RSS के कई स्वयंसेवक खुल कर ये मान रहे हैं कि वो नीतीश कुमार की जेडीयू के खिलाफ LJP के उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं.
विनीत सिंह बिहार के आरा जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक युवा स्वयंसेवक हैं. वो बिहार विधानसभा चुनाव में भोजपुर इलाके के कई विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार कर रहे हैं.
आरा विधानसभा सीट पर वो बीजेपी उम्मीदवार अमरेंद्र प्रताप सिंह के लिए प्रचार कर रहे हैं जो 2015 में बहुत ही कम अंतर से RJD उम्मीदवार से हार गए थे. इस बार उनका मुकाबला महागठबंधन के CPI-ML उम्मीदवार कयामुद्दीन अंसारी से है.
हालांकि विनीत लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के उम्मीदवार पूर्व RSS प्रचारक राजेंद्र सिंह के लिए प्रचार करने रोहतास जिले के दिनारा भी गए थे.
राजेंद्र सिंह का मुकाबला JD(U) के जय कुमार सिंह से है जो नीतीश कुमार की सरकार में मंत्री थे. पहले चरण के चुनाव में दिनारा वो सीट बताई जा रही है जहां LJP के जीतने की सबसे ज्यादा संभावना है और विनीत सिंह राजेंद्र सिंह की जीत को लेकर आश्वस्त हैं. अगर ऐसा होता है तो ये उन सीटों में एक सीट होगी जहां JD(U) को LJP नुकसान पहुंचाएगी.
LJP के टिकट पर लड़ते BJP नेता
बिहार BJP के पूर्व उपाध्यक्ष और 2014 झारखंड चुनावों के लिए पार्टी के प्रभारी राजेंद्र सिंह उन कई नेताओं में शामिल हैं जो BJP और RSS से जुड़े हैं और LJP के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
ऐसे ज्यादातर उम्मीदवारों को BJP के चुनाव से पहले के सहयोगी दल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ उतारा गया है. LJP ने गठबंधन की छोटी पार्टियां जैसे हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं. LJP ने सिर्फ कुछ सीटों पर ही BJP के खिलाफ उम्मीदवार दिए हैं.
चिराग पासवान ने BJP और RSS की पृष्ठभूमि वाले कम से कम 20 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. एक RSS प्रचारक और संघ में अच्छी पैठ रखने के लिए जाने जाने वाले राजेंद्र सिंह इसके एक बड़े उदाहरण है लेकिन केवल वो अकेले ऐसे नहीं हैं.
कागजों पर पार्टी की ओर से निलंबित किए जाने और पार्टी नेताओं की ओर से सार्वजनिक आलोचना के बावजूद इनमें से ज्यादातर उम्मीदवारों ने अपनी मूल पार्टी से पूरी तरह रिश्ता खत्म नहीं किया है.
कटिहार की कड़वा सीट से LJP उम्मीदवार चंद्र भूषण ठाकुर का ही उदाहरण लीजिए. फेसबुक पेज पर उनका कवर फोटो अब भी बीजेपी के झंडे के साथ है जबकि ठीक नीचे वो LJP के टिकट पर वोट मांग रहे हैं. ठाकुर भी एक स्वयंसेवक हैं. RSS के यूनिफॉर्म में उनकी तस्वीर यहां है.
दरभंगा ग्रामीण से प्रदीप ठाकुर, महाराजगंज से देव रंजन सिंह और सासाराम से रामेश्वर चौरसिया भी LJP के उन उम्मीदवारों में शामिल हैं जिनकी पृष्ठभूमि RSS की रही है.
बेशक, ये नहीं कह सकते कि LJP की सूची में किसी दूसरी विचारधारा का कोई उम्मीदवार नहीं है. मुजफ्फरपुर जिले की बोचहां सीट से पार्टी ने अमर आजाद को टिकट दिया है जो पहले भीम आर्मी से जुड़े हुए थे. कुछ सीटों पर पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है.
हालांकि LJP की सूची में RSS पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को शामिल करना पूरे चुनाव का सबसे दिलचस्प पहलू है. एक पार्टी जिसने 2015 के चुनाव में NDA की हार के लिए RSS को जिम्मेदार ठहराया, वो LJP अब काफी लंबा सफर तय कर चुकी है.
