MP Congress Manifesto: कांग्रेस ने चुनावी राज्य मध्य प्रदेश में अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है. सत्ता में वापसी की कवायद में जुटी 'ग्रैंड ओल्ड पार्टी' ने जनता को लुभाने के लिए कई बड़े ऐलान किये. इसमें स्वास्थ्य बीमा से लेकर किसानों की कर्ज माफी, जातीय जनगणना, मुफ्त बिजली और ओबीसी आरक्षण तक शामिल है.
इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे- कांग्रेस के घोषणा पत्र में क्या है? हिंदू और ओबीसी वोटर्स को कैसा साधने की कोशिश की है? सिंधिया को कैसे टारगेट किया गया? और मुफ्त के ऐलान से क्या होगी सत्ता में वापसी?
कांग्रेस के घोषणा पत्र में क्या है?
एक साल में तैयार हुए कांग्रेस के वचन पत्र में 59 विषय, 225 मुख्य बिंदु, 1290 वचन और 101 गारंटी दी गई है. घोषणा पत्र को 7 वर्गों के लिए बनाया गया है. पार्टी ने अपने घोषणा पत्र के जरिए सभी वर्ग को साधने की कोशिश की है.
इसमें गरीब, किसान, महिला,युवाओं के अलावा हिंदू वोट और ओबीसी पर भी पार्टी की नजर है. कांग्रेस ने अपने 'वचन पत्र' में किसानों का 2 लाख रुपये तक के कृषि ऋण माफ करने का ऐलान किया. साथ ही, धान 2500 रुपये क्विंटल और गेहूं 2600 रूपये क्विंटल के हिसाब से खरीदने की बात कही.
कमलनाथ ने कहा कि सरकार बनने के बाद युवाओं की दो लाख पदों के लिए भर्ती की जाएगी. वहीं, एक लाख अलग से पद बनाकर युवाओं को रोजगार देने का काम करेंगे. कांग्रेस नेता ने 25 लाख का स्वास्थ्य बीमा, वृद्धा पेंशन की तहत 1500 रुपये, बेटियों की शादी के लिए एक लाख 1 हजार रुपये, महिलाओं को 15 सौ रुपये माह, पत्रकारों की सम्मान निधि राशि बढ़ाकर 25 हजार और, युवाओं को तीन हजार रुपये बेरोजगारी भत्ता और पुरानी पेंशन योजना लागू करने का वादा किया.
हिंदू और OBC वोट पर नजर?
कांग्रेस ने वचन पत्र के जरिए हिंदू वोटर्स को भी अपने पाले में करने की कोशिश की है. पार्टी ने पिछली सरकार में शुरू की गई 1 हजार गोशालाएं फिर से खोलने की बात कही है. तो वहीं, नंदिनी गोधन योजना के तहत 2 रुपये प्रति किलो गोबर खरीदने का ऐलान किया है.
जानकारों की मानें तो, एमपी में कांग्रेस बहुत पहले से हिंदू वोटर्स को अपने पाले में करने में जुटी है. कमलनाथ लगातार मंदिरों का दौरा कर रहे हैं. वो संतों के साथ बैठक से लेकर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री से मुलाकात तक का प्रचार प्रसार करने से परहेज नहीं कर रहे हैं. कमलनाथ राज्य में कांग्रेस की छवि बदलने के लिए लगातार हिंदू वोटर्स को आकर्षित करने में जुटे हैं.
इस साल अगस्त में कमलनाथ से जब 'हिंदू राष्ट्र' को लेकर सवाल किया गया था तो उन्होंने कहा, "देश की 82 फीसदी जनता हिंदू है तो ये कोई कहने कि बात नहीं है, ये हिंदू राष्ट्र तो है ही."
पूर्व सीएम के बयान के बाद ये सवाल उठने लगा था कि क्या कमलनाथ कांग्रेस की सेक्युलर राजनीति छोड़ धर्म की राजनीति कर रहे हैं. क्योंकि वो कई मौके पर खुले मंच से आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की तारीफ कर चुके हैं. जो लगातार हिंदू राष्ट्र की वकालत करते आये हैं.
