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MP कैबिनेट में मिशन 2024 की झलक: क्षेत्रीय-जातीय समीकरण पर जोर; नए पर भरोसा-अनुभव को जगह

MP: CM मोहन यादव ने अपनी कैबिनेट में 28 मंत्रियों को शामिल किया है. इसके अलावा दो डिप्टी सीएम पहले ही शपथ ले चुके हैं.

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मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपना कुनबा बढ़ा लिया. 12 दिनों तक दिल्ली में हुई कई राउंड की मैराथन बैठक और हाईकमान के अंतिम मुहर लगने के बाद मोहन यादव ने अपनी कैबिनेट में 28 मंत्रियों को शामिल कर लिया. इसमें नए और पुराने चेहरों के साथ अनुभवी लोगों को जगह मिली है, जिसमें केंद्र में मंत्री से लेकर राष्ट्रीय संगठन के प्रमुख नेता भी शामिल है.

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इस आर्टिकल में हम मध्य प्रदेश में हुए कैबिनेट विस्तार का विश्लेषण करेंगे और ये जानने की कोशिश करेंगे की एमपी के जरिए बीजेपी ने कैसे 2024 लोकसभा चुनाव के राजनीतिक समीकरण को साधने की कोशिश की है? और पार्टी ने क्या संदेश दिया?

क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधने की कोशिश

मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री समेत कुल 35 मंत्री बनाए जा सकत हैं. सीएम मोहन यादव और दो डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा 13 दिसंबर को ही शपथ ले चुके थे. ऐसे में 32 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया जा सकता था, जिसमें से मोहन यादव ने 28 का चुनाव किया.

मोहन यादव के मंत्रिमंडल में शामिल 28 में से 18 कैबिनेट, 6 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और चार को राज्यमंत्री बनाया गया है.

मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल में युवा जोश के साथ अनुभव को भी तवज्जो दिया है. कैबिनेट के 31 सदस्यों की औसत उम्र 58 वर्ष है. इसमें 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वाले 14 मंत्री हैं. सबसे अनुभवी करण सिंह वर्मा 68 वर्ष के हैं जबकि सबसे युवा मंत्री प्रतिमा बागरी उम्र 35 साल की हैं.

बीजेपी ने मोहन यादव के पहली कैबिनेट विस्तार में क्षेत्रीय और जातीय समीकरण को भी बखूबी साधने की कोशिश की है. मंत्रिमंडल विस्तार में जिन 28 मंत्रियों ने शपथ ली है, उनमें से 12 मंत्री ओबीसी कोटे से हैं. इसके अलावा सामन्य कैटेगरी से 7, अनुसूचित जाति (SC) से 5 और अनुसूचित जनजाति (ST) से 4 विधायकों ने मंत्री बनाया गया है. जबकि सीएम मोहन यादव ओबसी, डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला ब्राह्मण और जगदीश देवड़ा अनुसूचित जनजाति से आते हैं.

कुल मिलाकर अगर मध्य प्रदेश में सरकार को देखें तो कैबिनेट में ओबीसी से 13, जनरल कैटगरी से 8, एससी से 5 और एसटी से 6 विधायकों को शामिल किया है. वहीं, नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा स्पीकर बनाया है, जो राजपूत हैं और वो भी फॉरवर्ड कास्ट से ही आते हैं.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, बीजेपी ने एमपी में कास्ट पॉलिटिक्स को साधने के लिए ओबीसी, ब्राह्मण, राजपूत, दलित और आदिवासी वोट का अंब्रेला तैयार करने की कोशिश की है.

इसके अलावा पार्टी ने क्षेत्रीय समीकरण में भी संतुलन बनाने की कोशिश की है. इसके तहत बीजेपी ने मालवा-निमाड़ से मुख्यमंत्री और डिप्टी समेत 10 विधायकों को मंत्री बनाया है, जबकि मध्य एमपी यानी भोपाल-नर्मदापुरम से 6, महाकौशल से पांच, ग्वालियर-चंबल से चार, बुंदेलखंड और विंध्य से तीन-तीन नेताओं को मंत्री बनाया है.

