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बिहार की सबसे बड़ी ट्रैजिडी क्या है?  

बिहार के विकास को समझना है तो बेरोजागरी का आंकड़ा देख सकते है

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वीडियो एडिटर- कनिष्क दांगी

क्या आपको पता है-

  • बेंगलुरु की तरह उत्तर भारत में वह कौन सा राज्य है जहां की राजधानी को गार्डन सिटी कहा जाता है?
  • सबसे गरीब राज्य कौन सा है?
  • सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक जिन्हें राज्य में आते हैं उनमें नौवें नंबर पर आने वाला राज्य कौन सा है?
  • ह्यूमन इंडेक्स पर सबसे आखिरी नंबर पर आने वाले राज्य कौन सा है?

हम बात कर रहे हैं बिहार की, पिछड़ेपन की त्रासदी की. पिछले 15 सालों में बेशक गरीबी घटी है. ये दर घटकर 10 फीसदी हो गई है लेकिन तब भी 33.7 यानी 34 फीसदी लोग गरीबी की रेखा के नीचे जी रहे हैं. कोरोना वायरस महामारी के दौर में इसी तरह दूसरा डेटा देखिए कि राज्य में डॉक्टर कितने हैं. इस मामले में भी राज्य आखिरी पायदान पर खड़ा है- करीब 43 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर है. जो राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है.

रोजगार के मामले में भी खस्ताहाल है बिहार

विकास को समझना है तो बेरोजागरी का आंकड़ा देख सकते है. इस आंकड़े के मामले में भी 2011-12 के मुकाबले करीब-करीब दोगुने की बढोतरी हुई है, शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों का ही ये हाल है.

कुछ आंकड़ों पर एक नजर

राज्य के कुछ सकारात्मक आंकड़ों पर नजर डालते हैं तो ये दिखता है कि बिहार की आर्थिक विकास की दर करीब 10.5 फीसदी है. ये राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है.

बिहार के विकास को समझना है तो बेरोजागरी का आंकड़ा देख सकते है

ऐसे में आंकड़ों के लिहाज से तो ये दिख रहा है कि बिहार तो बहुत तरक्की कर रहा है लेकिन ध्यान देना पर ये पता लगता है कि 10 परसेंट की आबादी वाले इस राज्य की भारत के पूरे आर्थिक बाजार में हिस्सेदारी सिर्फ 4 फीसदी की है, तो इतनी बड़ी आबादी का खर्चा कैसे झेला जा सकता है? यानी केंद्र से ज्यादा मदद चाहिए.

मानव विकास इंडेक्स में बिहार कहां है?

बिहार के विकास को समझना है तो बेरोजागरी का आंकड़ा देख सकते है

प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार कहां है?

बिहार के विकास को समझना है तो बेरोजागरी का आंकड़ा देख सकते है
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त्रासदी के पीछे के वो चेहरे कौन हैं?

हो सकता है कि इन त्रासदी के पीछे यानी इन आंकड़ों के पीछे जो इंसानी चेहरे हैं, वो सीधे नजर नहीं आते हो और ये डेटा बोरिंग दिखता हो. यही तो वजह है कि मीडिया में, नेताओं की रैलियों में चर्चा है उस पर जुमले ज्यादा हैं, दावे ज्यादा हैं, आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा हैं.बेरोजगारी, कोरोना, प्रवासी मजदूरों की बात वोटर करते दिख रहे हैं. नेता तो जुमले फेंक रहे हैं, जुमलों में कोई डिटेल नहीं होती है.

यहां पर बेरोजगारी की बात कर रहे हैं तो ये समझना जरूरी है कि कि राज्य में उद्योग लगाने की कई कोशिश हुईं लेकिन कामयाब नहीं हो पाई. बिहार को आगे बढ़ाएगा खेती, खेती से जुड़े उद्यम और सर्विस सेक्टर. इन चीजों पर ग्रोथ की गुंजाइश है लेकिन ज्यादा काम नहीं हो रहा है. यही कारण है कि हम कहते हैं कि खेती पर कब तक आश्रित रहोगे किसी औऱ काम में जाओ, ऐसे में किसी और राज्य में जाने का विकल्प दिखता है फिर दिखती है पलायन की ट्रेजेडी.

अभी की सरकार यह कह सकती है कि करीबन 15 वर्षों में बजट 5 गुना बढ़ गया है. सड़कें जो है वह करीबन ढाई गुना बढ़ गई हैं.वाहन रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा बताया जा सकता है लेकिन यह सब शहरी विकास का सिंबल कहिए या विकास के थोड़े-थोड़े सिंबल कहिए तो ये है. लेकिन ये नजर नहीं आता की 10 करोड़ की आबादी वाले राज्य में ज्यादातर लोग बेरोजगार क्यों हैं? बेरोजगारी को दूर करने के लिए राष्ट्रीय रणनीति के तौर पर कितने बड़े पैकेज की जरूरत है, इसपर कोई चर्चा नहीं है. नेताओं के अलग-अलग वादे हैं जुमले हैं. लेकिन असल मुद्दे वहीं हैं जो जनता पूछ रही है.

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