गुजरात में पाटीदार समाज को हमेशा से ही राजनीति की नजर से काफी अहम माना जाता है. गुजरात में होने वाले किसी भी चुनाव में यह समाज समीकरण बदलने में काफी अहम भूमिका निभाता है. 2014 लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी को पाटीदार बहुल इलाकों से काफी ज्यादा वोट मिले थे. लेकिन फिर पटेल आरक्षण और रोजगार को लेकर चले अभियान ने 2017 में तस्वीर को बदलकर रख दिया. गुजरात के विधानसभा चुनावों में बीजेपी 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई.
पाटीदारों की नाराजगी का असर
पाटीदार समाज के आरक्षण को लेकर शुरू हुए अभियान के बाद बीजेपी सरकार पर लगातार दबाव बना. लाखों पटेल युवाओं के आंदोलन के बाद 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव हुए. इसके बाद भले ही बीजेपी ने यहां सरकार बना ली, लेकिन कुल 182 सीटों में बीजेपी 100 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई, जबकि इससे पहले 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गुजरात में क्लीन स्वीप किया था.
गुजरात में कुल आबादी में 16 प्रतिशत पाटीदार समाज के लोग हैं, जो किसी भी चुनाव में एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं. पाटीदार समाज के ज्यादातर लोग सूरत, राजकोट, मेहसाणा अमरेली जैसे जिलों में रहते हैं
विधानसभा चुनावों के कुछ आंकड़े
- पाटीदार समाज को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है. लगभग दो-तिहाई पाटीदार वोटर बीजेपी को वोट डालते आए थे, लेकिन 2012 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2017 के चुनाव के दौरान बीजेपी के वोटों में गिरावट देखी गई. देखिए पाटीदार बहुल क्षेत्र में विधानसभा चुनाव के कुछ आंकड़े
- उंझा विधानसभा सीट में लगभग 42 प्रतिशत कड़वा वोटर मौजूद हैं. यहां 2012 विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जीत मिली थी. बीजेपी उम्मीदवार को 75708 वोट और कांग्रेस को 51507 वोट मिले थे. वहीं साल 2017 में यहां कांग्रेस ने बाजी मारी. कांग्रेस को यहां कुल 81797 वोट मिले, वहीं बीजेपी 62268 वोटों पर सिमट गई.
- राजकोट जिले के धोराजी विधानसभा क्षेत्र में लगभग 23 प्रतिशत कड़वा पटेल और 21 प्रतिशत लेउआ पटेल वोटर्स हैं. यहां 2012 और 2017 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी.
- मेहसाणा में करीब 25 प्रतिशत कड़वा पटेल वोटर हैं. यहां 2017 के चुनाव में काफी कांटे का मुकाबला रहा. 2012 की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस 65929 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी को 90134 वोट मिले. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को 89316 वोट मिले, वहीं कांग्रेस को 81674 वोट मिले थे.
साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 115 सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस सिर्फ 61 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन 2017 में बीजेपी 99 सीट ही जीत पाई, वहीं कांग्रेस 77 सीट पाने में कामयाब रही
हार्दिक के कांग्रेस में आने के मायने
पूरे गुजरात में पटेल आरक्षण का बिगुल फूकने वाले हार्दिक पटेल के कांग्रेस में आने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. हार्दिक गुजरात में बीजेपी के खिलाफ लगातार प्रचार करते आए हैं. पाटीदार समाज को नरेंद्र मोदी का एक बड़ा वोट बैंक माना जाता रहा है. लेकिन हार्दिक अपने समाज में भी मोदी के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हैं.
अब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हार्दिक पटेल के कांग्रेस में आने से बीजेपी को कहीं न कहीं पाटीदार वोट बैंक के हाथ से खिसकने का डर सता रहा है. माना जा रहा है कि पटेल का कांग्रेस ज्वाइन करना गुजरात में गेमचेंजर साबित हो सकता है.
हार्दिक पटेल आरक्षण को लेकर गुजरात में कई रैलियां निकाल चुके हैं. लेकिन 2015 में निकाली गई रैली ने पूरे देशभर में हार्दिक पटेल को एक नई पहचान दी. अपनी ताकत दिखाने के लिए हार्दिक ने लाखों युवाओं को इकट्ठा कर लिया. उनकी गिरफ्तारी के बाद गुजरात में हिंसा भड़क उठी थी
पाटीदार समाज क्यों है इतना खास?
गुजरात की राजनीति में पाटीदार समाज को इसलिए खास माना जाता है, क्योंकि यहां की ज्यादातर लोकसभा सीटों पर इस समाज का प्रभाव है. गुजरात की कुल 26 लोकसभा सीटों में से 10 सीटों पर पाटीदार समाज का काफी मजबूत असर माना जाता है. इसीलिए अगर कांग्रेस पाटीदार वोट बैंक को साधने में कामयाब होती है तो ये बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है.
हाल ही में पीएम मोदी भी पाटीदार समाज को साधते हुए दिखे. पीएम मोदी ने अपने गुजरात दौरे में कड़वा पाटीदारों से मुलाकात की. इसके बाद रैली से भी पाटीदारों को संबोधित किया. इससे यही साबित होता है कि गुजरात में हर पार्टी के लिए पाटीदार समाज की कितनी अहमियत है. हालांकि यह देखना होगा कि हार्दिक पटेल कांग्रेस के पाले में पाटीदारों का कितना वोट खींच सकते हैं.
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के गुजरात की जामनगर सीट से चुनाव लड़ने की चर्चाएं काफी तेज हैं. फिलहाल यह लोकसभा सीट बीजेपी के पास है. 2014 में इस लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार पूनमबेन ने जीत दर्ज की थी.
हार्दिक पटेल के अलावा अन्य पाटीदार नेता भी बीजेपी के खिलाफ दिख रहे हैं. हाल ही में पाटीदार आंदोलन का चेहरा रहीं रेशमा पटेल ने भी बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी में मजदूरों की तरह काम होता है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)