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BJP के 1 लाख WhatsApp ग्रुप, RJD,JDU की कितनी बड़ी डिजिटल सेना

बिहार चुनाव में डिजिटल तैयारी के पर्दे के पीछे की वो कहानी जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.

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बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सोमवार को विधानसभा चुनाव को लेकर पहली डिजिटल रैली की. वर्चुअल रैली में उन्होंने अपनी सरकार के काम गिनाए और पहले की सरकारों पर निशाना साधा. नीतीश ही नहीं कांग्रेस, बीजेपी और आरजेडी सभी पार्टियां इस चुनावी डिजिटल वॉर में उतर चुकी हैं. इसी को देखते हुए हमने अलग-अलग राजनीतिक दल के नेताओं से बात की और पर्दे के पीछे की वो कहानी समझने की कोशिश की, जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.

बिहार पहली बार एक ऐसा चुनाव देखने जा रहा है, जहां डोर-टू-डोर कैंपेन से ज्यादा वर्चुअल रैली, मोबाइल और सोशल मीडिया का सहारा है. राजनीतिक दल आईटी सेल से लेकर सोशल मीडिया वॉर रूम के जरिए चुनावी जंग को तैयार है. कलरफुल कार्ड, शेर-ओ-शायरी से लेकर डायलॉगबाजी और तुकबंदी वाले स्लोगन की भरमार. नेता जी के डिजिटल पोस्टर. स्लो मोशन में दिल को छूने वाले वीडियोज. 

ये सब तो आपको दिख रहा है, लेकिन इस पूरी फिल्म या कहें प्रचार के पीछे क्या-क्या और कैसे हो रहा है वो भी तो जान लीजिए.

सोशल मीडिया के जरिए जनता से लाइक के साथ वोट बटोरने की कोशिश कैसे की जा रही है, कितने सिपाही इस डिजिटल वॉर में लगे हैं. चलिए एक-एक कर बताते हैं.

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आत्मनिर्भर बीजेपी

बात सबसे पहले दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी की. हमने बिहार बीजेपी के IT सेल और सोशल मीडिया डिपार्टमेंट हेड मनन कृष्णन से जब बात की तो हमें पता चला कि बिहार चुनाव के लिए बीजेपी इस बार अटैकिंग मोड नहीं, बल्कि अपने काम को लोगों तक पहुंचाने में लगी है.

इसके लिए बीजेपी ने एक लाख से ज्यादा Whatsapp ग्रुप बनाए हैं. हर whatsapp ग्रुप में 256 लोग ऐड किए जा सकते हैं. मनन बताते हैं कि हर ग्रुप में कम से कम 230-240 लोग हैं. मतलब 2 करोड़ से भी ज्यादा लोगों तक सिर्फ Whatsapp के जरिए बीजेपी बिहार में पहुंच चुकी है. इसे और आसान तरीके से समझते हैं. बिहार में करीब 72,000 बूथ हैं. बीजेपी ने करीब 9700-9800 शक्ति केंद्र बनाए हैं, हर शक्ति केंद्र पर 7-8 बूथ. हर शक्ति केंद्र पर एक प्रभारी और एक सह प्रभारी होंगे. साथ ही बीजेपी ने बिहार में 45 organisational district बनाए हैं. हर जिला में जिला स्तर पर 21 लोगों की टीम है. मतलब करीब 20 हजार से ज्यादा पार्टी वर्कर सोशल मीडिया के जरिए लोगों की सोच पर पार्टी के मैसेज का चोट कर रहे है.

यही नहीं मैसेजिंग का काम भी एक तीर से दो निशाने वाला है. बिहार बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव ने अभी हाल ही में- 'बीजेपी है तैयार- आत्मनिर्भर बिहार' का नया नारा भी दिया है. पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत कहा था, मतलब पहले से ही तैयार स्लोगन को 'वोकल फॉर लोकल' बनाया गया है. ताकि लोगों को स्लोगन याद रहे.

बिहार चुनाव में डिजिटल तैयारी के पर्दे के पीछे की वो कहानी जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.
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लालू की आरजेडी का डिजिटल अखाड़ा

अब बात करते हैं बिहार में स्लोगन, नारा, पंच लाइन के मास्टर कहे जाने वाले लालू यादव की पार्टी आरजेडी के डिजिटल अखाड़े की. आरजेडी के State Youth President और सोशल मीडिया पर नजर रखने वाले कारी सोहैब ऐसे तो अपनी पार्टी के स्ट्रैटेजी का पत्ता नहीं खोलते हैं, लेकिन बताते हैं कि आरजेडी का यूथ विंग बहुत जल्द 25 लाख लोगों तक Whatsapp के जरिए पहुंच जाएगा. ये बात सिर्फ यूथ आरजेडी की हो रही है, आरजेडी की नहीं.

नाम ना छापने की शर्त पर आरजेडी के बड़े नेता बताते हैं कि हमारे वॉर रूम में हर एक मुद्दे को बारीकी से रिसर्च किया जाता है और उसी हिसाब से संदेश तैयार किए जाते हैं. कंटेट, रिसर्च, डिजाइन, टेक्निकल टीम है.

