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रोज का डोज: चुनावों में दूसरे की पिच पर बैटिंग और नेगेटिव बॉलिंग

‘रोज का डोज’ में तमाम चुनावी चक्कलस के बीच असली बात क्या है, ये समझिए यहां

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चुनाव
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चुनाव के त्यौहार में मिलावटी सामान का बड़ा खतरा है.  ग्राहक (वोटर) क्या खरीदे और क्या नहीं, इस चक्कर में उसका सिर चकरा रहा है. असली-नकली के बीच फर्क करने में मदद करेगा 'क्विंट हिंदी' का 'रोज का डोज'. हम आपको चुनावी खबरों के अंदर छिपी असली खबर समझाने की कोशिश कर रहे हैं. ये रहा आज का चुनावी डोज.

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आईपीएल 2019 के हल्ले में चंद शब्द क्रिकेट पर. क्रिकेट में विरोधी की पिच पर खेलने के अपने खतरे हैं. टीमें अक्सर शिकायत करती हैं कि सामने वाली टीम ने पिच अपने फेवर में बनाई है.

दूसरे की पिच पर बैटिंग

क्रिकेट की ये बातें सियासी मैदान के लिए भी सही कही जा सकती हैं. क्रिकेट में तो मजबूरी है. जहां खेलने जाएंगे वहीं की पिच मिलेगी. लेकिन सियासत में जानबूझकर विरोधी के जमाए पिच पर बैटिंग करना समझदारी नहीं हो सकती. बुधवार को पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में अपनी रैली के दौरान पीएम मोदी ने एक बार फिर 'मैं भी चौकीदार' के नारे लगवाए. 'चौकीदार चोर है' के जवाब में बीजेपी ने ये जुमला बनाया. अब कांग्रेस से ज्यादा चौकीदार का शोर बीजेपी में है. लेकिन विषय तो कांग्रेस का ही चुना है. ऐसे में चौकीदार के हर नारे में रिएक्टिव होने का मैसेज जाता है. जबकि आज की पॉलिटिक्स में प्रोएक्टिव फायदेमंद है.

‘रोज का डोज’ में तमाम चुनावी चक्कलस के बीच असली बात क्या है, ये समझिए यहां
अरुण जेटली
(फोटो: PTI)

बीजेपी विरोधी पिच पर बैटिंग कर रही है, इसका दूसरा उदाहरण. पहले सिर्फ पठानकोट और बालाकोट की बातें हो रही थीं. फिर NYAY होते ही बीजेपी की बॉडी लैंग्वेज और लैंग्वेज दोनों बदली. कांग्रेस के घोषणापत्र में भी NYAY पर जोर था. घोषणापत्र आने के बाद पहले वित्त मंत्री ने रिएक्ट किया. फिर बीजेपी की तरफ से प्रतिक्रियाओं की लाइन लग गई. अमित शाह बोले, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन बोलीं, केशव प्रसाद मौर्या बोले और योगी भी बोले. खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट की अपनी रैली में कहा - ये घोषणापत्र नहीं, ढकोसलापत्र है.

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नेगेटिव बॉलिंग

एक दूसरा क्रिकेटाई जुमला है ‘नेगेटिव बॉलिंग’. इसमें होता ये है कि पिटने से बचने के लिए बॉलर बल्लेबाज की लेग साइड या ऑफ साइड में वाइड गेंद डालता है. बॉलर ऐसा अक्सर तब करता है जब उसे इस बात का भरोसा नहीं होता कि वो बल्लेबाज को आउट कर सकता है. नाम से ही जाहिर है ये खेल भावना के खिलाफ है. टेस्ट में अब भी चल रहा है लेकिन 20-20 और वनडे वाले फॉर्मेट में इसे नहीं कर सकते.

अब चूंकि जमाना 20-20 या बहुत हुआ तो वनडे का है तो इसे के कायदे बाकी जिंदगी में भी पसंद किए जाते हैं. रिजल्ट चाहिए. तुरंत चाहिए. तकनीक न दिखाओ, रन बनाओ. लेकिन 2019 के 20-20 सीजन में बीजेपी जमकर नेगेटिव गेंद डाल रही है.

2014 में चुनाव प्रचारों का ब्रह्म वाक्य था - अच्छे दिन आएंगे. पॉजिटिव पॉलिटिक्स. 2019 में चुनाव प्रचारों का ब्रह्म सत्य है - नेगेटिव बॉलिंग. बीजेपी की चुनावी रैलियों में जो बातें कहीं जा रही हैं उनमें इनकी प्रमुखता है- वो चोर हैं. उन्होंने कुछ नहीं किया. वो देश तोड़ देंगे. लेकिन वोटर तो काम का हिसाब चाहता है. बताओ क्या किया? क्या करोगे? देखिए इस सीजन नेगेटिव बॉलिंग को वोटर कितना पसंद करता है?

