इस महीने की शुरुआत में गुजरात की भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार ने अयोध्या में राम जन्मभूमि की यात्रा करने वाले आदिवासी समुदाय के हर शख्स को 5000 रुपए की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी.
दशहरा के मौके पर राज्य के पर्यटन और तीर्थाटन विकास मंत्री पूर्णेश मोदी ने शबरी धाम में मौजूद भीड़ से कहा था, “चूंकि हम, गुजरात के एक करोड़ (आदिवासी) लोग माता शबरी के वंशज हैं जोकि भगवान राम की बहुत बड़ी भक्त थीं, इसलिए हर आदिवासी को अयोध्या जाने के लिए 5000 रुपए की विशेष सहायता दी जाएगी.” बेशक, शबरी धाम रामचंद्र जी से जुड़ा हुआ तीर्थ है.
ध्यान देने की बात है कि 2011 की जनगंणना के अनुसार, गुजरात की आदिवासी आबादी एक करोड़ के करीब है जोकि राज्य की कुल आबादी का 14.75 प्रतिशत है. इसके अलावा देश में अनुसूचित जनजातियों के 8.1 प्रतिशत लोग गुजरात में ही रहते हैं.
राज्य में विधानसभा चुनाव अगले साल होने वाले हैं. ऐसे में बहुत से आलोचकों का कहना है कि सरकार चुनावी फायदे के लिए आदिवासी समुदाय का ‘भगवाकरण’ करने के लिए यह चाल चल रही है.
बीजेपी की रणनीति का राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक असर क्या होगा, यह जानने के लिए द क्विंट ने आदिवासी एक्टिविस्ट्स और स्कॉलर्स से बातचीत की.
''यह अस्सी के दशक का प्रोजेक्ट है''
गुजरात की आदिवासी बेल्ट में डांग, वलसाड, भरुच, सूरत, वडोदरा, पंचमहल और साबरकांठा जिले आते हैं. आदिवासी समुदाय में भील और उनसे संबंधित आदिवासी काफी बड़ी संख्या में हैं.
इन इलाकों में काम करने वाले स्कॉलर्स और आदिवासी एक्टिविस्ट्स का कहना है कि आरएसएस पिछले करीब 40 सालों से आदिवासी लोगों का ‘भगवाकरण’ या ‘हिंदूकरण’ करने का प्रोजेक्ट चला रही है.
गुजरात में रहने वाले स्कॉलर और एकैडमिक डॉ. गौरांग जानी कहते हैं, “अस्सी के दशक की शुरुआत में मैं सूरत की यूनिवर्सिटी में था. एक बार मैंने ध्यान दिया कि मेरे कुछ आदिवासी स्टूडेंट्स बृहस्पतिवार को क्लास में नहीं होते.”
वह बताते हैं कि तब उनके कुछ स्टूडेंट्स ने बताया कि वे पांडुरंग अठावले के उपदेशों के कैसेट सुनने के लिए क्लास छोड़ते हैं.
अठावले एक एक्टविस्ट और आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के मध्य में पश्चिमी राज्यों, खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में ब्राह्मणों के स्वाध्याय आंदोलन की शुरुआत की थी. डॉ. जानी बताते हैं, “स्वाध्याय परिवार का संदेश था कि आदिवासियों को मांसाहारी भोजन और शराब से दूर रहना चाहिए क्योंकि यह ब्राह्मण संस्कृत में ‘तामसिक’ माना जाता है.”
स्वाध्याय परिवार के बाद स्वामीनारायण संप्रदाय गुजरात के आदिवासी लोगों के बीच खूब लोकप्रिय हुआ. आदिवासी इलाकों में स्वामीनारायण के कई मंदिर बने और इस संप्रदाय का अभी भी काफी प्रभाव है.
इसके बाद 2004 में बीजेपी ने डांग जिले में शबरी धाम बनाया. हिंदू लोककथाओं और माइथोलॉजी में यह माना जाता है कि जिस जगह शबरी भगवान राम से मिली थी, वहीं यह मंदिर बना हुआ है. बहुत लंबे समय से शबरी नाम की आदिवासी औरत राम से मिलने के लिए तपस्या कर रही थी.
गांधी से राम: आदिवासी वोट कैसे कांग्रेस से निकलकर बीजेपी की झोली में गिरने लगे
बीजेपी के पैंतरे का चुनावी गणित समझने के लिए पहले यह समझना होगा कि गुजरात की आदिवासी आबादी परंपरागत रूप से कैसे वोट करती है. अस्सी के दशक के पहले तक आदिवासी कांग्रेस के खाम गठबंधन (KHAM) यानी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम का हिस्सा थे.
