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जोगी की पार्टी का वोट- साहू समाज पर फोकस, छत्तीसगढ़ में BJP ने कैसे पलटा बघेल का खेल?

Chhattisgarh Elections Result 2023: JCC का वोट शेयर 7.6% से घटकर 1.22% पर आ गया.

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Chhattisgarh Election Results 2023: छत्तीसगढ़ में कमल खिला है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है. इस अप्रत्याशित जीत के पीछे मोदी फैक्टर और महतारी वंदन योजना को अहम माना जा रहा है. वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कांग्रेस सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भांपने में नाकाम रहे. कांग्रेस के ज्यादातर मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा है. चलिए आपको बताते हैं कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कैसे बाजी पलट दी और कांग्रेस से कहां चूक हो गई.

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नतीजों पर एक नजर

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 54 सीटों पर कब्जा जमाया है. वहीं कांग्रेस के खाते में 35 सीटें आई हैं. गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) ने एक सीट जीती है.

अगर वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को 46 फीसदी वोट मिले हैं. 2018 के मुकाबले 13 फीसदी वोट शेयर बढ़ा है, जिसकी वजह से पार्टी को 39 सीटों का फायदा हुआ है. वहीं कांग्रेस के हिस्से में 42% वोट आए हैं. 2018 के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में महज 1 फीसदी की गिरावट हुई है. लेकिन पार्टी को 33 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा है.

JCC का वोट शेयर 7.6% से घटकर 1.22% पर आ गया

बहुजन समाज पार्टी (BSP) को 2 फीसदी वोट मिले है. 2018 के मुकाबले इसके वोट शेयर में करीब 2 फीसदी की गिरावट हुई है. बीएसपी ने पिछली बार 2 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार एक सीट भी नहीं मिली है.

वहीं जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCC) को भी भारी नुकसान हुआ है. 2018 में 7.6% वोट पाने वाली इस पार्टी को इस बार महज 1.22 फीसदी वोट ही मिले हैं. वहीं पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई है. पिछली बार JCC ने 5 सीटें जीती थी.

कांग्रेस की हार की क्या-क्या वजहें?

1- भूपेश सरकार के खिलाफ भारी एंटी इनकंबेंसी

भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ भारी एंटी इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर थी, जिसका अंदाजा पार्टी नहीं लगा पाई. सरकार अपनी जीत के प्रति आश्वस्त थी. एग्जिट पोल के आंकड़े भी इसी ओर इशारा कर रहे थे. लेकिन चुनाव नतीजों ने कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. बघेल सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी इतनी ज्यादा थी कि कई मंत्री और मौजूदा विधायक अपनी सीट नहीं बचा सके.

कांग्रेस ने 13 मंत्रियों को चुनावी मैदान में उतारा था, जिनमें से 9 हार गए हैं. कांग्रेस की हार इतनी करारी है कि डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. इसके साथ ही गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू भी अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे हैं.

बीजेपी ने बघेल सरकार के खिलाफ चुनाव में भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाया था. कथित महादेव बेटिंग ऐप घोटाला हो या फिर कोयला घोटाला- पीएम मोदी से लेकर अमित शाह, जेपी नड्डा सहित स्थानीय नेताओं ने कांग्रेस को जमकर घेरा और जनता के बीच बघेल सरकार को घोटाले की सरकार के रूप में प्रोजेक्ट किया.

2- साहू समाज की नाराजगी पड़ी भारी

साहू समाज कांग्रेस से लंबे समय से नाराज चल रहा था. कांग्रेस इस नाराजगी को दूर नहीं कर पाई, जिससे पार्टी को भारी नुकसान हुआ है. दरअसल, 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री की रेस में थे. साहू ओबीसी समाज के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. लेकिन पार्टी ने साहू की जगह भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया. ताम्रध्वज साहू को सीएम नहीं बनाए जाने के बाद उस समय कई जगहों पर उनके समर्थकों ने विरोध-प्रदर्शन भी किया था.

2023 में साहू समाज की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब बिरनपुर में हुई हिंसा में 21 वर्षीय भुवनेश्वर साहू की हत्या कर दी गई थी. बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड खेलते हुए मृतक भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू को साजा सीट से चुनाव मैदान में उतारा. ईश्वर साहू ने कांग्रेस सरकार में मंत्री मोहम्मद अकबर को 39 हजार से ज्यादा वोटों से हराया है.

छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या का 52 फीसदी ओबीसी हैं. इसमें सबसे बड़ी संख्या साहू समाज की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रदेश में लगभग 20 से 22 फीसदी साहू हैं. ऐसे में साहू समाज की नाराजगी कांग्रेस को महंगी पड़ी है.
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3- कांग्रेस से छिटके आदिवासी वोटर

छत्तीसगढ़ की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं. इनमें से 12 सीटें बस्तर संभाग से आती हैं. छत्तीसगढ़ में माना जाता है कि लगभग 32 फीसदी जनसंख्या वाले आदिवासी समुदाय के आशीर्वाद के बगैर राज्य में सरकार बनाना मुश्किल है.

बीजेपी ने प्रदेश की 29 आदिवासी सीटों में से 17 सीटों पर कब्जा जमाया है. वहीं कांग्रेस के खाते में 11 सीटें आई हैं. 1 सीट GGP को मिली है. 2018 में कांग्रेस ने 27 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार पासा पलट गया.

