बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर के तौर पर शपथ ली है. फिलहाल, किसी को भी बिहार विधानसभा का स्थायी स्पीकर नियुक्त नहीं किया गया है ऐसे में जीतनराम मांझी ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
क्यों नियुक्त किया जाता है प्रोटेम स्पीकर?
प्रोटेम स्पीकर, चुनाव के बाद पहले सेशन में स्थायी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के चुने जाने तक संसद के सदन/ विधानसभा का संचालन करता है. सीधे कहें, तो यह एक अस्थायी स्पीकर होता है, जिन्हें कम वक्त के लिए चुना जाता है. अभी तक ज्यादातर मामलों में परंपरा रही है कि सदन के वरिष्ठतम सदस्यों में से किसी को यह जिम्मेदारी दी जाती है. जब नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है, तो प्रोटेम स्पीकर का पद खुद समाप्त हो जाता है.
हालांकि कई और मामलो में प्रोटेम स्पीकर की जरूरत होती है, जब सदन में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद एकसाथ खाली हों. निधन या दोनों के एकसाथ इस्तीफा देने की परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है.
प्रोटेम स्पीकर की शक्तियां
प्रोटेम शब्द की बात करें, तो यह लैटिन शब्द प्रो टैम्पोर से आया है, जिसका मतलब होता है- कुछ समय के लिए. प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति/राज्यपाल करता है.
प्रोटेम स्पीकर ही नवनिर्वाचित सांसदों/विधायकों को शपथ ग्रहण कराता है. इस कार्यक्रम की देख-रेख का जिम्मा उसी का होता है. सदन में जब तक नवनिर्वाचित सांसद/विधायक शपथ ग्रहण नहीं कर लेते, तब तक वे औपचारिक तौर पर सदन का हिस्सा नहीं होते हैं. इसलिए पहले सांसदों/विधायकों को शपथ दिलाई जाती है, जिसके बाद वे अपने बीच से अध्यक्ष का चयन करते हैं.
प्रोटेम स्पीकर वैसे किसी गलत प्रैक्टिस के जरिए वोट करने पर किसी सांसद/विधायक के वोट को डिसक्वालिफाई कर सकता है. इसके अलावा वोटों के टाई होने की स्थिति में वह अपने मत का इस्तेमाल फैसले के लिए कर सकता है
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