लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Chunav 2024) में उम्मीद के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी खाता भी नहीं खोल पाई. जिस पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव में 10 सीटें जीतकर वापसी के उम्मीद की एक अलख जगाई ही थी वह अब बुझती हुई नजर आ रही है. 2024 आम चुनाव में पार्टी ने सभी 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन कोई भी प्रत्याशी जीत के करीब नहीं पहुंच पाया.
BSP को कितना नुकसान हुआ?
उत्तर प्रदेश में साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद से मायावती और बीएसपी का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है. 2014, 2017 और 2022 के चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा था. हालांकि, बीएसपी ने 2019 के संसदीय चुनाव में समाजवादी पार्टी की साइकिल की हैंडिल अपने हाथ ली और जिसका उसे फायदा हुआ. एसपी के साथ गठबंधन करने का कारण शून्य सांसद वाली पार्टी के लोकसभा में 10 एमपी जीतकर पहुंच गए. उस चुनाव में बीएसपी 38 सीटों पर चुनाव लडी थी और पूरे प्रदेश में पार्टी का वोट शेयर 19.26% पहुंच गया था.
लेकिन खोई जमीन तलाश रही बीएसपी जमीनी स्तर पर लगातार कमजोर होती रही और नतीजा यह रहा की 2024 में इनका वोट शेयर घटकर 9.39% रह गया. पार्टी का दलित वोट बैंक भी अब बिखरा हुआ नजर आ रहा है. 2012 के बाद के चुनाव में पहले बीजेपी ने सेंध लगाई और अब नतीजों से अनुमान लगाया जा रहा दलित और मुस्लिम वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी के पास चला गया है.
मायावती ने इंडिया गठबंधन को कितना पहुंचा चोट?
आलोचकों ने बीएसपी को बीजेपी का "बी टीम" करार दिया है. पार्टी पर आरोप लगे कि कई सीटों पर बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए मुस्लिम प्रत्याशी उतारे गए. नतीजों में अमरोहा सीट पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर बीएसपी इंडिया गठबंधन का खेल बिगड़ने में कामयाब रही. अमरोहा सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी कंवर सिंह तंवर 28670 वोटो से कांग्रेस के कुंवर दानिश अली को हराया. बीएसपी के मुजाहिद हुसैन 164099 वोटो के साथ तीसरे स्थान पर रहे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सहारनपुर सीट पर बीएसपी ने माजिद अली को खड़ा कर इमरान मसूद की मुश्किलें बढ़ा दी थी. यहां इमरान मसूद ने मजबूती से चुनाव लड़ा और 64,542 वोटो से जीत दर्ज की.
बीएसपी ने सहारनपुर के अलावा अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर, संभल, फिरोजाबाद, आंवला, बदायूं, आजमगढ़ और संतकबीरनगर सीटों पर भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा कर इंडिया गठबंधन के राह में कांटे बो दिए थे. लेकिन नतीजे से साफ है कि मुस्लिमों का रुझान कांग्रेस- एसपी के गठबंधन की तरफ था और इसका फायदा यह हुआ की इंडिया गठबंधन इन सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा होने से बहुत हद तक रोका और जीत दर्ज की.
प्रदेश में कई ऐसी सीटें भी हैं जहां पर बहुत कम अंतर से बीजेपी प्रत्याशी ने इंडिया गठबंधन उम्मीदवार को हराया है. यूपी की फूलपुर सीट पर बीजेपी के प्रवीण पटेल ने एसपी के अमरनाथ सिंह मौर्य को 4332 वोटो से हराया. इस सीट पर बीएसपी के जगन्नाथ पाल 82586 वोटो से तीसरे स्थान पर है. ऐसे ही कड़े मुकाबले में फर्रुखाबाद सीट पर बीजेपी के मुकेश राजपूत ने एसपी के नवल किशोर शाक्य को 2678 वोटो से शिकस्त दी. इस सीट पर बीएसपी के क्रांति पांडे को 45390 वोट मिले. बांसगांव लोकसभा सीट पर बीजेपी के कमलेश पासवान 3150 वोटो से कांग्रेस प्रत्याशी सदल प्रसाद को हराया. इस सीट पर बीएसपी प्रत्याशी रामसमुझ 64750 वोटो के साथ तीसरे नंबर पर रहे.
पूरे प्रदेश में 15 ऐसी लोकसभा सीटें हैं जहां पर इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के हार का फासला बीएसपी प्रत्याशी द्वारा प्राप्त मतों से कम है. इनमें अमरोहा अलीगढ़, फतेहपुर सीकरी, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, फर्रुखाबाद, अकबरपुर, फूलपुर, बांसगांव, भदोही, मेरठ, उन्नाव और देवरिया शामिल हैं.
मायावती ने बीजेपी को भी पहुंचाया चोट
प्रदेश में कछ ऐसी भी सीटें है जहां पर बीएसपी प्रत्याशी बीजेपी का खेल बिगाड़ते नजर आए. प्रदेश की हमीरपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के राजेंद्र सिंह ने 2629 वोटो से बीजेपी के कुंवर पुष्पेंद्र सिंह को हराया. इस सीट पर बीएसपी के निर्दोष कुमार दीक्षित 94696 वोटो के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
कुछ ऐसा ही हाल प्रदेश की धरौरा सीट पर रहा जहां एसपी के आनंद भदौरिया ने 4449 वोटो के साथ बीजेपी की रेखा वर्मा को हराया. यहां भी बीएसपी तीसरे स्थान पर थी और पार्टी के प्रत्याशी श्याम किशोर अवस्थी ने 185474 वोट प्राप्त किए. प्रदेश की सलेमपुर सीट पर भी कुछ ऐसा ही समीकरण देखने को मिला. एसपी के रमाशंकर राजभर ने बीजेपी के रविंद्र कुशवाहा को 3573 वोटो से हराया. यहां बीएसपी के भीम राजभर 80599 वोटो के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
वहीं, मायावती को भी अब अंदाज हो गया है कि मुस्लिम वोटर्स ने उनका साथ नहीं दिया है और इसलिए चुनाव में बीएसपी के खराब प्रदर्शन का गुस्सा उन्होंने मुस्लिमों पर उतारा.
बीएसपी सुप्रीमो ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी का खास अंग मुस्लिम समाज, जो पिछले कई चुनावों में और इस बार भी उचित प्रतिनिधित्व देने के बावजूद भी बीएसपी को ठीक से नहीं समझ पा रहा है. अब ऐसी स्थिति में आगे इनको काफी सोच समझ कर ही चुनाव में पार्टी द्वारा मौका दिया जाएगा, जिससे आगे पार्टी को भविष्य में इस बार की तरह भयंकर नुकसान ना हो.
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