17 फरवरी, 2016
देश की राजधानी दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर कन्हैया कुमार पर वकीलों ने हमला किया. हमला उस दिल्ली में हुआ जहां कानून बनता है. हमला किया कानून का झंडाबरदार होने का दावा करने वालों ने.
27 अप्रैल, 2019
दिल्ली से 1178 किलोमीटर दूर देश के सबसे पिछड़े राज्य कहे जाने वाले बिहार के बेगूसराय में कन्हैया कुमार ने चुनाव प्रचार खत्म किया. पिछले 6 महीने से कन्हैया ने अपने लोकसभा क्षेत्र के 2000 वर्ग किलोमीटर का इलाका छाना. उससे पहले आसपास के जिलों जैसे खगड़िया, अररिया, और किशनगंज जैसे इलाकों में भी गए. पढ़े-लिखे-अनपढ़, गरीब-अमीर, हर जाति-धर्म के लोगों से मिले. लेकिन उनके अपने गांव में बिहट में ही नहीं, दूसरी किसी जगह पर भी उनपर कोई हमला नहीं हुआ. एक बार धक्कामुक्की हुई भी तो आरोप बीजेपी प्रत्याशी गिरिराज सिंह के लोगों पर लगा.
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मतगणना के पहले लोकतंत्र की जीत
जेएनयू कैंपस में भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में देशद्रोह का मामला झेल रहे कन्हैया अभी दोषी करार नहीं दिए गए हैं, लेकिन देश की ज्यादातर मेनस्ट्रीम मीडिया,बीजेपी और ढेर सारे लोगों ने उन्हें पक्का देशद्रोही घोषित कर दिया. इस 'मॉडर्न' समाज से दूर बेगूसराय ने कन्हैया का स्वागत बिल्कुल उसी तरह किया, जैसे किसी और उम्मीदवार का करता. समझ लीजिए कि इस देश में लोकतंत्र की सबसे गहरी जड़ें कहां हैं. 29 अप्रैल को मतदान और 23 मई को मतगणना के बाद बेगूसराय लोकसभा सीट के नतीजे कुछ भी रहें लेकिन सच है कि कन्हैया ने फर्स्ट राउंड के मुकाबले में अपने सियासी और गैर सियासी दोनों तरह के विरोधियों को हरा दिया है. विनर बनी है बेगूसराय की जनता, जिसने पूरे देश को समझाया है कि हमारा लोकतंत्र क्या है? इसमें बेगूसराय की बीजेपी समर्थक आबादी भी है.
जहां तक चुनाव की बात है
संयुक्त लेफ्ट के उम्मीदवार कन्हैया कुमार को CPI के दो लाख काडर वोट से तो उम्मीद है ही, हर सियासी समझदार यही कह रहा है कि वो बीजेपी और आरजेडी के वोट बैंक में भी सेंध लगाएंगे. इसी बेचैनी का तकाजा है कि जो अमित शाह कन्हैया को नमूना बता रहे हैं, वो भी बेगूसराय जाकर अपने प्रत्याशी गिरिराज सिंह के लिए प्रचार करने को मजबूर हैं. वही गिरिराज जो मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देने का 'पराक्रम' दिखा चुके हैं. कहां एक 'देशद्रोही' और कहां एक केंद्रीय मंत्री. मुकाबला आसान होना चाहिए था या यूं कहिए होना ही नहीं चाहिए था. लेकिन है. राजनीति में पीएचडी कन्हैया ने कुछ ऐसा चक्कर चलाया है कि बीजेपी से लेकर आरजेडी तक चकराई हुई है.
पिछले चुनाव में बीजेपी के भोला सिंह 58 हजार मतों से जीते थे. भोला सिंह को 4.2 लाख वोटों के मुकाबले इस बार के आरजेडी उम्मीदवार तनवीर हसन को 3.69 लाख वोट मिले थे. तीसरे नंबर थी सीपीआई।
इस बार समीकरण बदले दिख रहे हैं. बछवाड़ा, बखरी और तेघड़ा विधानसभा में कन्हैया का अपना वोटबैंक है, जबकि चेरिया बरियारपुर, बेगूसराय और मटिहानी के अन्य पार्टियों के वोटबैंक में कन्हैया ने सेंधमारी की है। उम्मीद की जा रही है कि सीपीआई के दो लाख वोट बैंक में कन्हैया के कारण कम से कम एक लाख का टॉपअप होगा. कई मुस्लिम वोटर कहते हैं कि तनवीर हसन और आरजेडी मोदी का मुकाबला नहीं कर सकते, लिहाजा कन्हैया ही बेहतर हैं.
बेगूसराय के 19 लाख वोटरों में 19% भूमिहार, 15 % मुस्लिम, 12 % यादव और 7 % कुर्मी हैं. इस सीट पर पिछले 10 लोकसभा चुनावों में से नौ बार भूमिहार सांसद बने हैं। गिरिराज की तरह कन्हैया भी भूमिहार हैं, सो भूमिहार वोटों का बड़ा हिस्सा भी कन्हैया को मिलना तय लग रहा है.
जेएनयू के साथी कॉमरेड, गीतकार जावेद अख्तर, एक्ट्रेस शबाना आजमी, एक्टर प्रकाश राज और कांग्रेस के दिग्विजय सिंह खुलेआम उनका समर्थन कर चुके हैं. क्राउड फंडिंग से मिले सिर्फ 70 लाख रुपए से चुनाव लड़ना और हर रैली में ''संविधान बचाना है' जैसे नारों में बेगूसराय को कुछ नया दिखता है. देखिए 23 मई को कन्हैया दूसरा राउंड भी जीतते हैं क्या?
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