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वाकई परंपरा, परिधान को बचाने का चुनाव

अरुणाचल प्रदेश की रैली में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये चुनाव परंपरा, परिधान का सम्मान करने वालों और अपमान करने वालों के बीच है. पीएम का साफ संदेश था कि बीजेपी के शासन में सभी समुदायों, जातियों और धर्मों के लोगों को सम्मान मिलेगा. गौरक्षकों के उधम और हेट क्राइम के मामले जिस तरह से इस सरकार में बढ़े और जिस तरह से उन पर सत्ता के शीर्ष पर सन्नाटा छाया रहा, उसके बाद इस दावे पर कोई क्या कहे?

‘रोज का डोज’ में तमाम चुनावी चक्कलस के बीच असली बात क्या है, ये समझिए यहां
नरेंद्र मोदी
(फोटो: PTI)

अभी एक अप्रैल को नोएडा के पास दादरी में यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी ने एक रैली की. कहा - 'कौन नहीं जानता बिसहाड़ा में क्या हुआ? सबको पता है. कितने शर्म की बात है कि समाजवादी सरकार ने तब भावनाओं को दबाने की कोशिश की और मैं कह सकता हूं कि हमारी सरकार बनते ही हमने अवैध बूचड़खानों को बंद कराया.'

अगर आप मिस कर गए हों तो फिर से लिखता हूं - जगह थी दादरी. वही दादरी जहां गोमांस रखने के शक में अखलाक की हत्या की गई थी. जब योगी ये सब कह रहे थे तो अखलाक को मारने का मुख्य आरोपी विशाल राणा ताली बजा रहा था. यहां तीन आरोपी और भी थे.

इंडिया स्पेंड के हेट क्राइम वॉच ने 2009 से 2018 के बीच हेट क्राइम के 254 मामलों की तफ्तीश की. इनमें 91 लोगों की मौत हुई थी और 579 लोग जख्मी हुए थे. पता चला कि इनमें से 90% वारदातें 2014 के बाद हुईं. तो वाकई इन चुनावों में देश की जनता को अपनी परंपरा, परिधान, विविधता (खान-पान से लेकर भाषा और धर्म तक) का सम्मान करने वालों और अपमान करने वालों के बीच चुनाव करना है.

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अखिलेश के सामने निरहुआ! बीजेपी को क्या हुआ?

‘रोज का डोज’ में तमाम चुनावी चक्कलस के बीच असली बात क्या है, ये समझिए यहां
निरहुआ, भोजपुरी एक्टर
(फोटो: इंस्टाग्राम/निरहुआ)

बीजेपी ने बुधवार को अपने उम्मीदवारों की 16वीं लिस्ट निकाली. इसमें 6 नाम हैं. एक नाम पर मेरी नजर रुक गई. आजमगढ़ से निरहुआ, यानी दिनेश लाल यादव. भोजपुरी के बड़े कलाकार कहे जाते हैं. अभी चंद रोज पहले बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह मुरादाबाद में एक रैली में कहते सुने गए -'दो साल से किसी की मजाल नहीं कि मां-बेटी की तरफ आंख उठाकर देख सके. अब सवाल ये है कि यूपी में अगर इतना ही अच्छा काम किया है योगी की सरकार ने तो अखिलेश जैसे बड़े नेता के खिलाफ एक फिल्मी चेहरे को उतारने की जरूरत क्यों पड़ी? ये सवाल और भी गंभीर हो जाता है जब हम ये तथ्य सामने रखते हैं कि बीजेपी ने यूपी में ढेर सारे सीटिंग सांसदों के टिकट काट दिए.

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स्पीडब्रेकर, दगाबाज, चीटिंगबाज... आ गए चुनाव!

बुधवार को बंगाल की लड़ाई छाई रही. पीएम मोदी ने सिलिगुड़ी रैली में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को विकास की राह का 'स्पीडब्रेकर' करार दिया. थोड़ी देर बाद कूच बेहार में ममता ने अपनी रैली पीएम को एक्सपायरी बाबू और 'दंगाबाज' और बीजेपी को 'चीटिंगबाज' और 'दंगाबाज' पार्टी कह दिया.

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ममता बनर्जी
(फोटो: PTI)

सियासी बिसात पर विरोधी हमले आम हैं लेकिन इस बार चुनावों में जिस तरह के जुमलों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वो इशारा है कि राजनीति में शालीनता अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है. सबसे बड़ा खतरा इन जुमलों के शोर में असली मुद्दों के गुम होने का है.

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