ऐसा नहीं है कि कमलनाथ ये सब पहली बार कर रहे हैं. साल 2015 में उन्होंने अपने चुनावी क्षेत्र में हनुमान की एक विशालकाय मूर्ति की स्थापना भी की है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.
2 अप्रैल 2023, को भोपाल के शिवाजी नगर स्थित मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय 'इंदिरा भवन' भगवा झंडों और बैनरों से पटा पड़ा था. तब कमल नाथ ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 'पुजारी प्रकोष्ठ' का गठन करके, उसकी बैठक का आयोजन किया था, जिसमें पूरे प्रदेश के विभिन्न मंदिरों के पुजारियों को बुलाया गया था.
वहीं, बतौर पीसीसी चीफ भी कमलनाथ ने करीब 40 से 45 प्रकोष्ठों का गठन किया है जिनमें पुजारी प्रकोष्ठ के अलावा 'मठ मंदिर प्रकोष्ठ' और धार्मिक उत्सव प्रकोष्ठ भी शामिल हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य में 90 फीसदी के करीब हिंदू आबादी हैं.
पिछले दिनों कांग्रेस द्वारा जारी 144 प्रत्याशियों की लिस्ट में भी सामान्य को सबसे ज्यादा और अल्पसंख्यक के सबसे कम नेताओं को टिकट दिया. कांग्रेस ने 47 सामान्य और एक सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है.
वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस की नजर ओबीसी वोटर्स पर है. इसलिए कमलनाथ ने एक बार फिर आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का वादा किया है.
जानकारी के अनुसार, एमपी में ओबीसी 50 फीसदी के करीब है और राज्य की 146 अनरिजर्वड सीटों पर मौजूदा समय में 60 ओबीसी विधायक हैं. कांग्रेस ने इस बार भी 39 सीटों पर OBC उम्मीदवार उतारे हैं.
2018 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने सामान्य सीटों पर 40 फीसदी ओबीसी को टिकट दिया था, जबकि बीजेपी ने 39 को दिया था. बीजेपी के 38, कांग्रेस के 21 और एक निर्दलीय ओबीसी विधायक चुनकर सदन में पहुंचे थे.
वहीं राज्य में सरकार बनने के बाद कमलनाथ ने 8 ओबीसी नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया था. इसके बाद 2019 में कमलनाथ सरकार ने 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण को बढ़कर 27 प्रतिशत कर दिया था. हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी थी. इसके बाद से बीजेपी भी सतर्क हो गयी है.
राज्य में सत्ता परिवर्तन (2020) होने के बाद शिवराज सिंह ने भी अपने कैबिनेट में 8 ओबीसी नेताओं को जगह देकर संदेश देने की कोशिश की कि बीजेपी ही पिछड़ों की हितैषी है.
पीएम मोदी ने भी सागर की रैली और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण देते हुए कहा, "विपक्ष ये पचा नहीं पा रहा है कि एक गरीब और पिछड़ी जाति का बेटा कैसे पीएम बन गया."
वरिष्ठ पत्रकार संजय दुबे ने कहा, "कांग्रेस प्रत्याशियों की लिस्ट और घोषण पत्र को देखकर साफ लगता है कि पार्टी हिंदू और ओबीसी को अपने पाले में करने की कोशिश कर रही है. कमलनाथ जहां मंदिरों का दौरा कर रहे हैं, तो वहीं, उन्होंने खुद को ओबीसी हितैषी बताने के लिए एक बार फिर आरक्षण बढ़ाने की दावा किया है."
उन्होंने आगे कहा, " राज्य में ओबीसी मतदाताओं का वर्चस्व हैं. बीजेपी भी OBC को अपने पाले में करने में जुटी है. पीएम से लेकर सीएम शिवराज तक अपने को ओबीसी हितैषी बताने में लगे हैं. ऐसे में कांग्रेस और कमलनाथ, दोनों ही वोटों में सेंधमारी करने में जुटे हैं."