1985 से 1989 तक कांग्रेस ने गुजरात को उसका अकेला आदिवासी मुख्यमंत्री अमरसिंह चौधरी दिया. आदिवासियों के बीच कांग्रेस की मजबूत स्थिति की एक वजह गांधीवादी आश्रमों का असर था.
डॉ. जानी कहते हैं कि राज्य में कांग्रेस सरकार के मातहत ऐसे कई गांधी आश्रम थे जहां आदिवासी लोग काम करते थे इसलिए वे इस विचारधारा से प्रभावित थे. लेकिन जब समय के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) जैसे संगठनों का बोलबाला हुआ तो गांधीवादी विचार कमजोर पड़ने लगे.
“कांग्रेस पार्टी फॉरेस्ट कोऑपरेटिव्स में मजबूत थी. लेकिन जब कोऑपरेटिव्स खत्म होने लगीं तो गांधीवादी विचारधारा से आदिवासियों का संपर्क टूटने लगा. उनकी जगह वे लोग आरएसएस और वीएचपी जैसे दक्षिणपंथी संगठनों से रूबरू होने लगे. पिछले दो दशकों से बीजेपी ने गांधी को पूरी तरह से किनारे लगा दिया और आदिवासी इलाकों में राम को पहुंचा दिया.”डॉ. गौरांग जानी, स्कॉलर और एकैडमिक
2019 के लोकसभा चुनावों में गुजरात में बीजेपी ने बाकी सबका सूपड़ा साफ कर दिया था. इसकी एक वजह यह थी कि आदिवासी इलाकों में उसका प्रदर्शन काफी अच्छा था. लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे के अनुसार, बीजेपी को राज्य के 61 प्रतिशत आदिवासी वोट मिले थे.
देशव्यापी रणनीति
राम जन्मभूमि की यात्रा के लिए वित्तीय मदद देना, आदिवासी समुदाय के कथित भगवाकरण/हिंदूकरण का अकेला नमूना नहीं है. हाल ही में जयपुर के किले में स्थित अंबा माता के मंदिर में भगवा झंडा फहराया गया था. अंबा माता मीणा समुदाय की देवी हैं. मीणा समुदाय राजस्थान में अनुसूचित जनजाति में आते हैं. यह घटना राज्य में झगड़े का सबब बनी.
द क्विंट ने आदिवासियों के हक के लिए लड़ने वाले एक्टिविस्ट हंसराज मीणा से बात की. उन्होंने ट्राइबल आर्मी नाम से एक सामाजिक संगठन बनाया गया है. वह मानते हैं कि बीजेपी सुनियोजित तरीके से एक देशव्यापी रणनीति बना रही है, और आदिवासियों को राम मंदिर जाने के लिए पैसा देना उसी का एक हिस्सा है.
“आदिवासी न तो हिंदू हैं, और न मुसलमान. हमारी संस्कृति आधुनिक धर्मों से बहुत पहले की है. इस भगवाकरण का क्या आधार है? ऐसी ही घटनाएं राजस्थान, छत्तीसगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूहों और देश के कई दूसरे हिस्सों में भी दर्ज की गई हैं.”हंसराज मीणा, आदिवासी एक्टिविस्ट
हंसराज कहते हैं कि बीजेपी खास तौर से कोशिश कर रही है कि आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने वाले आदिवासी समुदायों को इस्तेमाल किया जाए, उन्हें हथियाया जाए. वह कहते हैं, “हर साल नवंबर में आदिवासी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ जाते हैं. यहां ब्रिटिश सेना ने करीब 1,500 आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था. ये आदिवासी लोग वहां शहीदी दिवस मानते हैं.”
“ऐसी कोशिशें लगातार की जा रही हैं कि मानगढ़ को हिंदू विरासत स्थल में तब्दील कर दिया जाए. लोगों का ब्रेनवॉश किया जा रहा है कि वे आदिवासी देवी-देवताओं की बजाय हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करें.”हंसराज
आदिवासी समुदाय के एक्टिविस्ट्स कहते हैं कि गुजरात सरकार ऐसे कदम उठाकर आदिवासी पहचान को खत्म करना चाहती है और उन्हें उनके अधिकार से वंचित करना चाहती है. यह उसकी बड़ी राजनीतिक कोशिश है. अंडमान और निकोबार के जारवा और गुजरात के राठवा जनजातियां इस समस्या से जूझ चुकी हैं.
हंसराज कहते हैं, “राठवा समुदाय ने जब हिंदू देवी-देवताओं को पूजना शुरू किया तो उन्हें चिन्हित अनुसूचित जनजातियों की सूची से बाहर कर दिया गया.”
क्विंट ने इन आरोपों पर प्रदेश बीजेपी के नेताओं की राय जाननी चाही लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला.
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