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हिमाचल प्रदेश:प्रियंका गांधी और भूपेश बघेल ने कैसे लिखी कांग्रेस की जीत की कहानी

Priyanka Gandhi ने यूथ कांग्रेस की एक टीम बनाई थी, जिसने छह महीने पहले ही हिमाचल में डेरा डाल लिया था

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हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की जीत का श्रेय प्रदेश के 'रिवाज' या राज्य में सत्ताधारियों को हटाने की प्रथा को देना ठीक नहीं होगा. यदि 'रिवाज' जीत की गारंटी दे सकता तो उत्तराखंड और केरल में इस समय कांग्रेस पार्टी सत्ता में होती. हमें यह भूलना चाहिए कि हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर सबसे ज्यादा (लगभग 69 फीसदी) था. इसलिए यहां बीजेपी की हार पहले से तय नहीं थी.

अधिकांश जानकारों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस कैंपेन को अच्छी तरह से मैनेज किया गया था. प्रदेश की लीडरशिप आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट हुई और फोकस्ड कैंपेन का नेतृत्व किया.

क्विंट ने पहले ही नवंबर में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कैसे हिमाचल प्रदेश कांग्रेस स्थानीय मुद्दों और आजीविका पर फोकस करते हुए एक बहुत प्रभावी चुनावी अभियान का नेतृत्व कर रही थी, जिसमें बीजेपी को हराने की क्षमता थी.

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हालांकि यह लेख एक अलग पहलू पर केंद्रित है, यहां हम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा हिमाचल प्रदेश चुनाव में निभाई गई प्रमुख भूमिका के बारे में बात करेंगे.

इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के चुनावों में हार के बाद दोनों को काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. ऐसे में हिमाचल प्रदेश की जीत निस्संदेह उनके लिए राहत भरी होगी.

हिमाचल प्रदेश के पार्टी प्रभारी राजीव शुक्ला के लिए भी यह बड़ी जीत है. राजीव को प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता है. कहा जा रहा है कि एआईसीसी सचिव संजय दत्त ने भी इस जीत में अहम भूमिका निभाई है.

इस बार के हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल और प्रियंका गांधी की भूमिका के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने के लिए, हमने हिमाचल प्रदेश चुनाव अभियान में शामिल कई लोगों से बात की, जिनमें प्रदेश इकाई के नेता, कैंपेन के लिए अन्य राज्यों से यहां आए नेता, प्रियंका गांधी और भूपेश बघेल की टीमों के सदस्य के अलावा यहां के कैंपेन पर काम करने के लिए रखी गई फर्म शामिल थी.

हमें जो जानकारी प्राप्त हुई उसके आधार पर हमने उनकी भूमिका को पांच पहलुओं में बांटा है.

टिकट वितरण

हिमाचल प्रदेश से बाहर के एक पार्टी नेता, जो यहां चुनाव में जमे हुए थे, उन्होंने बताया कि "प्रदेश के विभिन्न नेताओं को दिए गए कोटा के आधार पर टिकट आवंटित करने की सामान्यत: प्रथा को उन्होंने कम कर दिया. यह एक बड़ा कदम है, क्योंकि अतीत में कई राज्यों में कांग्रेस को इस प्रथा की कीमत चुकानी पड़ी थी."

पार्टी सूत्र ने खुलासा किया कि ऐसा नहीं है कि विवाद या मतभेद नहीं हुआ, लेकिन जब भी विवाद उठता तब प्रियंका गांधी हस्तक्षेप करतीं और चीजों को सुलझातीं थी.

कांग्रेस पार्टी द्वारा काम पर रखे गए एक रणनीतिकार ने कहा कि प्रियंका गांधी की भागीदारी रैलियों तक ही सीमित नहीं थी.

"कैंडिडेट सेलेक्शन की पूरी प्रक्रिया पर प्रियंका गांधी सक्रिय रूप से नजर रख रही थीं. उन्होंने हर सीट पर सर्वे करवाया. कुछ सीटों पर तो कई सर्वे हुए. वह जानना चाहती थीं कि वाकई में जमीनी स्थिति क्या है."

हर घर लक्ष्मी अभियान

सितंबर की शुरुआत में प्रदेश कांग्रेस ने 10 गारंटी की घोषणा की थी. प्रियंका गांधी और उनकी टीम ने उनमें से एक गारंटी को गहन जमीनी अभियान के लिए चुना. वह अभियान था, हर घर लक्ष्मी अभियान, जिसमें महिलाओं के लिए प्रति माह 1500 रुपये का वादा किया गया.

इस अभियान को जमीनी स्तर पर मैट्रिक्स ग्राउंड स्ट्रैटेजीज नामक एक फर्म द्वारा चलाया गया था. यह फर्म प्रशांत किशोर की इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPAC) के कई पूर्व सदस्यों द्वारा स्थापित की गई है.

क्विंट को मैट्रिक्स के एक रणनीतिकार ने बताया कि "योजनाओं में नामांकन कराने के लिए लोगों ने फॉर्म भरे. हमारी ओर से यह सुनिश्चित किया गया कि उनकी डिटेल ठीक ढंग से नोट की गई हो और इसके बाद उन्हें कॉलबैक भी किया गया. हम उन्हें इस बात को लेकर आश्वस्त करना चाहते थे कि 'हर घर लक्ष्मी' सिर्फ एक खोखला वादा नहीं है और कांग्रेस अपने वचन को पूरा करने के लिए गंभीर है."

