यह 2010 में RJD के साथ गठबंधन में 75 सीटों पर लड़ी थी, और 2015 में BJP के साथ गठबंधन में 42 सीटों पर लड़ी थी.
- साल 2014 में यह पार्टी BJP की वफादार सहयोगी बन गई थी, ऐसे में मुसलमानों के बीच इसका समर्थन कम हो गया, जबकि 'अगड़ी' जातियों के बीच इसकी स्वीकार्यता मामूली रूप से बढ़ गई.
- LJP समर्थक दावा करते हैं कि जातिवादी सीमाओं को पार करते हुए चिराग पासवान युवाओं के बीच प्रभावी हैं.
NDA और UPA के समीकरणों पर असर
- कुछ गढ़ों को छोड़कर, LJP ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में नहीं दिखती. मगर जिन सीटों पर कड़ी लड़ाई है, वहां ये किसी का खेल जरूर बिगाड़ सकती है.
- CVoter सर्वे, NDA (LJP सहित) और RJD के नेतृत्व वाले UPA के बीच बिहार में वोट शेयर को लेकर लगभग 11 पर्सेंटेज प्वाइंट का अंतर दर्शाता है. ऐसे में अगर LJP का 5-6 फीसदी वोट सभी JDU और HAM सीटों पर NDA के खिलाफ जाता है, तो इससे RJD-कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन को मदद हो सकती है.
- LJP के कदम से BJP को भी फायदा हो सकता है. दरअसल LJP JDU और HAM उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने जा रही है, लेकिन BJP उम्मीदवारों को उसका समर्थन हासिल होगा, ऐसे में BJP का स्ट्राइक रेट उसके सहयोगियों की तुलना में बेहतर हो सकता है. अगर BJP और JDU लगभग बराबर (संख्या में) सीटों पर चुनाव लड़ती हैं और BJP ज्यादा सीटें जीत जाती है, तो वो मुख्यमंत्री पद या अहम विभागों पर मजबूती के साथ दावा कर पाएगी.
LJP के कदम से JDU पर क्या असर पड़ेगा?
- JDU के लिए, कई सीटों पर LJP की वजह से खेल बिगड़ने के खतरे के अलावा एक और खतरनाक स्थिति बन सकती है- हो सकता है कि जिन सीटों पर LJP और JDU की अच्छी टक्कर हो, वहां BJP रणनीतिक तौर पर LJP उम्मीदवारों का समर्थन करे.
- अगर BJP और JDU बराबर (संख्या में) सीटों पर लड़ती हैं, तो संभावित रूप से LJP के असर के चलते BJP बेहतर प्रदर्शन करेगी.
- BJP का कद मजबूत होने के बाद JDU के पास बस एक हथियार बचेगा कि वो RJD और कांग्रेस के साथ समझौता करने की धमकी दे, जैसा कि 2013 में उसके NDA से बाहर जाने के बाद हुआ था.
- लंबी अवधि में, नीतीश कुमार के कमजोर पड़ने से बिहार की राजनीति में मुख्य टक्कर BJP और RJD के बीच हो जाएगी.
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