लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में देश की हिंदी पट्टी में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को इस बार झटका लगा है. 225 सीटों में से बीजेपी 127 सीट ही जीत पाई है. 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी बहुमत से काफी पीछे रह गई. हालांकि, दक्षिण भारत (South India) में बीजेपी के प्रदर्शन में सुधार हुआ. कर्नाटक छोड़ दें तो अन्य राज्यों से पार्टी के लिए सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं.
दक्षिण भारत के 5 राज्यों में कैसा रहा BJP का प्रदर्शन?
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल को मिलाकर दक्षिण भारत में लोकसभा की कुल 129 सीटें हैं. बीजेपी को मात्र 29 सीटें मिली हैं. तमिलनाडु को छोड़कर बीजेपी चार राज्यों में खाता खोलने में सफल रही. इसमें सबसे अहम केरल है. लेफ्ट के गढ़ में 'कमल' खिलाना बीजेपी के लिए बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है. इसके साथ ही पार्टी का वोट शेयर भी बढ़ा है.
2019 में भी बीजेपी दक्षिण भारत में 29 सीटें जीती थी. हालांकि, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु में पार्टी का खाता नहीं खुला था.
बीजेपी को किन राज्यों में फायदा और कहां हुआ नुकसान?
तेलंगाना में बीजेपी का लगातार बढ़ता दायरा
भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस ने एक दशक पुराने तेलंगाना राज्य में आठ-आठ सीटें जीती हैं जबकि भारत राष्ट्र समिति (BRS) को लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी ने 2019 के मुकाबले अपनी सीटों की संख्या दोगुनी की है जबकि कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव में महज तीन सीटें जीती थीं.
AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी उम्मीदवार माधवी लता को हराकर लगातार पांचवीं बार अपनी हैदराबाद सीट बरकरार रखी है. माधवी लता पर मतदान के दिन मुस्लिम मतदाताओं को परेशान करने का आरोप लगा था.
लोकसभा चुनाव के नतीजे तेलंगाना में बीजेपी की बढ़ती मौजूदगी का सबूत हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में एक सीट (गोशामहल) जीतने से लेकर 2023 के विधानसभा चुनाव में आठ सीटों पर कब्जा करने तक, राज्य में पार्टी की बढ़त लगातार बनी हुई है.
पिछले एक दशक में, पार्टी ने सांप्रदायिक की चिंगारी को हवा देकर तेलंगाना में हिंदू वोटों को एकजुट करने की कोशिश की है- चाहे वह कथित हेट स्पीच के जरिए हो या अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित तौर पर हिंसा भड़काने के माध्यम से.
पार्टी ने कई जगहों के नाम बदलने की बात कहकर हैदराबाद ने निजाम के शासन के इतिहास के साथ भी हेरफेर करने की कोशिश की है, जिससे की तथाकथित हिंदू अतीत को "दोबारा" स्थापित किया जा सके.
BRS के दूसरे कार्यकाल के दौरान, बीजेपी ने कांग्रेस के दम पर लाभ कमाया- 2019 के लोकसभा चुनावों में चार सीटें जीतीं, 2020 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनावों में 40 से अधिक सीटें जीतीं, और उसके बाद विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों में जीत हासिल की.
2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उत्तरी तेलंगाना में अपनी उपस्थिति बढ़ाई, जहां अल्पसंख्यकों और आदिवासियों की अधिक आबादी है.
आंध्र प्रदेश में बीजेपी को 3 सीट
दक्षिणी गढ़ जहां 2019 तक बीजेपी का वोट शेयर नोटा से भी कम था और शून्य सीटें थीं. बीजेपी ने इस बार तीन सीटें- अनकापल्ले, राजमुंदरी और नरसापुरम- 2 लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीती है. बीजेपी ने 11.28% वोट शेयर हासिल किया है.
बीजेपी ने 10 विधानसभा और 6 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा और आठ विधानसभा और तीन लोकसभा सीटें जीतीं, जबकि 2019 में उसे एक भी सीट नहीं मिली थी. बीजेपी दो लोकसभा सीटों पर मामूली अंतर से हारी है.
2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 7.22% था जो 2019 में 0.98% तक गिर गया. वहीं विधानसभा चुनाव में 2014 में पार्टी का वोट शेयर 4.13% था जो 2019 में घटकर 0.84% हो गया था.
आंध्रा में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और पवन कल्याण की जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन को बीजेपी की जीत का बड़ा कारण माना जा रहा है.