इसी तरह का अभियान रोजगार को लेकर भी चलाया गया था. प्रियंका गांधी की टीम के आग्रह पर युवाओं के लिए 5 लाख नौकरियों के संकल्प को 1 लाख सरकारी नौकरियों में शामिल करने के लिए संशोधित किया गया था.

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संगठन और बूथ मैनेजमेंट

एक वॉर रूम बनाया गया था, जिसका संचालन बघेल की टीम द्वारा किया गया जा रहा था. भूपेश बघेल के करीबी सलाहकार और पूर्व पत्रकार विनोद वर्मा ने बघेल, प्रियंका गांधी, पीसीसी और पार्टी द्वारा नियुक्त किए गए वेंडर्स के बीच मुख्य समन्वयक के तौर पर कार्य किया.

भूपेश बघेल के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अभियान के हर पहलू को देखा, उनका हर जगह बड़ा हाथ था और सीधे जमीनी कार्यकर्ताओं तक पहुंचने में उन्होंने बिलकुल भी संकोच नहीं किया.

चुनाव अभियान से जुड़े एक व्यक्ति ने कहा, "वह (बघेल) अक्सर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं से सीधे बात करते थे, उनका मनोबल भी बढ़ाते थे."

प्रियंका गांधी को लेकर यह भी कहा जाता है कि उन्होंने यूथ कांग्रेस के वॉलेंटियर्स की एक टीम बनाई थी, जिसने छह महीने पहले ही हिमाचल प्रदेश में डेरा डाल लिया था और बूथ मैनेजमेंट को मजबूत करने के लिए काम किया.

मैट्रिक्स के रणनीतिकार ने खुलासा करते हुए बताया कि "हम जानते थे कि मार्जिन कम होगा. इसलिए हमने 40 स्विंग सीटों पर ध्यान केंद्रित किया और बूथ स्तर के वॉर रूम स्थापित किए."

राज्य इकाई के साथ तालमेल

भूपेश बघेल और प्रियंका गांधी द्वारा जो अप्रोच अपनाई गई उसकी एक अहम खूबी यह भी रही कि उन्होंने किसी भी स्तर या बिंदु पर राज्य इकाई को ध्वस्त या कमजोर नहीं किया.

प्रियंका गांधी की टीम के एक सदस्य ने बताया कि "इस चुनाव कैंपेन की आत्मा और दिल प्रदेश कांग्रेस थी. इसका पूरा श्रेय उन्हें जाता है. हम उनकी ताकत को बढ़ाना चाहते थे, उनकी बाधा नहीं बनना चाहते थे."

राज्य के सभी नेताओं में सत्ता में वापस आने की भूख थी, क्योंकि वे जानते थे कि एक हार से भविष्य में रिवाइव करना मुश्किल हो सकत है. इस फैक्ट की वजह से यह काम आसान हो गया था.

कुल मिलाकर प्रदेश इकाई में यह भावना है कि चाहे बघेल हों, प्रियंका गांधी हों या राजीव शुक्ला हों, केंद्रीय नेताओं की भागीदारी सकारात्मक थी.

सचिन पायलट एक अन्य नेता थे, जिन्होंने अंत में कदम बढ़ाया और प्रभाव डाला.

शुरुआत में उन्हें सीमित संख्या में रैलियों को संबोधित करना था, लेकिन उन्हें मिली जबरदस्त प्रतिक्रिया के बाद, ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने प्रियंका गांधी और प्रदेश इकाई से कहा कि वह जितनी चाहें उतनी सभाओं को संबोधित करने को तैयार हैं.

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बघेल-प्रियंका समीकरण

प्रियंका गांधी की टीम के एक सदस्य ने बताया कि "भूपेश बघेल के साथ प्रियंका के खासतौर पर अच्छे कामकाजी संबंध हैं. उनके साथ काम को वे इंजॉय करती हैं."

उस टीम मेंबर ने आगे बताया कि "बघेल 24X7 राजनेता हैं और पूरी तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसके अलावा सीमित संसाधनों के साथ धारदार कैंपेन चलाने की कला में भी उन्हें महारत हासिल है."

उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के चुनावी अभियानों के दौरान प्रियंका गांधी और भूपेश बघेल के साथ नजदीकी से जुड़कर काम करने वाले एक व्यक्ति से जब हमने पूछा कि उत्तर प्रदेश की हार से क्या गांधी और बघेल ने कोई सबक सीखा? तब उस व्यक्ति ने कहा "हां, मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश में हमने लोगों को पार्टी में बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए. वहां यह मानसिकता थी कि 'कोई जा रहा है तो उसे जाने दो', यह हमारे लिए हानिकारक रहा."

सूत्र ने आगे कहा "हिमाचल में, हमने इसे दोहराने की कोशिश नहीं की. अगर कोई पार्टी छोड़ना चाहता था, तो शीर्ष नेताओं ने उन्हें पार्टी में बनाए रखने की पूरी कोशिश की. कुछ बीजेपी नेता भी थे जो हमारी पार्टी में शामिल होना चाहते थे, लेकिन हम उनकी शर्तों से सहमत नहीं हो सके. हालांकि पार्टी के नेताओं ने उनके साथ अच्छे संबंध बनाए रखे और बातचीत के सभी द्वार खुले रखे." सूत्र ने यह भी बताया कि "अब निर्दलीय के रूप में जो जीते हैं उनमें कुछ उम्मीदवार ये भी हैं."

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