Haryana Election Result 2024: हरियाणा में एक बार फिर कमल खिला है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने जीत की हैट्रिक लगाई है. कांग्रेस का सत्ता में वापसी का सपना एक बार फिर टूट गया है.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 48 सीटों पर जीत मिली है, जबकि कांग्रेस के खाते में 37 सीटें गई हैं. INLD के 2 सीटों पर बाजी मारी है, जबकि 3 पर निर्दलीयों ने जीत दर्ज की है.
बता दें कि भास्कर समेत 13 एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल में कांग्रेस की सरकार की भविष्यवाणी की थी, जो नतीजों में गलत साबित होता दिख रहा है. ऐसे में बताते हैं कि आखिरी वह कौन सी वजहें थी जिनकी वजह से बीजेपी की बड़ी जीत हुई?
बीजेपी के जीत के 5 बड़े फैक्टर
1. गैर-जाट वोट बैंक को एकजुट करने में सफल
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा गैर-जाट वोट बैंक से मिलता दिख रहा है. शुरुआत से ही पार्टी का फोकस गैर-जाटों- ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी/खत्री और राजपूत पर था, जिसे वो साधने में सफल रही है.
दूसरी तरफ कांग्रेस जाट, दलित और मुस्लिम वोट बैंक के जरिए सत्ता में वापसी को लेकर आश्वस्त लग रही थी. पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर बहुत अधिक निर्भर थी, जो कारगर साबित नहीं हुई है. वहीं बीजेपी ने गैर-जाट और गैर-मुस्लिम वोटों को बेहतर तरीके से एकजुट किया है.
नतीजों से लगता है कि बीजेपी ने पूर्वी और दक्षिणी हरियाणा के गैर-जाट इलाकों में अपना गढ़ बरकरार रखा है. इसके साथ ही जाट बहुल पश्चिमी हरियाणा में भी अच्छा प्रदर्शन किया है, जहां गैर-जाट वोट बड़ी संख्या में बीजेपी के पक्ष में एकजुट हुए हैं.
जाट वोटर्स में गुस्से को भांपते हुए बीजेपी ने इस बार चुनावी मैदान में ओबीसी उम्मीदवारों पर ज्यादा भरोसा जताया था. 2019 में बीजेपी ने 19 जाट नेताओं को टिकट दिया था, जबकि इस बार सिर्फ 16 उम्मीदवार उतारे. वहीं पार्टी ने सामान्य वर्ग से 50, ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से 20 नेताओं को टिकट दिया.
बता दें कि राज्य की मतदाता आबादी का लगभग 30 प्रतिशत ओबीसी हैं, जबकि जाट 22-27 प्रतिशत और अनुसूचित जाति (एससी) लगभग 20 प्रतिशत हैं.
ओबीसी मतदाताओं को लुभाने के लिए नायब सिंह सैनी सरकार ने ओबीसी क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा बढ़ा दी और स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण भी बढ़ा दिया था.
वहीं अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व सीटों की बात करें तो बीजेपी को फायदा होता दिख रहा है. 17 आरक्षित सीटों में से बीजेपी को 8 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं कांग्रेस के खाते में 9 सीटें जा सकती है. 2019 के मुकाबले, बीजेपी को 4 और कांग्रेस को 2 सीटों का फायदा हो रहा है. पिछली बार दुष्यंत चौटाला की जेजेपी ने 5 सीटें जीती थी, जो इस बार बीजेपी-कांग्रेस में बंट गई हैं.
2. अहीरवाल बेल्ट में भी समर्थन
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के रुझानों को देखें तो पार्टी को अहीरवाल क्षेत्र की 11 सीटों पर जनता का पूरा समर्थन मिला है. इन सीटों में अटेली, महेंद्रगढ़, नारनौल, नांगल चौधरी, बावल, कोसली, रेवाड़ी, पटौदी, बादशाहपुर, गुरुग्राम और सोहना शामिल है. बीजेपी इन सभी सीटों पर आगे है.
अहीरवाल बेल्ट में बीजेपी 2014 का अपना प्रदर्शन दोहराती दिख रही है. उस साल पार्टी ने सभी 11 सीटें जीती थी. जबकि 2019 में बीजेपी को तीन सीटों का नुकसान हुआ था.
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अहीरवाल क्षेत्र में कई जनसभाएं और रैलियां की थीं. वहीं गुरुग्राम सांसद राव इंद्रजीत सिंह भी सक्रिय थे. जिसका असर यहां के चुनाव परिणामों में देखा जा सकता है.
3. कांग्रेस के किसान, पहलवान और जवान के नैरेटिव में नहीं फंसी
इस चुनाव में किसान, पहलवान और जवान के मुद्दे की खूब चर्चा थी. कहा जा रहा था कि ये तीनों तबके बीजेपी को भारी डेंट पहुंचाएंगे. लेकिन अब तक के नतीजों से ऐसा लग रहा है कि चुनाव में ये मुद्दे कुछ खास असर नहीं डाल पाए हैं.
जानकारों की मानें तो बीजेपी ने किसान, पहलवान और जवान के नैरेटिव का जवाब अपने विकास की बात से दिया है. इन तीनों तबकों को साधने के लिए बीजेपी ने कई घोषणाएं भी की थी.
बीजेपी ने अपने चुनावी संकल्प पत्र में किसानों के लिए 24 फसलों के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP पर खरीद का वादा किया. वहीं हर जिले में ओलंपिक खेलों की नर्सरी बनाने की बात कही. हर हरियाणवी अग्निवीर को सरकारी नौकरी की गारंटी देकर बीजेपी ने बाजी पलट दी.
4. कांग्रेस के बराबर वोट शेयर, लेकिन BJP की सीट ज्यादा
बीजेपी ने इस बार टिकट बंटवारे में कड़ाई दिखाई थी. पार्टी ने करीब एक तिहाई विधायकों के टिकट काट दिए थे. यहां तक कि चार मंत्रियों को दोबारा चुनाव मैदान में नहीं उतारा. जिसका फायदा चुनावों में होता दिख रहा है.
इसे ऐसे समझ सकते हैं. बीजेपी का वोट शेयर 39.78 फीसदी है. वहीं कांग्रेस का 39.65 फीसदी. दोनों पार्टियों को लगभग बराबर वोट मिले हैं. लेकिन अब तक के नतीजों पर नजर डालें तो दोनों पार्टियों में 11 सीटों का अंतर है.
5. सरकार से लेकर संगठन तक में बदलाव का फायदा
पिछले 10 सालों से प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी के लिए इस चुनाव में एंटी इनकंबेसी एक बहुत बड़ा मुद्दा थी. पार्टी ने इससे निपटने के लिए सरकार से लेकर संगठन तक में बदलाव किए. चुनाव से 6 महीने पहले मुख्यमंत्री बदल दिया. मनोहर लाल की जगह नायब सैनी को कमान सौंपी गई थी. जो ओबीसी समाज से आते हैं.
वहीं दूसरी तरफ गैर-जाट वोटरों को साधने के लिए पार्टी ने ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखने वाले मोहन लाल बडौली को अपना प्रदेश अध्यक्ष तक बनाया था.
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