पार्टी के सोशल मीडिया वॉर रूम से जुड़े एक और वर्कर बताते हैं कि जिस तरह से तेजस्वी यादव ने लॉकडाउन में सोशल मीडिया के जरिए लोगों की मदद की है, वो युवाओं को उनसे जोड़ रहा है. इस दो महीने में हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फॉलोवर तेजी से बढ़े हैं.

इसके अलावा युवा राष्ट्रीय जनता दल ने हर जिले में सोशल मीडिया प्रभारी बनाया है. हर जिले में नेताओं-कार्यकर्ताओं से समन्वय के लिए पंचायत, प्रखंड, जिला और प्रदेश स्तर पर अलग-अलग वाट्सएप ग्रुप बनाए गए हैं.

बिहार चुनाव में डिजिटल तैयारी के पर्दे के पीछे की वो कहानी जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.

कारी सोहैब कहते हैं कि हमारे पास बीजेपी की तरह पैसा नहीं है, लेकिन लोग हैं, हम अपने कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देकर तैयार कर चुके हैं. यही नहीं आरजेडी ने चुनाव से ठीक पहले बिहार के 38 जिलों का अलग-अलग वेरिफाइड ट्विटर पेज बनाया है. ताकी Whatsapp के साथ-साथ twitter पर मौजूद वोटर तक भी पहुंचा जा सके.

हालांकि बीजेपी इससे अलग सोचती है. बिहार बीजेपी के सोशल मीडिया टीम में काम कर रहे एक वर्कर बताते हैं कि बिहार में ट्विटर यूजर कम हैं. इसलिए वहां एनर्जी लगाने से बेहतर है कि फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जाए.

आरजेडी के स्लोगन लालू यादव से हटकर तेजस्वी केंद्रित हो गए हैं. जैसे तेज रफ्तार, तेजस्वी सरकार, बदलाव की छवि तेजस्वी. ये सब भी मिलेनियल, युवा इंटरनेट यूजर को देखते हुए प्लान किया गया है.
बिहार चुनाव में डिजिटल तैयारी के पर्दे के पीछे की वो कहानी जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.
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नीतीश के पास ‘डिजिटल और हाइटेक तीर’

नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड वर्चुअल मीटिंग और रैली के जरिए लगातार शिलान्यास और उद्घाटन कर रही है. जेडीयू के नेता और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी पार्टी की डिजिटल प्लानिंग पर काम कर रहे हैं. अशोक चौधरी बताते हैं,

पार्टी ने अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए jdulive.com लॉन्च किया है. इसके जरिए सीएम नीतीश कुमार के भाषण, यात्राओं की जानकारी और पॉजिटिव खबरें जनता तक पहुंचाई जाएगी.

जेडीयू डिजिटल प्रचार से ज्यादा हाइटेक प्रचार पर जोर दे रही है. 150 हाईटेक प्रचार रथ बने हैं. जिसमें दो बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन लगे हैं साथ ही साउंड सिस्टम. जो नीतीश कुमार के संदेश को लोगों तक पहुंचाएगी.

कांग्रेस कहां है?

कांग्रेस भी रेस में 'मैं भी हूं ना' वाले मोड में है. 'बिहार बदलो, सरकार बदलो' नारे के साथ सोशल मीडिया पर लगातार जेडीयू-बीजेपी सरकार की कमियां गिना रही है. कांग्रेस ने भी जनता तक पहुंचने के लिए डिजिटल कैंपेन का सहारा लेना शुरू कर दिया है. कांग्रेस, बिहार में 100 विधानसभा सीटों पर वर्चुअल सम्मेलन कर रही है, ‘बिहार क्रांति वर्चुअल महासम्मेलन’ 21 दिनों तक चलेगा. फेसबुक, YouTube, ट्विटर पर रैली लाइव होगी.

बिहार चुनाव में डिजिटल तैयारी के पर्दे के पीछे की वो कहानी जिसके बारे में शायद आपको पता न हो.

अगर बिहार की इन पार्टियों के सोशल मीडिया पर नजर डालेंगे तो आरजेडी सबसे आगे नजर आएगी. लेकिन नेता की बात करें तो नीतीश कुमार ट्विटर पर तेजस्वी से आगे नजर आते हैं तो फेसबुक पर कुछ फॉलोवर से पीछे.

अब फॉलोवर, लाइक, कमेंट और डिस्लाइक के खेल में एक बात तो साफ है कि इस डिजिटल वॉर में वोट की लड़ाई आसान नहीं होगी. चाहे कितना भी राजनीतिक दल सोशल मीडिया पर खुद का पलड़ा भारी दिखाएं, लेकिन जमीनी सच्चाई ये है कि बिहार न्यू डिजिटल इंडिया से बहुत दूर है. आज भी इंटनेट की स्पीड, स्मार्ट फोन की कमी, डिजिटल लिटरेसी जैसे मुद्दे बिहार को पिछड़े होने का एहसास दिलाते हैं. लेकिन इन सबके बीच वर्चुअल पॉलिटिक्स का आगाज हो चुका है. अब देखना है कि बिहार किसे फॉलो करता है और किसे डिस्लाइक.

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