कर्नाटक में जोर का झटका
दक्षिण भारत में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका कर्नाटक में लगा है. 2019 में प्रदेश के 28 में से 26 (1 बीजेपी समर्थित निर्दलीय) सीटें जीतने वाली पार्टी इस बार 17 सीटें ही हासिल कर सकी. हालांकि, बीजेपी-जेडीएस गठबंधन ने 19 सीटों पर कब्जा जमाया है. सत्तारूढ़ कांग्रेस ने 9 सीटें जीतकर अपनी स्थिति में सुधार किया है. पिछली बार उसे 1 सीट ही मिला था.
दक्षिण भारत में बीजेपी के हिंदुत्व के गढ़ कर्नाटक में पार्टी की 'मोदी की गारंटी' और सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ कांग्रेस की पांच गारंटी योजना के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली.
9 लोकसभा सीटें हारने और 13 सीटों पर जीत का अंतर कम होने के बावजूद, 2019 के मुकाबले बीजेपी का वोट शेयर केवल 1.41% ही गिरा है. इस बार पार्टी को 46% वोट मिले हैं.
तटीय कर्नाटक के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में जहां बीजेपी ने हिंदुत्व कार्ड चला था, वहीं प्रधानमंत्री ने "भारत के लिए मोदी, दक्षिण के लिए सूर्या" का 'विकास' नारा दिया था.
एक और कारण जिसकी वजह से पार्टी की जीत का सिलसिला बरकरार रहा, वह तटीय और ग्रामीण कर्नाटक के कुछ हिस्सों में मौजूदा बीजेपी सांसदों को टिकट न देना था, जहां गंभीर सत्ता विरोधी भावना और गुस्सा था. इससे उन्हें सभी चार सीटें जीतने में मदद मिली.
तमिलनाडु में सीट शून्य, लेकिन वोट शेयर बढ़ा
एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ DMK ने तमिलनाडु में क्लीन स्वीप किया है. पार्टी के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक ने राज्य की सभी 39 सीटों पर कब्जा जमाया है. इस बार भी बीजेपी का खात नहीं खुल पाया.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई दावा कर रहे थे कि पार्टी को 25% वोट मिलेंगे, साथ ही उसकी सीटों में भी बढ़ोतरी होगी. लेकिन उनके दावों की हवा निकल गई.
2024 के लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी का तमिलनाडु पर पूरा फोकस था. प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले पांच महीनों में 10 से अधिक बार राज्य का दौरा किया. साथ ही कोयम्बटूर और चेन्नई में रोड शो के अलावा कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में जनसभाएं भी की, लेकिन पार्टी को नतीजों में कोई फायदा नहीं मिला.
2019 में पार्टी का वोट शेयर में 3.66% था, जो 2024 में बढ़कर 11% हो जाना निस्संदेह एक राहत की बात है. जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि पहले गठबंधन में रहते हुए बीजेपी 5-6 सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी, लेकिन इस बार पार्टी ने अपने चुनाव चिह्न पर 20 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा.
केरल में खुला खाता
भारतीय जनता पार्टी (BJP) का आखिरकार केरल में खाता खुल गया है– एक ऐसा राज्य जो लंबे समय से बीजेपी की पकड़ से दूर था. बीजेपी ने एक सीट- त्रिशूर पर जीत दर्ज की है. अभिनेता सुरेश गोपी ने 74,686 मतों के अंतर से जीत हासिल की है. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, पार्टी ने केरल में वोट शेयर में भी सुधार किया है– 2019 में 15.64% से 2024 में 16.68%.
केरल के 68 साल के इतिहास में बीजेपी राज्य में अपनी पैठ नहीं बना पाई है, सिवाय 2016 के जब पार्टी के ओ राजगोपाल ने तिरुवनंतपुरम की नेमोम विधानसभा सीट जीता था. हालांकि, 2021 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इन सालों में केरल में पार्टी का विरोध बीजेपी के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं रहा, यह देखते हुए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) 1940 के दशक से ही राज्य में सक्रिय है और इसकी 5,000 से अधिक शाखाएं हैं.
त्रिशूर में पूर्व राज्यसभा सांसद सुरेश गोपी को तीसरी बार मैदान में उतारने का बीजेपी का फैसला सही साबित हुआ. 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनावों में गोपी इस निर्वाचन क्षेत्र में पार्टी का वोट शेयर बढ़ाने में कामयाब रहे, हालांकि वे दोनों बार तीसरे स्थान पर रहे.
नायर समुदाय से आने वाले गोपी त्रिशूर में अपर कास्ट मतदाताओं को प्रभावित करने में सफल रहे. इसके साथ ही उन्हें ईसाई वोटर्स का भी समर्थन मिला. त्रिशूर के प्रधान पादरी ने अमित शाह से मुलाकात भी की थी.
दूसरी तरफ तिरुवनंतपुरम में बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने उन्हें कड़े मुकाबले में 16,077 वोटों से हराया है.
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