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एजेंसियों के निशाने पर रहे 'दलबदलु' नेताओं का लोकसभा चुनाव में क्या रहा हाल?

13 दलबदलू उम्मीदवारों में से नौ या उनके परिवार के सदस्य जांच एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में हैं, और वो लोकसभा चुनाव हार गए.

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चुनाव
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Lok Sabha Election Result: भारतीय राजनीति की स्वर्णिम आभा में "दलबदलू" शब्द पिछले पांच दशक से अधिक समय से मौजूं है. चुनाव पूर्व नेताओं के पाल-बदलने की प्रक्रिया अनवरत जारी रही है और ये हाल में हुए आम चुनाव के दौरान भी देखा गया. कई गंभीर मामलों में फंसे नेताओं ने अपने सुविधा के अनुसार पाला बदल कर चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.

इस आर्टिकल में हम उन नेताओं की कुंडली तराशेंगे जो चुनाव पूर्व किसी न किसी मामले में फंसे होने के बाद पार्टी बदल कर चले गए थे, उसमें से कितनों को सफलता मिली और कितने असफल साबित हुए, आइए जानते हैं.

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महाराष्ट्र में शिवसेना शिंदे गुट की यामिनी जाधव से लेकर पश्चिम बंगाल में बीजेपी के तपस रॉय तक, झारखंड में कांग्रेस के प्रदीप यादव से लेकर राजस्थान में बीजेपी की ज्योति मिर्धा तक, 13 दलबदलू उम्मीदवारों में से नौ या उनके परिवार के सदस्य जांच एजेंसियों द्वारा जांच के दायरे में हैं, और वो लोकसभा चुनाव हार गए.

अहम बात ये है कि हारने वाले नौ उम्मीदवारों में से सात बीजेपी या उसके सहयोगी दलों के हैं.

शनिवार (1 जून) को संपन्न हुए चुनावों में 150 से अधिक दलबदलू (एक राजनीतिक दल से दूसरे दल में जाने वाले राजनेता) मैदान में थे. इनमें से 13 उम्मीदवार या उनके परिवार के सदस्य केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का सामना कर रहे हैं.

BJP में सबसे अधिक दलबदलू शामिल हुए

इन 13 विधायकों में से आठ बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिसमें सात कांग्रेस से और एक तृणमूल कांग्रेस से हैं. दो विधायक शिवसेना से शिवसेना शिंदे गुट में शामिल हो गए थे, एक विधायक वाईएसआरसीपी से टीडीपी में शामिल हो गया था और विधायक क्रमशः झारखंड विकास पार्टी और पीईपी से कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

9 दलबदलू लोकसभा चुनाव हारे

एजेंसी की जांच के दायरे में आए आठ नेताओं में से जो बीजेपी में शामिल हुए, उनमें से छह चुनाव हार गए. शिवसेना के शिंदे गुट में शामिल हुए दो नेताओं में से एक हार गया और झारखंड विकास पार्टी और पीईपी के एक-एक नेता जो कांग्रेस में शामिल हो गए थे, वे भी हार गए.

हारने वाले प्रमुख दलबदलुओं में राजस्थान के नागौर से ज्योति मिर्धा, उत्तर प्रदेश के जौनपुर से कृपाशंकर सिंह, कोलकाता उत्तर से तपस रॉय, आंध्र प्रदेश के अराकू से कोथापल्ली गीता, पटियाला से प्रणीत कौर और झारखंड के सिंहभूम से गीता कोड़ा शामिल हैं. शिवसेना शिंदे गुट से यामिनी जाधव मुंबई दक्षिण से चुनाव हार गईं, जबकि कांग्रेस से प्रदीप यादव झारखंड के गोड्डा से हार गए.

दलबदलू नेताओं पर क्या आरोप?

कांग्रेस की पूर्व नेता ज्योति मिर्धा सितंबर, 2023 में बीजेपी में शामिल हो गई थीं, जबकि लोकसभा चुनाव में करीब छह महीने बाकी थे. कुछ महीने पहले, प्रवर्तन निदेशालय ने शिप्रा समूह की शिकायत के आधार पर इंडियाबुल्स के खिलाफ जांच शुरू की थी. इंडियाबुल्स का संचालन मिर्धा के ससुराल वाले करते हैं- इंडियाबुल्स के प्रमोटर समीर गहलोत मिर्धा के पति नरेंद्र गहलोत के भाई हैं.

मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह पर 2012 में महाराष्ट्र भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) द्वारा आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच की जा रही थी. ईडी ने एसीबी मामले के आधार पर जांच शुरू की लेकिन फरवरी 2018 में सिंह को मंजूरी न मिलने के कारण अदालत ने बरी कर दिया था. 2019 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 2021 में बीजेपी में शामिल हो गए.

प्रवर्तन निदेशालय ने इस साल जनवरी में पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल के मुख्य सचेतक के आवास पर नगर निकाय भर्तियों में कथित अनियमितताओं से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले के सिलसिले में छापा मारा था. मार्च की शुरुआत में, तपस रॉय बीजेपी में शामिल हो गए और उन्हें पार्टी ने कोलकाता उत्तर से मैदान में उतारा. हालांकि, वे टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय से हार गए.