RSS स्वयंसेवकों में लोकप्रिय हैं चिराग पासवान
विनीत सिंह पर फिर लौटते हैं. LJP के लिए उनका समर्थन सिर्फ एक सीट तक सीमित नहीं है या सिर्फ इसलिए नहीं है कि पूर्व RSS प्रचारक जैसे राजेंद्र सिंह पार्टी के टिकट पर लड़ रहे हैं. वो LJP सुप्रीमो चिराग पासवान का भी प्रशंसक है.
विनीत सिंह ने जमुई विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार श्रेयसी सिंह का खुलकर समर्थन करने के लिए चिराग पासवान की तारीफ करते हुए अपने फेसबुक पेज पर लिखा, “नेता हो तो आप जैसा”.
विनीत सिंह अकेले ऐसे नहीं हैं. RSS से जुड़े कई लोग चुनिंदा सीटों पर सक्रिय रूप से LJP उम्मीदवारों के लिए प्रचार कर रहे हैं.
RSS से जुड़े सुनील औरंगाबाद जिले में LJP उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर खुलेआम पोस्ट लिखा कि औरंगाबाद जिले की ओबरा और कुटुम्बा सीट पर LJP और BJP कार्यकर्ता LJP उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं.
औरंगाबाद जिले के RSS के एक स्वयंसेवक के मुताबिक जिले की ओबरा और कुटुम्बा सीट पर समर्पित BJP कार्यकर्ता LJP की मदद कर रहे हैं.
कार्यकर्ता ने ट्विटर पर लिखा कि “समर्पित BJP कार्यकर्ताओं की मदद से LJP दोनों सीटें जीत रही है”. ट्विटर पर उसे फॉलो करने वालों में BJP के पदाधिकारी भी हैं.
उनकी पसंद और नापसंद बहुत स्पष्ट है- ट्विटर पर वो चिराग पासवान, पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तारीफ करते हैं लेकिन अक्सर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ट्रोल करते हैं.
RSS से जुड़े कई लोग जो LJP के लिए प्रचार नहीं कर रहे हैं वो भी नीतीश कुमार और JD(U) के खिलाफ चिराग की लड़ाई में उनका हौसला बढ़ा रहे हैं.
बेशक, ये एक समान पैटर्न नहीं है. कई सीटों पर RSS स्वयंसेवक JD(U) के उम्मीदवारों के लिए भी प्रचार कर रहे हैं लेकिन जहां भी LJP उम्मीदवार BJP या RSS की पृष्ठभूमि का होता है तो प्राथमिकता साफ तौर पर उसकी तरफ ही होती है.
चिराग पासवान ने अपनी तरफ से RSS या BJP की पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट देकर ऐसे वर्ग को खुश रखने की कोशिश की है और अपने प्रचार के दौरान वो लगातार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ के पुल बांध रहे हैं. उन्होंने खुद को “पीएम मोदी का हनुमान” तक कह दिया.
ये बात विधानसभा क्षेत्रों के स्तर पर भी दिख रही है. उदाहरण के तौर पर दिनारा में राजेंद्र सिंह के लिए बनाया गया कैंपेन सॉन्ग चिराग पासवान, स्वर्गीय राम विलास पासवान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा के साथ शुरू होता है, न कि राज्य BJP के किसी नेता या सीएम नीतीश कुमार से.
RSS के कई स्वयंसेवक चाहते हैं कि बिहार में पहली बार BJP की सरकार बने. जैसा कि चिराग पासवान ने भी खुलकर कहा है कि वो भी यही चाहते हैं, इसलिए JD(U) उम्मीदवार वाली सीटों पर चिराग की पार्टी RSS के लोगों के लिए स्वाभाविक विकल्प बन गई है.
कई RSS स्वयंसेवकों का ये स्पष्ट तौर पर मानना है कि बिहार में पहली बार BJP की सरकार बनाने का समय आ गया है और पार्टी को अब नीतीश कुमार का सहारा नहीं बनना चाहिए.
