लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Election 2024) का पूरा निचोड़ एक लेटर या कहें एक अक्षर में छिपा था.. वो है म या इंग्लिश का एम. जी हां.. म यानी एम से मोदी, मंदिर, मुसलमान, मुफ्त अनाज, मीडिया.. लेकिन विपक्षी पार्टियों ने भी म से महंगाई और एम से मनी को मुद्दा बनाया.
नरेंद्र मोदी के नाम पर सवार भारतीय जनता पार्टी को मोदी की गांरटी काम नहीं आई. भले ही एनडीए तीसरी बार सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा पार करती दिख रही है लेकिन गॉडली इमेज से पर्दा हट गया है.
चलिए आपको इस चुनाव के नतीजे और बीजेपी की सीटों के कम होने की असल वजह बताते हैं.
जीत की कहानी बताने से पहले आंकड़ों पर नजर डालते हैं. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटें जीती थीं, वहीं कांग्रेस के खाते में सिर्फ 52 सीटें आई थीं. तब BJP का वोट शेयर 37% था, वहीं कांग्रेस का वोट शेयर करीब 19% था.
वहीं इस चुनाव में अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी को 37% वोट मिले हैं और कांग्रेस को 23%. मतलब ये हुआ कि बीजेपी की सीटें कम हुईं और वोट शेयर भी जस का तस रहा. वहीं कांग्रेस का वोट शेयर करीब 4 फीसदी बढ़ा है और सीट डबल हुई लेकिन एक दिलचस्प बात ये है कि कुल 543 सीटों में से, कांग्रेस 318 पर चुनाव लड़ रही है जबकि शेष सीटें INDIA गुट के सहयोगियों द्वारा लड़ी जा रही हैं. वहीं BJP ने 440 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे.
महंगाई
अब बात करते हैं उन फैक्टर्स की जिसकी वजह से बीजेपी को नुकसान हुआ. सबसे पहला नाम आएगा महंगाई का. पेट्रोल से लेकर गैस सिलेंडर, सब्जी, तेल, दाल, हवाई यात्रा, ट्रेन का टिकट.. लोग महंगाई पर दबे जुबान बात जरूर करते थे. यही वजह है कि महंगाई का बढ़ना बीजेपी के लिए महंगा साबित हुआ.
महंगाई के मुद्दे पर बीजेपी के बड़े से लेकर छोटे नेताओं के पास कोई ठोस जवाब नहीं था. कभी कोई कोरोना के फ्री इंजेक्शन का हवाला देता तो कोई कहता कि लोगों के इनकम बढ़ी है, सरकार लोन दे रही है.
मंदिर
चुनाव आयोग को छोड़ दें तो ये बात किसी से छिपी नहीं थी कि बीजेपी ने अपने चुनाव प्रचार को राम मंदिर और धर्म के इर्द गिर्द रखा था. पिछले 3 दशक से भारत में अयोध्या में राम मंदिर सबसे ज्वलंत मुद्दा रहा है और इस एक मुद्दे ने भारत की राजनीति को एक अलग आकार भी दिया है. 1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन हो या 22 जनवरी 2024 यानी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, बीजेपी ने हर बार हिंदू वोट बैंक को संगठित करने की कोशिश की है.
बीजेपी के बड़े से लेकर छोटे नेताओं ने अपने भाषणों से लेकर सोशल मीडिया पर राम मंदिर बनने के पीछे बीजेपी और खासकर पीएम नरेंद्र मोदी को क्रेडिट दिया. यही नहीं बीजेपी ने विपक्षी पार्टियों का प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जाने को भी चुनावी मुद्दा बनाया. लेकिन चुनाव के नतीजों के देखकर ऐसा लग रहा है कि इस बार लोगों ने ये समझा कि राम मंदिर पर फैसला कोर्ट का था और बीजेपी को मंदिर के नाम पर राजनीति नहीं करनी चाहिए.
इसे आप ऐसे समझिए कि राम मंदिर वाले उत्तर प्रदेश में 2019 में 62 सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार 40 सीट भी नहीं ला सकी. और तो और बीजेपी के हाथ से अयोध्या सीट भी निकल गई.
मुसलमान
बीजेपी और खासकर पीएम मोदी ने अपने कई भाषणों में मुसलमानों का जिक्र किया. पीएम मोदी ने अपनी रैलियों में सरकार की उपलब्धि से ज्यादा मुसलमानों का डर दिखाया.
