वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह
लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती के बीच जम्मू कश्मीर की हलचल भरी पॉलिटिक्स में एक नई एंट्री हुई है डॉक्टर शाह फैसल की. 2009 के IAS टॉपर शाह फैसल अपनी नई पारी से जम्मू-कश्मीर के लोगों को क्या नया दे पाएंगे? जम्मू-कश्मीर की राजनीति में क्या नया बदलाव ला पाएंगे? इन्हीं तमाम मुद्दों पर क्विंट ने उनसे खास बातचीत की.
2009 में IAS टॉप करने के बाद आप जम्मू-कश्मीर के युवाओं के हीरो बन गए थे, उनके लिए एक मोटिवेशन बन गए थे. फिर आपके इस नए पॉलिटिकल अवतार का क्या मतलब?
जो आइकॉनिक स्टेटस मुझे यहां कश्मीरी युवाओं ने दिया, उस वजह से एक जिम्मेदारी मुझ पर आई कि उनकी उम्मीदों को पूरा कर सकूं. मैं नहीं कहता कि मैं कोई यहां का बहुत बड़ा रोल मॉडल या कोई आइकन हूं, मगर ये है कि जब सिविल सर्विसेज में मेरा सेलेक्शन हुआ, उसके बाद उम्मीदें बहुत बढ़ गईं कि बहुत कुछ करना है और हम फील्ड में गए, छोटे लेवल से बदलाव लाना शुरू किया. अफसर होकर भी बहुत कुछ कर सकते हैं, लेकिन उम्मीदें बड़ी थीं, समस्याएं बड़ी थीं.
आपने लोकसभा इलेक्शन से पहले अपनी पार्टी जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट बनाई. फिर आप लोकसभा चुनाव लड़ क्यों नहीं रहे?
पार्टी घोषित करने में थोड़ा सा टाइम लगा और हुआ ये कि जब पार्टी एक बार बनी उसके बाद मेरी अपनी राय के बदले पार्टी की राय डॉमिनेट कर गई. अब जो मसला है मेरा ही नहीं रहा, ये बाकी सारी टीम थी उनका फैसला था. टीम का फैसला ये था कि हमें पहले फोकस करना चाहिए काडर बिल्डिंग पर, थोड़ा सा संगठन को मजबूत करने पर. तुरंत आए और लोकसभा चुनाव लड़ने आ गए, थोड़ा सा इंतजार करना चाहिए.
पॉलिटिशियन होने के नाते आपके सामने जम्मू-कश्मीर की पॉलिटिक्स में सबसे बड़े चैलेंज क्या हैं?
तीन इलाके हैं, तीन अलग -अलग तरह की चुनौतियां हैं. आप कश्मीर घाटी देखेंगे, यहां सिस्टम पर (डेमोक्रेटिक प्रोसेस में) लोगों को भरोसा नहीं रह गया है. अगर आप जम्मू डिविजन में जाएंगे, तो वहां सबसे बड़ा चैलेंज है. वहां पर इस वक्त ‘सेंस ऑफ इंजस्टिस’ (अन्याय की स्थिति) है. उनको लगता है कि पूरे राज्य की जो पॉलिटिक्स है, उस पर कश्मीर की पॉलिटिक्स हावी है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है, हम लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं. अगर आप लद्दाख जाएंगे, तो लद्दाख के लोगों को लगता है कि उनका क्षेत्र ऐसा है, जिसके बारे में कोई बात नहीं करता. उन्हें लगता है कि उन्हें इन दो क्षेत्रों के साथ जोड़ा तो गया है लेकिन उन्हें प्रशासनिक, लोकतांत्रिक, राजनीतिक तौर पर वो हक नहीं मिला है, जो मिलना चाहिए.
नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑटोनॉमी की बात करती है. पीडीपी सेल्फ रूल की बात करती है.आपकी आइडियोलॉजी क्या है?
पॉलिटिकल पार्टी होने के नाते इन्होंने आज तक जो फॉर्मूले दिए हैं, हम कहते हैं इन सारे फार्मूलों का कोई मतलब ही नहीं है, क्योंकि अभी तक हम वो बात करने पर नहीं आए कि इसको डिस्कस किया जाए. हम कह रहे हैं कि यहां का माहौल सही करो, जिसमें जिस माहौल में आप न सिर्फ ये तीन चार फॉर्मूले, बल्कि पचासों फॉर्मूले बाकी हैं, बहुत सारी चीजें हैं. हम कहते हैं, पहले माहौल बने, जिसमें बातचीत हो सके. थोड़ी हिंसा कम हो जाए, थोड़ा लोगों में विश्वास हो जाए. इंडिया, पाकिस्तान आपस में कम से कम एक दूसरे को दुश्मन की नजर से देखना तो बंद करें. उसके बाद ये सारे जो मैजिकल फॉर्मूले बाकी पार्टियां अपना रही हैं उस पर बात हो सकती है.
शाह फैसल का आगे का एजेंडा क्या है?
मेरी पार्टी की पहली प्राथमिकता है कि हम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध सब मिलकर चलें और इस रियासत को आगे ले जाएं. अमन का और टॉलरेंस का माहौल बनाएं. तीसरी बात ये कि यहां इंसाफ की बात है. विकास के साथ-साथ इंसाफ की बात होनी चाहिए. लोगों को अगर हम स्कूल दें, एजुकेशन दें, सड़क दें. उनको इज्जत मिलनी चाहिए. लोगों को एहसान की तरह चीजें नहीं मिलनी चाहिए.
शाह फैसल ने 2009 में IAS परीक्षा में टॉप किया था. उन्हें जम्मू-कश्मीर का होम कैडर आवंटित किया गया था, जहां उन्होंने जिला मजिस्ट्रेट, स्कूल शिक्षा निदेशक और राज्य के स्वामित्व वाले पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक के रूप में काम किया था. जिसके बाद 9 जनवरी को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में प्रवेश का ऐलान किया.
देखिए क्विंट की इलेक्शन स्पेशल चौपाल साउथ कश्मीर के पुलवामा से
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