ADVERTISEMENTREMOVE AD

गोवा विधानसभा चुनाव नतीजे: कांग्रेस, बीजेपी और AAP के लिए क्या हैं सबक

Goa Election Result 2022: चुनाव आयोग के डेटा के विश्लेषण से समझिए कि गोवा की राजनीति में इस जनादेश के क्या मायने हैं

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

Goa Assembly Election Result: एग्जिट पोल के अनुमानों को धता बताते हुए गोवा की जनता ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पक्ष में साफ जनादेश सुना दिया है. चुनाव पूर्व भविष्यवाणी की गई थी कि गोवा में त्रिकंशु विधानसभा होने वाली है. बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने वाली है. लेकिन बीजेपी अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. उसे 20 सीटें मिली हैं, और उसका वोट शेयर 33.3% है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD
एबीपी-सी वोटर के सर्वेक्षण में कांग्रेस को 17 सीटें और बीजेपी को 13 सीटें मिलने का अनुमान था, जबकि इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया का कहना था कि बीजेपी को 14-18 सीटें मिलेंगी और कांग्रेस को 15-20 सीटें.

असल में यह हुआ कि कांग्रेस को 23.46% वोट मिले, और 40 में से 11 सीटें. आम आदमी पार्टी (आप) ने दो सीटों के साथ अपना खाता खोला, और उसका वोट शेयर 6.8% रहा. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) गोवा में अभी ही दाखिल हुई है, और उसे एक भी सीट नहीं मिली. प्रमोद सावंत ने 2019 में मनोहर पर्रिकर जैसे वरिष्ठ बीजेपी नेता की मृत्यु के बाद गोवा के मुख्यमंत्री का पद संभाला था. अब वह दो स्वतंत्र उम्मीदवारों के सहयोग से 40 सीटों वाली विधानसभा में सरकार बनाएंगे और दूसरी बार मुख्यमंत्री पद पर काबिज होंगे.

द क्विंट ने चुनाव आयोग (ईसीआई) के डेटा का विश्लेषण किया है ताकि समझा जा सके कि गोवा और उसके राजनीतिक नेताओं के लिए यह जनादेश क्या मायने रखता है. यहां कुछ खास बातें उभरकर सामने आती हैं:

प्रमोद सावंत ने अपनी काबिलियत साबित की है

यह मुख्यमंत्री सावंत की हार-जीत का चुनाव था, और- जब बीजेपी ने 2017 की तुलना में अपनी स्थिति और मजबूत की है- उन्होंने कामयाबी के झंडे गाड़े हैं. पार्टी को 2017 में 13 सीटें मिली थीं और उसका वोट शेयर 32.9% था.

2019 में जब पर्रिकर की मृत्यु के बाद सावंत ने कुर्सी संभाली थी, तब उनके सामने एक कद्दावर नेता की खींची हुई लकीर थी.पर्रिकर ने गोवा में बीजेपी के लिए बड़ी जमीन तैयार की थी, और उन्हें इस राज्य की ताकत माना जाता था.

पिछले 27 सालों में पहली बार था जब बीजेपी पर्रिकर के नेतृत्व के बिना गोवा का विधानसभा चुनाव लड़ रही थी. हालांकि सावंत ने पार्टी के अंदरूनी असंतोष से बहुत अच्छी तरह से निपटा. कोविड की बदइंतजामी और जर्जर अर्थव्यवस्था के चलते सरकार विरोधी बयार का रुख मोड़ा. अवैध खनन और बढ़ती महंगाई की वजह से भड़के गुस्से को शांत किया.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

कांग्रेस की बुरी गत की क्या वजह रही?

2017 में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं, जो 2022 में सिमटकर 11 रह गईं. इसके अलावा पार्टी का वोट शेयर भी गिरकर 23.46% हो गया. वह सरकार विरोधी लहर का इस्तेमाल नहीं कर पाई. यह इसके बावजूद है कि पूर्व केंद्रीय नेता पी. चिदंरबरम ने गोवा में डेरा डाला हुआ था, और वह खुद चुनावों पर नजर रखे हुए थे.लेकिन यह सब काम नहीं आया.

इसकी एक वजह शायद यह भी रही कि अगर सत्ता मिलती है तो राज्य में कांग्रेस की अगुवाई कौन करेगा, यह बात साफ नहीं की गई. इससे भी कांग्रेस के भविष्य पर असर हुआ. दूसरी तरफ उसके मुख्य प्रतिद्वंद्वियों बीजेपी और आप ने क्रमशः सावंत और अमित पालेकर को सीएम चेहरा घोषित कर दिया था, वह भी चुनाव से काफी पहले.