पीएम मोदी ने 19 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग खत्म होते ही मुसलमानों का जिक्र अपने चुनाव में करने लगे. 21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में चुनावी रैली में दिए एक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला दिया और मुसलमानों पर टिप्पणी की. पीएम मोदी ने अपने भाषण में समुदाय विशेष के लिए 'घुसपैठिए' और 'ज्यादा बच्चे पैदा करने वाला' जैसी बातें कहीं. अपने भाषण में मोदी ने कहा था,
"पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे. क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंज़ूर है ये?"
बता दें कि क्विंट की पड़ताल में ये सामने आया है कि अपने 155 चुनावी रैलियों में पीएम मोदी ने 286 बार मुसलमान शब्द का जिक्र किया.
'मंगलसूत्र'
यहां मंगलसूत्र का मतलब पीएम मोदी के भाषण से नहीं बल्कि महिलाओं से है. 2019 के लोकसभा चुनाव मे जीत के पीछे एलपीजी सिलेंडर वाली उज्ज्वला योजना को क्रेडिट दिया जाता है लेकिन इस चुनाव में उसी उज्जवला योजना के जरिए विपक्ष बीजेपी को घेरती दिखी. दरअसल, गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमत ने बीजेपी के खिलाफ नाराजगी बढ़ा दी.
मैसेजिंग
एक कहावत है कि झूठ को इतनी बार बोलो की लोग उसे भी सच समझने लगे. बीजेपी ने भी अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए हर रास्ता अपनाया लेकिन इस बार विपक्षी पार्टियों ने भी बीजेपी के बयानों का काउंटर करना शुरू किया.
'मैसेजिंग मास्टर' बीजेपी को कांग्रेस कई बार सोशल मीडिया पर पीछे धकेलती दिखी. यूट्यूब से लेकर इंस्टाग्राम, फेसबुक सब जगह कांग्रेस और विपक्ष एग्रेसिव दिखा.
बीजेपी की मैसेजिंग को ऐसे समझिए कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसरों के लिए बड़ा ईवेंट कराया. सैकड़ों यूट्यूबर्स के जरिए बीजेपी ने सॉफ्ट मैसेजिंग का भी काम किया. लेकिन कांग्रेस और बाकी दलों ने छोटे-छोटे यूट्यूबर्स के जरिए अपनी कहानी और संदेश लोगों तक पहुंचाने का रास्ता चुना.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद से करीब 50 से ज्यादा इंटरव्यू दिए लेकिन विपक्ष ने उन इंटरव्यू पर भी सवाल उठाए.
मैनेजमेंट
बीजेपी की जीत के पीछे एक अहम वजह रहा है उसका मैनेजमेंट. बूथ से लेकर मीडिया मैनेजमेंट. लेकिन इस बार बीजेपी के वोटर और वर्कर ग्राउंड पर थके दिखे. कार्यकर्ता में वो उत्साह नहीं दिखा जिसका असर वोट प्रतिशत पर भी पड़ा.
माननीय सांसदों का टिकट कटा
10 साल से सत्ता में बैठी बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी थी, बीजेपी को भी इस बात का अंदाजा था जिसकी वजह से बीजेपी ने अपने 100 से ज्यादा मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए थे लेकिन यही मैसेज बैकफायर किया और लोगों ने सवाल पूछा कि कब तक सिर्फ मोदी के नाम पर उम्मीदवारों को वोट मिलेंगे.
मुफ्त अनाज
लोकसभा चुनाव में इस बार मुफ्त राशन भी एक बड़ा मुद्दा रहा. भले ही मोदी सरकार 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से निकालने का दावा करती हो लेकिन सवाल है कि आजादी के इतने साल बाद भी फ्री राशन पर चुनाव हो रहे हैं तो फिर गरीबी के आंकड़ों पर भी सवाल है.
बता दें कि कोरोना काल के दौरान मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत लाभार्थियों को 5 किलो अनाज फ्री में मिलना था. जिसे अब सरकार ने 5 साल और बढ़ा दिया है.
वहीं कांग्रेस ने भी इसका काट निकाला और 5 किलो मुफ्त राशन की जगह 10 किलो राशन का ऐलान किया.
कुल मिलाकर 400 पार के नारे पर उछलती मीडिया और एग्जिट पोल में 400 पार का आंकड़ा दिखाते पोल्सटर और एजेंसियों पर भी सवाल है कि क्या जनता की नब्ज टटोलने की जगह ये नेताओं का मन टोटल रहे थे.
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