ज्यादा दिन नहीं हुए, जब अयोध्या पर फैसले को लेकर प्रधानमंत्री ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वो किसी की हार-जीत नहीं होगा. अच्छा स्टैंड था. लेकिन लगता है झारखंड में चुनाव आते-आते खुद बीजेपी ही अपना स्टैंड भूल गई. अब चुनावी रैलियों में राम मंदिर और मंदिर के पीछे बीजेपी की ताकत का शोर है. दरअसल झारखंड वैसे तो छोटा सा राज्य है लेकिन अगर यहां बीजेपी की हार हुई तो दिल्ली, बिहार और बंगाल में भी मुश्किल हो सकती है. महाराष्ट्र और हरियाणा के बाद का पैटर्न अगर झारखंड में भी जारी रहा तो बाकी देश में बीजेपी को दिक्कत होगी. बेचैनी की वजह यही है.
झारखंड में बीजेपी के दावे और हकीकत
बीजेपी ने एक इंटरनल सर्वे में दावा किया है कि उसे 45-48 सीटें मिलेंगी. लेकिन खुद पार्टी अध्यक्ष के बयान में जीत का ये भरोसा नहीं दिखता.
याद रखिए अमित शाह उसी आजसू से चुनाव बाद गठबंधन बने रहने की बात कर रहे हैं, जो बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ रही है. तो समझना मुश्किल नहीं है कि जिस पार्टी से बीजेपी का अलगाव हो चुका है कि उसके साथ रहने की आरजू अमित शाह क्यों कर रहे हैं? आखिर क्यों झारखंड में 65 पार का नारा देने वाली बीजेपी चुनाव बाद गठबंधन की बात कर रही है?
- 01/04(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)
- 02/04(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)
- 03/04(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)
- 04/04(ग्राफिक्स: क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)
अब जरा 28 नवंबर को अमित शाह की झारखंड की एक और रैली में क्या हुआ, ये भी याद कर लीजिए. चतरा में रैली थी. लोग पहुंचे महज 15 हजार. अमित शाह मंच से ही नाखुशी जाहिर करने पर मजबूर हो गए
इतनी भीड़ से चुनाव कैसे जीत पाएंगे, आप मुझे बेवकूफ मत बनाओ, मैं भी बनिया हूं. गणित मुझे भी आती है. यहां से घर जाकर 25-25 लोगों को फोन करें और बीजेपी को वोट देने की अपील करें.अमित शाह, गृह मंत्री- लातेहार रैली, 28 नवंबर
झारखंड में जन मन पर ABP-C VOTER का एक सर्वे आया. सर्वे के मुताबिक राज्य में बीजेपी बहुमत से दूर रह सकती है. सर्वे के मुताबिक बीजेपी को महज 33 सीटें मिल सकती हैं, जबकि सरकार बनाने के लिए चाहिए 41 सीटें. लेकिन ऊपर अमित शाह के बयानों से जाहिर है कि पार्टी को इतनी सीटें जीतने का भरोसा नहीं है.
पहले चरण में जिन 13 सीटों पर चुनाव हुए हैं. उनपर 6 बीजेपी के विधायक हैं. झारखंड पर नजर रखने वाले जर्नलिस्ट आनंद दत्ता बताते हैं कि इनमें से 4 सीटों (चतरा, लातेहार, छतरपुर और भवनाथपुर) पर ही बीजेपी का पलड़ा भारी दिखता है. भवनाथपुर में नौबत ये है कि जिन भानु प्रताप शाही के खिलाफ दवा घोटाले और आय से अधिक संपत्ति के मामले चल रहे हैं, बीजेपी उन्हें लड़ा रही है. शाही हाल ही में अपनी पार्टी नौजवान संघर्ष मोर्चा के साथ बीजेपी में आए हैं.
क्या हुआ तेरा वादा...
9 नवंबर को अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले पीएम ने कहा था अयोध्या पर फैसला कुछ भी हो, किसी की हार -जीत नहीं होगी
अब देखिए झारखंड की चुनावी रैलियों में खुद पीएम मोदी और पार्टी के दिग्गज नेता क्या कह रहे हैं.
झारखंड में श्रीराम की शरण में क्यों बीजेपी?
झारखंड की जंग एक ऐसे जंक्शन पर लड़ी जा रही है जिससे पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी को बहुमत से हाथ धोना पड़ा है. हरियाणा में तो जोड़-तोड़ से सरकार बन गई लेकिन महाराष्ट्र में कुर्सी गंवानी पड़ी.
बीजेपी को कहीं भी सरकार बनानी है तो उसे OBC, SC और ST वोटर के बीच भी हिंदुत्व की हवा बहानी होगी लेकिन महाराष्ट्र और हरियाणा में ऐसा हो नहीं पाया. अब बारी झारखंड की है. ये राज्य तो छोटा है लेकिन अगर यहां भी OBC, SC और ST वोटर ने बीजेपी से किनारा कर लिया तो बीजेपी और संघ दोनों को नेशनल लेवल पर भी रणनीति बदलनी होगी.
अब आगे 2020 में दिल्ली और बिहार चुनाव हैं. फिर 2021 में बंगाल में भी चुनाव हैं. जाहिर है जो गाड़ी महाराष्ट्र और हरियाणा में बेपटरी हुई अगर वो झारखंड में भी फिसली तो फिसलन तीन और राज्यों तक पहुंच सकती है. बिहार में जेडीयू से खटपट की खबरें आती रहती हैं. दिल्ली में केजरीवाल का किला उतना भी कमजोर नहीं और पश्चिम बंगाल में तीन सीटों पर उपचुनाव में बीजेपी की करारी हार 2019 लोकसभा चुनाव से अलग कहानी कह रही है.
खास झारखंड की बात करें तो मंदी के कारण तमाम इंडस्ट्रियल इलाकों में भारी पैमाने पर छंटनी हुई है. आदिवासी वहां जल-जंगल-जमीन के मुद्दे पर नाराज हैं. तो कोई ताज्जुब नहीं कि झारखंड की चुनावी रैलियों में बीजेपी के हर नेता को श्री राम याद आ रहे हैं. कोई ताज्जुब नहीं कि राम मंदिर को हार-जीत से परे रखने की अपने कसमें बीजेपी खुद ही भूल गई है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)