Karnataka Lok Sabha Election 2024 Result: बीजेपी ने पहली बार केरल में एंट्री मारी है लेकिन उसे अपने दक्षिण के द्वार कर्नाटक में डेंट लगा है. 2019 में केरल की 28 में से 25 सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार 17 पर सिमट गई है. कांग्रेस 1 सीट से बढ़कर 9 सीट पर आ गई है.
कांग्रेस के पास कर्नाटक में अपनी सरकार है, पार्टी विधानसभा चुनावों की शानदार सफलता पर सवार थी. उसके पास सूबे की जनता को दिखाने के लिए अपनी प्रसिद्ध 'पांच गारंटियां' थी.
कर्नाटक के यह नतीजे संकेत दे रहे हैं कि मतदाताओं ने बीजेपी की 'मोदी की गारंटी' के साथ-साथ राज्य की कांग्रेस सरकार की गारंटी को भी तरजीह दी है.
सवाल है कि जिस राज्य में 'मोदी फैक्टर' भगवा पार्टी के लिए काम करता आया है, वो इस बार कुंद क्यों पड़ गया? राज्य के यह नतीजे क्या राजनीतिक संदेश दे रहे हैं?
कर्नाटक और बीजेपी- 2019 के प्रदर्शन से नीचे आई पार्टी
2004 के बाद से, कर्नाटक के मतदाताओं ने लगातार भगवा पार्टी का समर्थन किया है. यहां तक कि 2004 और 2009 में जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए देश में चुनाव जीतकर सरकार बना रही थी तब भी. कर्नाटक की जनता का बीजेपी के लिए यह भरोषा 2019 में और परवान चढ़ा जब बीजेपी ने सूबे की 28 में से 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की. कुल वोट का 51.38% शेयर बीजेपी को मिला. लेकिन 5 साल बाद 2024 में पार्टी की सीट गिरकार 17 पर आ गई और कांग्रेस की सीट 1 से बढ़कर 9 पर आ गई.
2004: बीजेपी 28 में से 18 जीती
2009: बीजेपी 28 में से 19 जीती
2014: बीजेपी 28 में से 17 जीती
2019: बीजेपी 28 में से 25 जीती
2024: बीजेपी 28 में से 17 जीती
लिंगायत और वोक्कालिगा वोट- बीजेपी के कॉकटेल को चुनौती मिली
लोकनीति-CSDS की नेशनल इलेक्शन स्टडीज (CSDS NES) 2019 के अनुसार बीजेपी को लोकसभा चुनावों में लगभग 70 प्रतिशत लिंगायत समर्थन और 40 प्रतिशत वोक्कालिगा समुदाय का समर्थन मिलता रहा है. ऐसे में जब इस बार के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने जेडीएस के साथ हाथ मिलाया तो पार्टी को उम्मीद थी कि उसे अतिरिक्त 10 प्रतिशत वोक्कालिगा वोट मिलेगा और दो प्रभावशाली समुदाय के बीच उसकी पकड़ मजबूत होगी.
हालांकि बीजेपी के लिए जेडीएस से गठबंधन को लेकर एक डर भी था कि कहीं यह दांव बैकफायर न कर जाए. क्योंकि इस गठबंधन को दो प्रमुख समुदायों के गठबंधन के रूप में देखा जाता है, जिनकी 25 प्रतिशत आबादी एक साथ आ रही है और हाथ मिला रही है. इससे कांग्रेस पार्टी को कुरुबा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में अहिंदा (पिछड़े वर्ग, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक) वोट को मजबूत करने में मदद मिल सकती थी. नतीजे संकेत दे रहे हैं कि यह डर सही साबित हो गया.
बी वाई विजयेंद्र: कर्नाटक में नया नेतृत्व खुद को साबित नहीं कर पाया
पिछले साल के विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, बीएस येदियुरप्पा के बेटे और राज्य बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के नए नेतृत्व में पार्टी राज्य में मजबूती से खड़ी होती दिखी. येदियुरप्पा ने अपने बेटे को कर्नाटक बीजेपी प्रमुख बनाने के लिए सभी बाधाओं और पार्टी के आंतरिक गुटों के खिलाफ लड़ाई लड़ी था. पिता-पुत्र की जोड़ी पर निर्भर था कि वे पार्टी और राज्य पर अपना प्रभाव साबित करें. लेकिन कर्नाटक में पार्टी की 8 सीटें कम होने के बाद बीवाई विजयेंद्र अपने पहले एग्जाम के नतीजों में कमजोर नजर आएंगे.
मोदी फैक्टर बरकार
पूरे भारत के स्तर पर मोदी फैक्टर की वजह से 2019 के चुनाव में हर तीन में से एक मतदाता ने बीजेपी को वोट दिया था. लेकिन कर्नाटक में यह संख्या हर दो में से एक का था. CSDS NES के अनुसार मोदी फैक्टर, जो भारत में 32 प्रतिशत था, वह 2019 में कर्नाटक में 53 प्रतिशत था. यानी कर्नाटक में मोदी फैक्टर हावी रहा है. वापस 17 सीट जीतने के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यहां अभी भी मोदी फैक्टर कमजोर भले हुआ है लेकिन खत्म नहीं.
सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार- साबित करने का मौका भुनाया
कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार अपनी ताकत साबित करने की होड़ में थे. दोनों नेता इस चुनाव में पार्टी के लिए अच्छे परिणाम हासिल करके अपना नेतृत्व कौशल दिखाने की कोशिश में थे. अब 8 सीट की बढ़ोतरी के साथ रिपोर्ट कार्ड लेकर अब वो आलाकमान के पास पहुंचेंगे.
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