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कन्हैया के ‘लाल सलाम’ को बेगूसराय के लोगों ने क्यों अलविदा कह दिया

कन्हैया कुमार को हराना बीजेपी के लिए नाक का सवाल था. क्या है कन्हैया की हार के पीछे की वजह?

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आजादी का नारा, सेलेब्रिटीज का जमावाड़ा, लाल सलाम की गूंज, पिछले दो महीने में बिहार के बेगुसराय में ये सब बड़े जोर शोर से हो रहा था. देश भर की मीडिया का कैमरा अलग अलग एंगल से बेगूसराय पर नजर बनाये हुए था. क्योंकि यहां लोकसभा चुनाव में एक तरफ जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार मैदान में थे, तो दूसरी तरफ बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह. अब उस चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की है. गिरिराज सिंह ने सीपीआई के कन्हैया कुमार को 4 लाख से ज्यादा वोट से हरा दिया है.

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कन्हैया कुमार को हराना बीजेपी के लिए नाक का सवाल था. अगर बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा करने के लिए हर दाव चला था, तो कन्हैया और उनकी पार्टी भी कहीं पीछे नहीं हटी. लेकिन बीजेपी की स्ट्रेटेजी सीपीआई के लाल झंडे को झुकाने में कामयाब रहा. अब ये सवाल उठता है जब कन्हैया के समर्थन में सोशल मीडिया से लेकर सेलेब्रिटी तक मेहनत कर रहे थे, तो फिर कन्हैया हारे क्यों? जब बेगूसराय को वामपंथ का गढ़ कहा जाता है तो फिर कन्हैया इतनी बुरी तरह क्यों हारे? आइए नजर डालते हैं उन कारणों पर जो गिरिराज सिंह की जीत और कन्हैया कुमार की हार की वजह बनी.

वामपंथ को लोगों ने कहा ना

कन्हैया कुमार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के कैंडिडेट थे. वही सीपीआई जो करीब-करीब अब देशभर में सिमट सी गई है. हाल ये है कि पश्चिम बंगाल, जहां लेफ्ट पार्टी ने 30 साल से ज्यादा राज किया वहां सीपीआई एक भी सीट नहीं जीत सकी. बेगूसराय की बात करें तो पिछले कई लोकसभा चुनाव में यहां सीपीआई का कैंडिडेट तीसरे नंबर पर ही रहा है. हालांकि कन्हैया के आने के बाद धूल खा रहे सीपीआई के ऑफिस में रौनक सी आ गई. लेकिन बेगूसराय के लोगों में लाल सलाम या कहे लेफ्ट के साथ जाना पसंद नहीं किया. कन्हैया कुमार को सिर्फ 22% वोट मतलब 269976 वोट मिला, जबकि गिरिराज सिंह को 687577 वोट.

गिरिराज सिंह की हिंदूवादी छवि

कन्हैया की हार में गिरिराज सिंह की हिंदूवादी छवि ने खूब काम किया. गिरिराज सिंह लोगों को ये बताने में कामयाब हुए कि कन्हैया हिंदू विरोधी हैं. इस चुनाव में ये तक मुद्दा बना कि कन्हैया ने अपने पिता की मौत के बाद भी अपना मुंडन नहीं कराया. दरअसल, हिंदू-रीति रिवाजों में किसी के घर में किसी की मौत हो जाए तो उसके परिजन बाल मुंडाते हैं. बार-बार वन्दे मातरम से लेकर भारत माता की जय जैसे नारों के जरिए कन्हैया के खिलाफ माहौल बनाया गया.

राष्ट्रवाद और देश द्रोह का मुद्दा

गिरिराज सिंह ने अपने प्रचार की शुरुआत ही देशभक्त बनाम देशद्रोह से की. इसमें वह काफी हद तक कामयाब भी रहे. बार-बार पाकिस्तान परस्त और टुकड़े टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर कन्हैया को घेरा गया. जेएनयू में कथित देशद्रोही नारे लगाने के मामले में भी कन्हैया पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. इस मामले को भी कन्हैया के विरोधियों ने खूब भुनाया. इसके अलावा सर्जिकल स्ट्राइक और मजबूत मोदी का जवाब कन्हैया कुमार या सीपीआई के पास नहीं था.

आरजेडी के साथ गठबंधन नहीं होना

कन्हैया के बिहार की राजनीति में एंट्री के बाद से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि लालू यादव की पार्टी आरजेडी बेगूसराय में कन्हैया को सपोर्ट करेगी. लेकिन आखिरी मौके पर सीपीआई और आरजेडी की बात नहीं बनी. दोनों पार्टियों ने अपना कैंडिडेट उतारा. जिसका सीधा फायदा गिरिराज सिंह को हुआ. हालांकि कुछ लोग ये कह सकते हैं कि कन्हैया कुमार और तनवीर हसन के वोट को जोड़ भी दे तो 466776  वोट होते हैं. मतलब गिरिराज सिंह से करीब दो लाख वोट कम. लेकिन यहां ये समझना होगा कि अगर आरजेडी और सीपीआई का गठबंधन बेगूसराय में हो जाता तो फर्क जरूर पड़ता.क्योंकि गठबंधन नहीं होने के कारण कन्हैया के पक्ष में हवा नहीं बन पाई.

काम नहीं आया स्टार पावर

कन्हैया कुमार के समर्थन में देशभर से फिल्मी दुनिया से लेकर एक्टिविस्ट और नेताओं ने कैंपेन किया, लेकिन ये तमाम लोग जमीनी हकीकत से दूर थे. लेखक जावेद अख्तर, शबाना आजमी, एक्ट्रेस स्वरा भास्कर, योगेंद्र यादव, प्रकाश राज, जिग्नेश मेवाणी और भी बहुत से लोग कन्हैया के प्रचार में आए लेकिन यहां के लोग असल मुद्दे समझ नहीं सके.

भूमिहार वोटरों का साथ ना आना

कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह दोनों ही जाति से भूमिहार हैं. लेकिन कन्हैया भूमिहार वोटरों को अपने पाले में नाकाम रहे. दरअसल कन्हैया कुमार जब जेल से छूटने के बाद बेगूसराय पहुंचे तो वो लालू यादव से मिलने गए और उनके पांव छूए. जबकि लालू यादव वामपंथ को बिहार में कमजोर करने के लिए भी जाने जाते हैं. भूमिहार भी लालू का विरोध करते आये हैं. ऐसे में कन्हैया का लालू यादव का पैर छूने की बात यहां के भूमिहार भूल नहीं पाए. गिरिराज सिंह ने इसे अपनी रणनीति का हिस्सा भी बनाया था.

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