Karnataka Assembly Election Results: कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट इस बार कर्नाटक में शानदार जीत के साथ समाप्त हो गया है. इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने कर्नाटक विधान सभा चुनाव 2023 में बहुमत के आंकड़े से कहीं अधिक, 135 सीटें हासिल की हैं.
पिछले चुनाव में रिसोर्ट पॉलिटिक्स और गठबंधन ड्रामा देखने के बाद, कर्नाटक के अधिकांश मतदाता राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद कर रहे थे. नतीजों ने कांग्रेस का मनोबल बढ़ा दिया है, लेकिन पार्टी अभी भी इस बात पर विचार कर रही है कि मुख्यमंत्री के रूप में किसे चुना जाए. रविवार, 14 मई की शाम विधायक दल की बैठक हुई. विधायकों ने बैठक में एक लाइन पर प्रस्ताव पास किया- सीएम पर फैसला पार्टी अध्यक्ष खड़गे लेंगे.
एक तरफ तो कांग्रेस नेता सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार काफी समय से इस बात को लेकर आपस में भिड़े हुए हैं कि पार्टी में किसे प्रमुखता मिलनी चाहिए, वहीं पार्टी के पर्यवेक्षकों का कहना है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2023 के लिए एक सामूहिक मोर्चा बनाया था.
सीएम की कुर्सी तक की रेस जारी है
13 मई को परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद क्या हुआ? जैसे ही डीके शिवकुमार, जो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिलने गए थे, बेंगलुरु केपीसीसी कार्यालय में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए जा रहे थे, उनका काफिला खड़गे के आवास पर वापस लौट आया. इसकी वजह थी कि शिवकुमार ने सिद्धारमैया को अपने निर्वाचन क्षेत्र वरुणा से बेंगलुरु लौटने के बाद खड़गे के घर में प्रवेश करते हुए देखा था.
खड़गे के आवास पर नेताओं के बीच बैठक में क्या हुआ, यह तो नहीं पता, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ने बाद में प्रेस को संबोधित किया और कहा:
“पार्टी के सीनियर नेता भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए बैठक करेंगे. एक बार जब सभी विधायक राजधानी शहर लौट आएंगे, तो हम एक विधायक दल की बैठक करेंगे, जहां निर्वाचित प्रतिनिधि अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन करेंगे. निर्णय से आलाकमान को अवगत कराया जाएगा, जो चुने हुए सीएम उम्मीदवार को सीएम की उपाधि प्रदान करेगा."
कांग्रेस ने अभी तक अपने सीएम का फैसला नहीं किया है. लेकिन सिद्धारमैया और शिवकुमार का समर्थन करने वाले यहां दोनों गुट के कांग्रेस के विधायकों का क्या कहना है? चलिए बताते हैं.
सीएम की रेस में क्यों हैं सिद्धारमैया?
JD(S) प्रमुख एचडी देवेगौड़ा के साथ मतभेदों के कारण निष्कासित किए जाने के बाद, सिद्धारमैया ने बहुजन मतदाताओं या पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल किया और 2006 में कांग्रेस में शामिल हो गए.
जैसे ही वह कांग्रेस में कर्नाटक के अहिंदा (दलित-बहुजन-अल्पसंख्यक गठबंधन) के नेता के रूप में उभरे, सिद्धारमैया ने 2013 के विधानसभा चुनावों में खनन-घोटाले के आरोपी रेड्डी बंधुओं को चुनौती देते हुए बल्लारी तक एक मार्च का नेतृत्व करने के बाद पार्टी को जीत दिलाई. रेड्डी बंधु बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के करीबी विश्वासपात्र थे.
एक कांग्रेस सूत्र ने जोर देते हुए कहा “सिद्धारमैया ने पार्टी का निर्माण किया और 2013 में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए बहुत मेहनत की. इस बार भी, उन्होंने पार्टी के लिए 2013 की जीत को दोहराने के लिए पूरे कर्नाटक की यात्रा की. वह सीएम बनना डिजर्व करते हैं.'
पार्टी के एक अन्य सूत्र ने कहा कि कर्नाटक चुनाव में सिद्धारमैया आखिरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, उनके प्रयास को उचित रूप से पुरस्कृत करने की जरूरत है. सूत्र ने कहा, "कांग्रेस को वैसी गलती नहीं करनी चाहिए जैसी बीजेपी ने येदियुरप्पा के साथ की थी."
जब द क्विंट ने हाल ही में चुनावी अभियान के दौरान सिद्धारमैया का इंटरव्यू लिया, तो सीएम उम्मीदवार ने दावा किया कि वरुणा के लोग चाहते थे कि वह इस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ें और सीएम बनें. उन्होंने यहां तक जोर देकर कहा, "कांग्रेस 130 पार करेगी. मैं इसे लिखकर आपको दूंगा!"
सिद्धारमैया के एक समर्थक ने उनका समर्थन करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की सीट 75 वर्षीय सिद्धारमैया को दी जानी चाहिए क्योंकि शिवकुमार को केंद्रीय प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उन पर लगाए गए मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों का सामना आगे भी करना पड़ सकता है और वे मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे.
सीएम रेस में डीके शिवकुमार क्यों हैं ?
डीके शिवकुमार ने 1980 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया. वह कांग्रेस पार्टी में तेजी से उठे और सबसे मजबूत ताकतों में से एक के रूप में उभरे. उन्होंने 2018 में कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी.
इससे पहले 2017 में, गुजरात से राज्यसभा के लिए चुनाव से थोड़ा पहले, डीके शिवकुमार ने गुजरात कांग्रेस के 42 विधायकों को बेंगलुरू में अपने रिसॉर्ट में ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ताकि उन्हें हॉर्स ट्रेडिंग से बचाया जा सके.
इसके अलावा, पार्टी सूत्रों की राय है कि कांग्रेस को राज्य के पार्टी अध्यक्ष को मुख्यमंत्री के रूप में चुनने के प्रोटोकॉल का पालन करने की आवश्यकता है.
सूत्र ने बताया, "2013 में ही कांग्रेस ने राज्य के पार्टी अध्यक्ष का चयन नहीं किया था क्योंकि जी परमेश्वर तब चुनाव हार गए थे."
एक अन्य शिवकुमार समर्थक ने कहा कि 62 वर्षीय को मुख्यमंत्री बनना चाहिए क्योंकि वह केंद्र के कोप का शिकार हुए हैं. शिवकुमार के समर्थक ने कहा कि केंद्र को निशाने पर लेने के लिए जांच एजेंसियों ने अतीत में कई छापे मारे हैं. शिवकुमार समर्थक ने कहा कि उन्हें उनके प्रयासों के लिए पुरस्कृत किया जाना चाहिए.
जब कांग्रेस विधायक सीएलपी बैठक के लिए तैयार हो रहे हैं, कांग्रेस को अभी तक सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चुनने की बाधा को पार करना बाकी है.
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