तारीख- 17 फरवरी, 2019
वक्त- रात 12 बजे
सीआरपीएफ के 40 जवानों की जान लेने वाले आत्मघाती हमले को महज तीन दिन बीते थे. आधी रात के वक्त पुलवामा के पिंगलान गांव में अचानक गोलियों की आवाज गूंजने लगी. 25 साल के मुश्ताक अहमद अपनी तीन बहनों, माता-पिता और बुजुर्ग दादी के साथ घर के कोने में दुबक गए. फायरिंग सुबह तक जारी रही. अचानक बाहर से आवाज आई- ‘दरवाजा खोलो, तलाशी है’.
दरवाजा खुलते ही एक पाकिस्तानी आतंकी घर में घुस गया और उसके बाद जो हुआ उसे सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे.
मुश्ताक अहमद की दर्दनाक कहानी, उन्हीं की जुबानी
नहीं मिली कोई सरकारी मदद
मुश्ताक ने हमें बताया:
एनकाउंटर में एक नहीं कुल 3 घर राख के ढेर में तब्दील हो गए. हमारी 2 गाय भी मारी गईं. उसके बाद कोई सरकारी कर्मचारी, नेता, एमएलए, तहसीलदार, पटवारी हमारी मदद के लिए नहीं आया. जो मदद मिली वो यहां की लोकल बॉडी से मिली. सरकार ने अभी तक कोई मुआवजा नहीं दिया.
मुश्ताक हमसे कैमरे पर बात करने को तैयार नहीं हुए लेकिन उनका दर्द आवाज में झलक रहा था. भर्राए गले से मुश्ताक ने कहा:
टेररिस्ट के हाथ में बंदूक है और फौज के हाथ में भी बंदूक है. कश्मीरी कौम इन दो बंदूकों के बीच फंसी है.
पुलवामा हमले के महज तीन दिन बाद हुए उस हमले में 55 राष्ट्रीय राइफल्स के एक मेजर समेत 4 जवान, एक पुलिसकर्मी और एक आम नागरिक को जान से हाथ धोना पड़ा था. सुरक्षाबलों ने भी जवाबी कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद के तीन आतंकियों को ढेर कर दिया था.
चुनाव में नहीं दिलचस्पी
पुलवामा में 6 मई को लोकसभा चुनाव की वोटिंग है. लेकिन चुनावों के सवाल पर मुश्ताक का दर्द छलकता है. वो कहते हैं:
सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. कोई भी आए लेकिन असल मसला है कश्मीर का. 1947 से अभी तक मसला हल नहीं किया तो अभी कहां से करेंगे. हम वोटिंग में शिरकत नहीं करेंगे. माना कि वोट डालना एक जिम्मेदारी है लेकिन जिसे वोट डालना है वो भी एक जिम्मेदार शख्स होना चाहिए. यहां ऐसा कोई नहीं है.
घर खोने का गुस्सा क्विंट पर निकला
फौज और आतंकियों की जंग के शिकार ऐसे ही और घरों की तलाश में क्विंट की टीम पहुंची पुलवामा के बाबगोंड इलाके में मोहम्मद शफी हाफिज के घर.
13 अक्टूबर, 2018 को फौज की गाड़ी पर हमले के बाद दो हिजबुल आतंकी हाफिज के घर घुस गए. आतंकियों को सरेंडर की चेतावनी दी गई. ना मानने पर फौज ने हाफिज का पूरा घर उड़ा दिया.
उस एनकाउंटर में शब्बीर अहमद डार नाम का हिजबुल आतंकी मारा गया जबकि शौकत अहमद डार घायल हुआ था, जिसे सुरक्षा बलों ने गिरफ्तार कर लिया. मोहम्मद शफी हाफिज आजकल नया घर बनवा रहे हैं.
क्विंट की टीम उनसे बात करने पहुंची तो हमें एक बुरे अनुभव से गुजरना पड़ा. फोटो खींचने से नाराज हाफिज ने हमारा फोन छीन लिया और डेटा डिलीट कर दिया. शायद इसकी वजह फौज का डर था. एनकाउंटर के शिकार लोगों को लगता है कि मीडिया में आने पर फौज उन्हें परेशान कर सकती है.
जब एनकाउंटर में जल गई 30 साल की शायरी
मार्च, 2018 में श्रीनगर शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर बल्हमा गांव में एक एनकाउंटर हुआ, जिसमें 3 कश्मीरी आतंकी मारे गए, लेकिन खामियाजा उठाना पड़ा एक शायर को. गुलाम मोहम्मद भट उर्फ मदहोश बल्हमी ने उस एनकाउंटर में घर के साथ-साथ अपनी 30 साल की शायरी भी गंवा दी.
क्विंट ने आपको करवाया था बल्हामी के दर्द से रूबरू
गुलाम ने 1985 में नज्मों की दो किताबें प्रकाशित की थीं. एक खोने का दर्द और दूसरी अबू ज़ार की आवाज, जो मदहोश बल्हमी के नाम से लिखी गई थीं.
माली हालत खराब होने की वजह से गुलाम आगे कोई किताब नहीं छपवा पाए लेकिन वो लिखकर अपनी नज्में घर पर ही संभालते रहे. मुठभेड़ में गुलाम ने हजार पन्नों की बिना छपी रचनाएं खो दीं.
पुलवामा हमले के बाद बढ़ी फौज की कार्रवाई
अगर आपने डायरेक्टर-प्रोड्यूसर विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर देखी है तो आपको एक सीन जरूर याद होगा. आतंकवादी अखलाक लतीफ और उसके साथियों से एनकाउंटर के दौरान कैसे सुरक्षा बलों ने डॉक्टर हिलाल मीर का घर उड़ा दिया था.
फौज और आतंकियों की जंग में सिविलियन प्रोपर्टी का बर्बाद होना साउथ कश्मीर में रोजमर्रा की बात है.
इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2015 से मई, 2018 के बीच सिर्फ पुलवामा जिले में 105 घर फौज और आतंकियों के एनकाउंटर की भेंट चढ़ चुके थे.
14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में हुए हमले के बाद कश्मीर में सुरक्षा बलों की कार्रवाई में तेजी आई है. पुलवामा साउथ कश्मीर में आता है और ये इलाका पिछले कई सालों से फौज और आतंकियों की रक्तभूमि बना हुआ है.
कश्मीर में पांच फेज में होने वाले लोकसभा चुनाव की पहली वोटिंग 11 अप्रैल को है. लेकिन कश्मीर घाटी के लोगों में चुनावों को लेकर ना तो कोई उत्साह दिखता है और ना ही कोई उम्मीद.
क्विंट विशेष | पुलवामा में क्या हैं चुनावी मुद्दे?
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