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2019 के चुनावों में, झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा राज्य से जीतने वाली एकमात्र कांग्रेस उम्मीदवार थीं. चूंकि उनके पति सीबीआई और ईडी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज कई मामलों में से एक में दोषी हैं और अन्य में जांच जारी है, इसलिए वह इस साल फरवरी में बीजेपी में शामिल हो गईं और उन्हें उनके गढ़ सिंहभूम से मैदान में उतारा गया. हालांकि, वह जेएमएम उम्मीदवार से हार गईं.

आंध्र प्रदेश में, पूर्व वाईएसआरसीपी सांसद कोथापल्ली गीता और उनके पति पी रामकोटेश्वर राव पर 2015 में सीबीआई द्वारा पंजाब नेशनल बैंक को कथित तौर पर गलत तथ्य पेश करके 42 करोड़ रुपए का लोन न चुकाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था और आरोप पत्र दाखिल किया गया था.

जुलाई 2019 में गीता बीजेपी में शामिल हो गईं. लेकिन सितंबर 2022 में उन्हें ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और उनके पति के साथ पांच साल की कैद की सजा सुनाई. उन दोनों को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. दंपति को जल्द ही राहत मिल गई क्योंकि तेलंगाना हाईकोर्ट ने न केवल उन्हें जमानत दी बल्कि सजा को भी निलंबित कर दिया. हालांकि, चूंकि सजा बरकरार रही, इसलिए गीता चुनाव नहीं लड़ सकीं.

12 मार्च को तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी सजा पर रोक लगाकर रास्ता साफ कर दिया. 28 मार्च को बीजेपी ने घोषणा की कि वह अराकू निर्वाचन क्षेत्र से पार्टी की उम्मीदवार हैं. हालांकि, वह वाईएसआरसीपी की गुम्मा रानी से चुनाव हार गईं.

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कांग्रेस के पूर्व नेता और पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर को बीजेपी ने पटियाला से मैदान में उतारा था. उनके बेटे रणिंदर सिंह विदेशी मुद्रा उल्लंघन के एक मामले में 2020 में ईडी की जांच के घेरे में आए थे. नवंबर 2021 में अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी. अगले ही साल वह बीजेपी में शामिल हो गए. कौर कांग्रेस के धर्मवीर गांधी और आप के बलबीर सिंह के बाद तीसरे स्थान पर रहीं.

महाराष्ट्र में शिवसेना की यामिनी जाधव जून 2022 में पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे गुट में शामिल हो गई थीं, जिससे राज्य में उद्धव ठाकरे सरकार गिर गई थी. यामिनी और उनके पति यशवंत जाधव तब कई मामलों में ईडी की जांच का सामना कर रहे थे. इन चुनावों में एनडीए ने यामिनी को मुंबई दक्षिण से मैदान में उतारा था, लेकिन वह शिवसेना यूबीटी के अरविंद सावंत से हार गईं.

शिवसेना के दिग्गज नेता रवींद्र वायकर जून 2022 में महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान उद्धव ठाकरे के साथ रहे. हालांकि, महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली नई एनडीए सरकार ने जल्द ही उनके खिलाफ मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOU) द्वारा जांच शुरू कर दी, जिसके बाद ईडी ने भी जांच शुरू कर दी. इस मार्च में, वायकर शिंदे खेमे में चले गए और कहा कि उन्हें जेल जाने या पार्टी बदलने के बीच चुनाव करना होगा. उन्हें मुंबई उत्तर पश्चिम से मैदान में उतारा गया और वे बमुश्किल 48 वोटों से जीत पाए.

झारखंड से चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के प्रदीप यादव को ऐसी किस्मत नहीं मिली. पिछले साल ईडी ने उन पर छापा मारा था, लेकिन वे बीजेपी के निशिकांत दुबे से चुनाव हार गए थे. वे जेवीपी से कांग्रेस में आए थे. पंजाब के संगरूर से कांग्रेस उम्मीदवार सुखपाल सिंह खैरा, जो पंजाब एकता पार्टी से पार्टी में शामिल हुए थे, भी ईडी की जांच का सामना कर रहे थे, लेकिन हार गए.

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वायकर जैसे अन्य लोग भी थे, जो एजेंसियों की छाया में रहने और पक्ष बदलने के बावजूद जीते. उनमें से प्रमुख नवीन जिंदल थे, जो चुनाव से कुछ महीने पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए और कुरुक्षेत्र निर्वाचन क्षेत्र से जीते. कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में चार्जशीट किए गए जिंदल पर बीजेपी में शामिल होने से कुछ महीने पहले एक नए मामले में ईडी ने छापा मारा था.

इसी तरह, टीडीपी के पूर्व राज्यसभा सांसद सीएम रमेश, जो 2019 में उनसे जुड़ी एक कंपनी के परिसरों पर आयकर छापे के बाद बीजेपी में शामिल हुए थे, आंध्र प्रदेश के अनकापल्ले से जीते. यहां तक ​​कि टीडीपी के मगुंटा श्रीनिवासुलु रेड्डी, जिनके बेटे को दिल्ली आबकारी नीति मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया था, लेकिन सरकारी गवाह बनने के बाद रिहा कर दिया गया, वे भी ओंगोल से जीत गए.

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