चिराग पासवान, राज्य में BJP के नेतृत्व में सरकार बनाने की खुली घोषणा के कारण, JD(U) की ओर से लड़ी जा रही सीटों पर एक स्वाभाविक विकल्प बन गए हैं.
सुशील मोदी के खिलाफ नाराजगी
कुछ कैडर निजी बातचीत में उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी पर नीतीश कुमार का समर्थन करने और अपनी पार्टी के नेताओं को दरकिनार करने का आरोप लगाते हैं.
उदाहरण के तौर पर औरंगाबाद के सुनील का कहना है कि “सुशील मोदी को जो लड़ाई हम जैसे कार्यकर्ताओं की ओर से लड़नी चाहिए थी, वो चिराग पासवान लड़ रहे हैं. सभी समर्पित कार्यकर्ता LJP उम्मीदवारों का समर्थन करेंगे.”
एक पार्टी कार्यकर्ता ने कहा कि “ सुशील मोदी सभी सवर्ण BJP नेताओं को दरकिनार करने में लगे हैं. राजेंद्र सिंह और चंद्रभान ठाकुर को क्यों टिकट नहीं दिया गया? ”
सुशील मोदी के खिलाफ इस वर्ग का एक और आरोप ये है कि वो बड़े हिंदुत्व समर्थक नहीं हैं और गिरिराज सिंह जैसे किसी नेता को बिहार में BJP का चेहरा होना चाहिए.
2012-2013 के आस-पास भी जब BJP और JD(U) में तनाव बढ़ गया था, गिरिराज सिंह नीतीश कुमार पर लगातार निशाना साधते थे, सांप्रदायिक बयानबाजी करते थे और अक्सर सुशील मोदी को मध्यस्थता करनी पड़ती थी.
इसलिए LJP को BJP का समर्थन बिहार BJP में आंतरिक टकराव का एक परिणाम भी है.
जाति फैक्टर
इसका एक और महत्वपूर्ण पहलू है - जाति.
LJP की संघ में घुसपैठ को बिहार की सामाजिक न्याय आधारित पार्टियों को और भी कमजोर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा सकता है.
हालांकि संघ ने OBC में शामिल जातियों और दलितों तक पहुंच बना ली है लेकिन ये काफी हद तक अगड़ी जातियों के प्रभाव वाला संगठन ही है.
इस चुनाव में LJP अगड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावादेने वाले एक महत्वपूर्ण साधन के तौर पर उभरी है. LJP के 40फीसदी से ज्यादा उम्मीदवार अगड़ी जातियों से हैं जो BJP के बाद दूसरे नंबर पर और करीब-करीब कांग्रेस के बराबर है.इसकी तुलना में RJD और JD(U) दोनों ही पार्टियों में OBCनेताओं का ज्यादा प्रभाव है.
बिहार में पिछले तीन दशकों से अधिक समय से अगड़ी जाति का कोई मुख्यमंत्री नहीं था. पहले लालू यादव और फिर नीतीश कुमार ने राज्य की राजनीति में OBC के प्रभाव का प्रतिनिधित्व किया. इतने सालों में अगड़ी जाति ने लालू प्रसाद के खिलाफ नीतीश कुमार का समर्थन किया जो उनकी हितों को लेकर खुले माने जाते थे. नीतीश कुमार के नेतृत्व में मुख्य पदों पर अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व काफी बढ़ा.
हालांकि बिहार में अगड़ी जातियों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं खासकर 2017 में उत्तर प्रदेश में एक ठाकुर के मुख्यमंत्री बननेऔर बिहार से अगड़ी जाति के नेताओं जैसे रवि शंकर प्रसाद, राधा मोहन सिंह, गिरिराज सिंह और आरके सिंह के पीएम मोदी के नेतृत्व में केंद्र में मंत्री बनने के बाद.
अब, जहां तक अगड़ी जाति के प्रतिनिधित्व की बात है, चिराग पासवान नीतीश कुमार की तुलना और भी बेहतर डील दे रहे हैं. वो राज्य में एक BJP नेतृत्व वाली सरकार का वादा कर रहे हैं और वो भी एक ऐसी सरकार जिसपर शायद अगड़ी जाति का ही ज्यादा प्रभाव होगा.
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