चुनाव से ऐन पहले बीजेपी के असरदार नेता माइकल लोबो और उनकी बीवी दलीला लोबो, और उनके सहयोगी केदार नाइक और सुधीर कंडोलकर कांग्रेस में जा मिले थे. हां, लोबो दंपत्ति और नाइक ने क्रमशः कलंगुता, सियोलिम और सालिगाओ सीटें जीत ली हैं, कंडोलकर मापुसा हार गए हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

आप ने आखिर गोवा में खाता खोल लिया

गोवा में आप का दो सीट जीतना और 6.7% का वोट शेयर, हेडलाइन्स लूटने जैसी बात है. 2014 में वह संसदीय चुनावों के समय गोवा में दाखिल हुई थी. फिर 2017 के विधानसभा चुनावों में उसे कोई सीट तो नहीं मिली, लेकिन उसका वोटर शेयर 6.3% था. 2019 के लोकसभा चुनावों में उसके उम्मीदवारों ने मुंह की खाई और उत्तरी और दक्षिणी गोवा की सीटों पर उनकी जमानत तक जब्त हो गई.

2022 में उनके वोट शेयर में तो बहुत ज्यादा इजाफा नहीं हुआ लेकिन आप के उम्मीदवारों वेंजी वीगास ने बेनालिम और क्रूज सिलवा ने वेलिम की सीटों पर जीत हासिल की. आप ने जिस अमित पालेकर को अपना सीएम चेहरा बनाया था, भले ही वह सेंट क्रूज से हार गए हों लेकिन इस विधानसभा चुनावों के साथ आप ने गोवा के राजनैतिक नक्शे पर कदम रख दिया है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

आप ने चुनावों से पहले जमीनी स्तर पर जो संदेश दिया था, वह भी उसके काम आया. अपने ट्रेडमार्क ‘फ्रीबी मॉडल’ के अलावा अरविंद केजरीवाल की इस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में नकद योजनाओं का जिक्र किया था और महिलाओं वोटरों पर निशाना साधा था. इसके अलावा उसके निशाने पर भंडारी समुदाय भी था जिसके 12 उम्मीदवारों को चुनावों में उतारा गया था. समुदाय के नुमाइंदे पालेकर को सीएम चेहरा बनाया गया था.

टीएमसी के लिए सबक

गोवा में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के दाखिले के बाद यह बहुदलीय चुनाव बन गया था. ममता बैनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी ने गोवा में पहली बार चुनाव लड़ा, शोर शराबे से भरा अभियान छेड़ा और महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया. एमजीपी बीजेपी की लंबे समय से साथी रही है. लेकिन 5.21% के वोटर शेयर के साथ टीएमसी को एक भी सीट नहीं मिली. और उसके इस बुरे, लेकिन अपेक्षित प्रदर्शन की कई वजहें हैं.

टीएमसी विधानसभा चुनाव से सिर्फ छह-आठ महीने पहले मैदान में उतरी थी, और इतने कम समय में पसंदीदा नतीजे हासिल करना मुश्किल बात है. आप को गोवा में पहली विधानसभा सीट में मिलने में आठ साल लग गए हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

दूसरी वजह यह है कि अपने प्रचार अभियान के दौरान टीएमसी का जोर सिर्फ इस बात पर था कि राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी की जगह हथियाई जा सके. गोवा में यह जगह कांग्रेस के पास है. यह साफ दिख रहा था कि राज्य में आधार न होने की वजह से वह कांग्रेस के साथ गठबंधन करना चाहती थी. फिर एमजीपी के साथ गठबंधन करना टीएमसी के पक्ष में नहीं गया. एक दौर था, जब एमजीपी गोवा में एक क्षेत्रीय ताकत हुआ करती थी, लेकिन अब वह यह दर्जा गंवा चुकी है.

एमजीपी खुद भी सिर्फ दो ही सीटें जीत पाई. 2017 में उसका वोट शेयर 11.4% था, और 2022 में यह 7.6% हो गया, यानी इसमें 5.8% की गिरावट आई है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रेवोल्यूशनरी गोवन्स की अजीब दास्तान

गोवा की राजनीति पर कोई भी लेख, रेवोल्यूशनरी गोवन्स (आरजी) के जिक्र के बिना अधूरा है- एक ऐसी पार्टी जो प्रवासियों की विरोधी है और “भूमिपुत्र” का एजेंडा चलाती है. इसे चुनावों में एक सीट मिली है. पार्टी ने 40 में से 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे और सिर्फ एक उम्मीदवार वीरेश बोरकर ने सेंट आंद्रे से जीत हासिल की.

दिलचस्प यह है कि पार्टी ने कई क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया और कई करीबी मुकाबलों में नतीजों को प्रभावित किया. जैसे थिविम में बीजेपी के नीलकंठ हलारंकर को 9,414 वोट मिले और टीएमसी की कविता कंडोलकर के खिलाफ सिर्फ 2,051 वोटों के अंतर से जीत हासिल की. यहां आरजी के तुकाराम परब को 5,051 वोट मिले.

प्रिओल में फिर से बीजेपी के गोविंद गौडे और एमजीपी के पांडुरंग धवलीकर के बीच जीत का अंतर सिर्फ 213 वोटों का था. इस सीट पर आरजी के विश्वेश नाइक को 2,517 वोट मिले. कम से कम सात निर्वाचन क्षेत्रों में जहां बीजेपी जीती थी, परिणाम इसी तरह से प्रभावित हुए थे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×