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बिहार चुनाव में ‘परिणाम’ हैं, ‘जनादेश’ नहीं- योगेंद्र यादव

बिहार चुनाव रुझानों को लेकर क्विंट की खास चर्चा 

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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं, रुझानों में एनडीए एक बार फिर बिहार में सरकार बनाने जा रही है. इन्हीं रुझानों को लेकर क्विंट की खास चर्चा में नतीजों के तमाम पहलुओं पर बात हुई. स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि ये मुकाबला काफी नजदीक का है. फिलहाल वोटों की गिनती पूरी होना बाकी है. इसीलिए अभी सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि शुरुआत में जो कहा जा रहा था कि एनडीए की झोली में चुनाव पड़ा है, वो अब कांटे की टक्कर में बदला हुआ नजर आ रहा है.

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राष्ट्रीय राजनीति के लिए संकेत नहीं

यादव ने कहा कि महागठबंधन के लिए कांग्रेस एक बोझ साबित हुई है, लेकिन लेफ्ट पार्टियों के जो नतीजे और रुझान सामने आ रहे हैं वो काफी अच्छे हैं. कुल मिलाकर वो महागठबंधन के लिए बेहतर साबित हुए हैं. वहीं एनडीए गठबंधन के अंदर बीजेपी मजबूत है. योगेंद्र यादव ने कहा कि परिणाम तो मिल रहा है, लेकिन जनादेश क्या है ये नहीं नजर आ रहा है.

योगेंद्र यादव ने कहा कि क्या ये बिहार का परिणाम हमें कोई राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेंड दिखाता है, इसे लेकर मुझे संदेह है. इसीलिए मेरा कहना है कि परिणाम है, जनादेश नहीं है. राज्य सरकार तो बन जाएगी, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति के लिए संकेत नहीं हैं. 

लेफ्ट पार्टियों का महागठबंधन को फायदा

इस खास चर्चा में चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने लेफ्ट दलों को मिलने वाली सीटों को लेकर कहा कि, जिस वक्त महागठबंधन बन रहा था, उस वक्त लोगों के मन में ये अंदेशा नहीं था कि लेफ्ट कैसा प्रदर्शन करेगी. लेकिन जिस तरह लेफ्ट पार्टियां दिख रही हैं, उससे ये दिख रहा है कि जिन इलाकों में उनका वोट है वो अब भी बरकरार है. वहीं अगर कांग्रेस की बात करें तो वो गठबंधन को उस तरह का समर्थन नहीं दे पाई, जिसकी जरूरत थी.

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बीजेपी अपने खेल में सफल?

योगेंद्र यादव ने बिहार में बीजेपी को मिली बढ़त को लेकर कहा कि, जब चुनाव शुरू हुए तो बीजेपी को लगा कि हम तो जीत ही रहे हैं, लेकिन मौके का फायदा उठाकर नीतीश का कद कम कर दो. सभी को यही लग रहा था कि ये खेल बीजेपी को भारी पड़ सकता है, क्योंकि नीतीश को काटते-काटते वो उसी डाल को काट देंगे, जिस पर वो खुद बैठे हैं. अगर परिणाम यही रहते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी ने अपना दीर्घकालिक खेल बखूबी खेला है. पहले किसी सहयोगी के सहारे जाओ और बाद में उसके पंख काटो और उस पर कब्जा करो. ये बीजेपी ने शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में किया, पंजाब में अकाली दल के साथ कोशिश की, हरियाणा में लोकदल के साथ किया था. अगर यही परिणाम आए तो बीजेपी इस खेल में सफल मानी जाएगी.

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