हालांकि, बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की तरह एमपी में भी ज्यादातर लोकसभा क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है. राज्य की 29 लोकसभा सीट में से 22 को प्रतिनिधित्व का मौका मिला है. सीएम और डिप्टी सीएम समेत 31 मंत्री, जिन क्षेत्र से आते हैं, उनसे से 22 सीटों को कवर किया गया है. इसमें रतलाम और होशंगाबाद लोकसभा सीट से तीन-तीन मंत्री बनाए गये हैं.

पहले चर्चा था कि सभी 29 सीटों से किस न किसी को मंत्री बनाया जाएगा, लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार में ऐसा नहीं दिखा.
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कैबिनेट में महिलाओं को जगह

मोहन यादव सरकार में 30 मंत्रियों में से कुल पांच महिला विधायकों को मंत्री बनाया गया है. यानी कैबिनेट में 17 फीसदी हिस्सेदारी महिलाओं की है. शिवराज सरकार में 33 मंत्रियों में से तीन महिलाओं को सरकार में जगह मिली थी. यानी महिला हिस्सेदारी 9 फीसदी थी.

बीजेपी ने क्या संदेश दिया?

एमपी में बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. पार्टी हाईकमान ने अपने स्वभाव के अनुरूप एक बार बनी बनाई अवधारण को तोड़ते हुए शिवराज सिंह चौहान की जगह नए चेहरे मोहन यादव मुख्यमंत्री बनाया तो कैबिनेट विस्तार में कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद सिंह पटेल को जगह देकर, ये संदेश दिया कि पार्टी की जरूरत के मुताबिक नेताओं को काम करना होगा. नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाकर पार्टी पहले ही ऐसा संकेत दे चुकी थी. ये तीनों नेता सीएम पद के दावेदार माने जा रहे थे. इसके साथ ही पार्टी ने भविष्य को देखते हुए राज्यों में नई युवा पीढ़ी तैयार करने की कोशिश की है.

वहीं, कैबिनेट विस्तार में शामिल दस मंत्री पहले भी मंत्री रह चुके हैं, जबकि 13 विधायक पहली बार मंत्री बने है. कुल 17 नए चेहरों को कैबिनेट में जगह मिली है. इसके अलावा शिवराज सरकार के छह मंत्रियों को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गई है, जिसमें तुलसी सिलावट, विजय शाह, गोविंद सिंह राजपूत, विश्वास सारंग, इंदर सिंह परमार और प्रधुम्न सिंह तोमर का नाम शामिल है.

हालांकि, शिवराज सरकार में मंत्री रहे कई बड़े चेहरों को कैबिनेट में जगह नहीं दी गई है. इनमें भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव, बृजेंद्र सिंह यादव, ओमप्रकाश सकलेचा, बिसाहूलाल सिंह, मीना सिंह, हरदीप सिंह डंग और ऊषा ठाकुर जैसे नाम शामिल हैं. ये वो नेता हैं, जो कई बार विधायक रह चुके हैं.

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वहीं सिंधिया के खास ऐदल सिंह कंसाना, गोविंद राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर और तुलसीराम सिलावट को मोहन यादव की कैबिनेट में शामिल किया गया. लेकिन सिंधिया के करीबी प्रभुराम चौधरी को कैबिनेट में जगह नहीं दी गई है.

सूत्रों की मानें तो, जिन नेताओं को मंत्री नहीं बनाया गया है, उनमें से कई के खिलाफ तमाम आरोप हैं तो कुछ का संगठन में तालमेल ठीक नहीं है. हालांकि, कुछ को उम्र की वजह से भी मंत्री नहीं बनाया गया है.

हालांकि, मंत्रिमंडल में रीति पाठक का नाम शामिल न होना काफी चौंकाने वाला रहा है क्योंकि एमपी में बीजेपी ने जिन सात सांसदों को चुनाव में उतारा था, उनमें प्रहलाद पटेल, उदय राव सिंह, राकेश सिंह, रीति पाठक, नरेंद्र सिंह तोमर जीते थे. ऐसे में उम्मीद थी कि इन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, लेकिन जीते चार को जगह दी गई और रीति पाठक को मंत्री नहीं बनाया गया. इसके पीछे की वजह क्या है, ये कहना मुश्किल हैं. लेकिन इतना तय है कि बीजेपी ने साफ संदेश देने की कोशिश की है कि "पॉलिटिक्स ऑन पर्फॉरमेंस" वालों को ही तवज्जो मिलेगी.

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