दरअसल, छत्तीसगढ़ की आदिवासी बेल्ट में धर्म परिवर्तन का मुद्दा हावी था. बीजेपी ने सड़क से लेकर सदन तक धर्मांतरण के मुद्दे को उठाया था. नाराणपुर जिले से शुरू हुए आदिवासी बनाम ईसाई विवाद का असर बस्तर संभाग की सीटों पर भी पड़ा. जिसकी वजह से कांग्रेस यहां की 12 सीटों में से 9 हार गई. दरअसल कांग्रेस इस पूरे विवाद पर तटस्थ रही, जिसकी वजह से पार्टी को नुकसान झेलना पड़ा है.

4- BSP-GGP गठबंधन से कांग्रेस को नुकसान

कांकेर, अंबिकापुर, पत्थलगांव, पाली-तानाखर, भरतपुर-सोनहट, साजा, केशकाल, कुरुद, चित्रकोट ऐसी सीटें रहीं, जहां हार-जीत का अंतर तीसरी पार्टी को मिले वोट से कम रहा.

कांकेर की बात करें तो यहां बीजेपी उम्मीदवार मात्र 16 वोट से जीते हैं, यहां GGP उम्मीदवार को 4236 वोट मिले. आदिवासी बाहुल्य कांकेर में पिछली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, इस बार पार्टी ने अपना प्रत्याशी भी बदला, लेकिन GGP के आने से कांग्रेस को नुकसान हुआ.

अंबिकापुर से डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव 94 वोटों से हार गए. यहां भी GGP ने कांग्रेस का खेल खराब किया है. पत्थलगांव गांव से बीजेपी सांसद गोमती साय मात्र 255 वोटों से जीती हैं. यहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का वोट काटा है.

चित्रकोट सीट पर बीजेपी ने 8300 से ज्यादा वोट से जीत दर्ज की है. लेकिन यहां तीसरे नंबर पर CPI और चौथे नंबर पर AAP प्रत्याशी रहे. इन दोनों के वोट को मिला दें तो कांग्रेस करीब उतने वोट से ही हारी है. इससे साफ है कि वोट कटने की वजह से कांग्रेस को नुकसान हुआ है.

छत्तीसगढ़ में GGP और बीएसपी ने चुनाव के लिए हाथ मिलाया था. GGP ने 37 सीट और बीएसपी ने 53 सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. दोनों पार्टियों के साथ आने से सीधे तौर पर कांग्रेस को नुकसान हुआ है.

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5- बीजेपी का महिलाओं पर फोकस

चुनाव में कांग्रेस ने किसानों पर फोकस किया तो उसके काट के रूप में बीजेपी ने महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की. मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना की तर्ज पर बीजेपी ने छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले ही महतारी वंदन योजना का ऐलान किया था. बीजेपी का दावा है कि इसके लिए उसने 50 लाख फॉर्म भी भरवाए हैं. इसके तहत पार्टी ने विवाहित महिला को 12,000 की वार्षिक वित्तीय सहायता देने का वादा किया है. रानी दुर्गावती योजना के तहत BPL बालिकाओं के जन्म पर डेढ़ का आश्वासन प्रमाण पत्र देने का वादा भी किया है. साथ ही गरीब परिवार की महिलाओं को ₹500 में गैस सिलेंडर देने का भी ऐलान शामिल है.

छत्तीसगढ़ में 2 करोड़ 3 लाख 60 हजार 240 मतदाताओं में से 1 करोड़ 2 लाख 39 हजार 410 महिला मतदाता हैं. महतारी वंदन योजना की वहज से बीजेपी को एक मुश्त महिला वोट मिले हैं.

महिलाओं के साथ ही बीजेपी का युवाओं पर भी फोकस रहा. पार्टी ने कॉलेज जाने वाली छात्राओं को DBT से मासिक ट्रेवल अलाउंस देने का ऐलान किया है. हर संभाग में AIIMS की तर्ज पर छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (CIMS) और हर लोकसभा क्षेत्र में IIT की तर्ज पर छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑ टेक्नोलॉजी (CIT) खोलने का भी ऐलान किया है.

अगर रोजगार की बात करें तो बीजेपी ने 1 लाख खाली सरकारी पदों पर समय से भर्ती का वादा किया है. साथ ही 1.5 लाख बेरोजगारों की भर्ती पंचायत स्तर पर तुंहर दुवार सार्वजनिक सेवा में करने का भी ऐलान किया है.
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6- सीट वाइज बीजेपी ने बनाई रणनीति

कांग्रेस को काउंटर करने के लिए बीजेपी ने सभी सीटों के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई थी. कवर्धा, बेमेतरा में सांप्रदायिक हिंसा के बाद बीजेपी ने यहां हिंदुत्व कार्ड खेला. कवर्धा सीट से कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने हिंदू प्रत्याशी को उतारा, तो बेमेतरा के साज सीट से हिंसा में मारे गए युवक के पिता को टिकट दिया. दोनों सीट पर बीजेपी की जीत हुई है. इसके साथ ही पार्टी ने टिकट बंटवारे में जाति समीकरण का भी खास खयाल रखा था.

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी ओम माथुर, मनसुख मंडाविया और पवन साईं को दिया था. चुनाव से 5 महीने पहले ओम माथुर को छत्तीसगढ़ का चुनाव प्रभारी बनाया गया था. उन्होंने जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद कायम किया और भूपेश सरकार को घेरने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर अचूक रणनीति बनाने का काम किया.

केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया को चुनावी रणनीति जमीन पर उतारने में माहिर माना जाता है. पिछले गुजरात चुनाव में भी रिकॉर्ड तोड़ जीत में उनकी बड़ी भूमिका रही थी. छत्तीसगढ़ चुनाव के समय में बूथ स्तर तक जाकर उन्होंने खुद बैठकें की और स्थानीय कार्यकर्ताओं से संपर्क कायम किया. इस तरह से अपनी सोशल इंजीनियरिंग के दम पर बीजेपी चुनाव फतह करने में कामयाब रही.

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