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छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनौती अब भी बरकरार? सरकार की कैसी तैयारियां?

Chhattisgarh Elections: 90 विधानसभा सीटों में से 20 सीटें नक्सल प्रभावित मानी गई हैं, जिनमें से 12 बस्तर संभाग और आठ राजनांदगांव की है.

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छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव (Chhattisgarh Elections) के दौरान नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनौतियां पहले से कम हुई हैं, लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं. विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नक्सली चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं और सरकार ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या तैयारियां की हैं.

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90 में से 20 सीटें नक्सल प्रभावित

नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर लोगों की नजर छत्तीसगढ़ के उन विधानसभा क्षेत्रों पर भी है, जिन्हें नक्सल प्रभावित माना जाता है. राज्य में दो चरणों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने हैं. पहला चरण सात नवंबर को और दूसरा 17 नवंबर को है.

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 20 सीटें नक्सल प्रभावित मानी गई हैं, जिनमें से 12 बस्तर संभाग और आठ राजनांदगांव की है. इन क्षेत्रों में मतदान सात नवंबर को होगा. राज्य में पहले चरण में जिन नक्सल प्रभावित 20 विधानसभा सीटों पर मतदान होने वाला है, उनमें से 19 पर कांग्रेस का कब्जा है.

बस्तर संभाग की किसी भी सीट पर बीजेपी का कोई विधायक नहीं है और राजनांदगांव की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर कांग्रेस और एक पर बीजेपी का कब्जा है. इन इलाकों को नक्सली गतिविधियों के चलते चुनाव आयोग ने गंभीर माना है और यही कारण है कि पहले चरण में इन सीटों पर मतदान कराया जा रहा है.

सुरक्षा के खास इंतजाम

केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार दोनों की ओर से समय-समय पर नक्सल प्रभावित जिलों को लेकर दी गई जानकारी में इस बात की पुष्टि होती है कि बीते कुछ समय में छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा में बड़े पैमाने पर कमी आई है.

यही कारण है कि इस बार अति संवेदनशील मतदान केंद्रों की संख्या साल 2018 की तुलना में कुछ कम रहेगी. हां, ये जरूर कहा जा रहा है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दायरा पहले के मुकाबले कुछ बढ़ा है. इसे देखते हुए सुरक्षा के खास इंतजाम किए जा रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक, प्रभाविक इलाकों में माओवादियों को मतदान के दौरान किसी तरह कि गड़बड़ी पैदा करने से रोकने के लिए 50 हजार से ज्यादा अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की जाएगी. नक्सली संगठन चुनाव बहिष्कार का ऐलान करने के साथ-साथ आम मतदाताओं को भी धमकाते हैं, जिससे चुनावों पर असर पड़ता है.

यहां छत्तीसगढ़ पुलिस के अलावा केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवानों को भी तैनात किया जा रहा है. वहीं चुनाव आयोग और प्रशासनिक अमले ने उन क्षेत्रों को भी चिन्हित कर लिया है जहां अतिरिक्त सुरक्षा की जरूरत है.

नक्सली हिंसा और किसी भी तरह की वारदात को रोकने के मकसद से केंद्र सरकार ने राज्य के 24 नेताओं को विशेष सुरक्षा दी है, ताकि कोई भी नेता समाज विरोधी तत्वों के निशाने पर न आ सके. इस पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. मीडिया विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला का कहना है, "केंद्र ने ये फैसला राज्य को बदनाम करने के लिया है. राज्य में नक्सली गतिविधियां पहले के मुकाबले बहुत कम हुई हैं."

उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिन नेताओं को ये सुरक्षा मुहैया कराई गई है, क्या उन्होंने कभी राज्य या केंद्र सरकार को सुरक्षा को लेकर कोई आवेदन दिया था. कांग्रेस और दूसरे दलों के नेताओं को सुरक्षा क्यों नहीं दी गई.

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जनजातीय इलाके बीजेपी के लिए चुनौती

राज्य में पहले चरण में जिन इलाकों में चुनाव होना है वह मुख्य रूप से जनजाति बाहुल्य है और बीजेपी के लिए इसमें पकड़ बनाना आसान नहीं है.

बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का कहना है कि जनजातीय वर्ग के बीच बीजेपी की स्थिति में सुधार हुआ है. पिछली बार हमें सफलता नहीं मिली थी, मगर इस बार स्थितियां बदली हुई हैं और बीजेपी बड़ी संख्या में जीत दर्ज करेगी.

प्रशासन और सुरक्षा बलों के लिए चुनावी समय सबसे अहम हैं. सुकमा जिले के झीरम घाटी में मई 2013 में नक्सलियों ने एक घटना को अंजाम दिया था, जिसमें कांग्रेस के 27 नेताओं की मौत हो गई थी. संभवतः ये देश राजनीतिक हिंसा की सबसे बड़ी घटना थी.

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