कमलनाथ कांग्रेस की सेक्युलिरिजम छवि से निकल कर अपनी इमेज हिंदू नेता के तौर पर बनाने में लगे हैं. उनकी कुछ समय से कार्यशैली इसी बात को दिखाती है.संजय दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार पीयूष मिश्रा ने कहा, "कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लगभग 70 फीसदी पुराने दावे किये हैं, जो उसने 2018 में किए थे. ऐसे में जितनी उम्मीद की जा रही थी, उतना बड़ा कोई बड़ा ऐलान नहीं किया है. हां, हिंदुओं और ओबीसी पर पार्टी की निगाह है."
बीजेपी को अब तक OBC का समर्थन मिलता आया है. हालांकि, 2018 में कांग्रेस ने कुछ हद तक सेंधमारी की थी, लेकिन उतना नहीं कर पाई थी, जितनी उम्मीद थी, लेकिन इस बार कांग्रेस शुरुआत से ही आक्रमण रूप से ओबीसी आरक्षण की मांग उठा रही है.पीयूष मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार
सिंधिया को कैसे टारगेट किया गया?
घोषण पत्र के जरिए कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ने अपने ध्रुर विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया को छेड़ने की कोशिश की. वचन पत्र में कांग्रेस ने "कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान" के नाम से पुरस्कार देने का वादा किया है.
कांग्रेस ने कहा है कि सुभद्रा कुमारी चौहान पत्रकारिता सम्मान प्रारंभ कर महिला पत्रकारों को सम्मानित करेंगे. इस सम्मान स्वरूप 2 लाख रुपए दिए जाएंगे.
सुभद्रा कुमारी चौहान के नाम से पुरस्कार देने का वादा कर कांग्रेस ने एक बार फिर से 'महाराज' को उकसाने का काम कर दिया है.
दरअसल, सुभद्रा कुमारी चौहान ने 'झांसी की रानी' कविता में सिंधिया राजवंश को अंग्रेजों का मित्र बताया था. 1857 की क्रांति पर आधारित कविता में सुभद्र कुमारी ने लिखा है- 'अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी'.
इसके चलते सिंधिया राजवंश पर देश के साथ गद्दारी करने के आरोप लगते हैं. पहले ऐसे आरोप बीजेपी नेता लगाते थे, अब जब ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में हैं, तो कांग्रेस नेता ऐसे आरोप लगाने से परहेज नहीं कर रहे हैं.
साल 2023 अप्रैल में, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस नेता जयराम रमेश के बीच 'X' पर जमकर बयानबाजी हुई थी. कांग्रेस नेताओं को गद्दार कहे जाने से नाराज रमेश ने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उन्होंने लिखा- सुभद्रा कुमारी चौहान की मशहूर कविता भूल गए हैं.
मुफ्त के ऐलान से क्या होगी सत्ता में वापसी?
हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक की तरह एमपी में भी कांग्रेस ने वचन पत्र में मुफ्त के कई ऐलान किये हैं. इसमें 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर, मुफ्त स्कूली शिक्षा, किसानों को 5 हार्सपॉवर निःशुल्क बिजली देने के साथ 10 हार्सपॉवर तक 50 प्रतिशत छूट, 600 वर्गफुट तक के आवासी पट्टों का निःशुल्क पंजीयन, आवासीय पट्टेधारियों की निःशुल्क रजिस्ट्री, एक करोड़ से अधिक बिजली उपभोक्ताओं को 100 यूनिट फ्री बिजली और 200 यूनिट आधी दर पर देने, महानगरीय बस सेवाओं में महिलाओं को निशुल्क पास, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना फिर से लागू करने का वादा किया है.
अब सवाल है कि क्या मुफ्त ऐलान के जरिए सत्ता में वापसी की राह देख रही कांग्रेस सफल होगी? इस पर वरिष्ठ पत्रकार ललित राय ने कहा, "अगर आप मध्य प्रदेश के घोषणापत्र को देखें तो एक बात साफ है कि 'फ्री बी' के सहारे मतदाताओं के दिल में उतरने की कोशिश की गई है."
मतदातओं के सभी वर्गों को लुभाने के साथ ही सरकारी कर्मचारियों के लिए ओल्ड पेंशन स्कीम का वादा है लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्या कांग्रेस सभी वादों को जमीन पर कारगर तौर से उतार सकेगी. दरअसल इसके पीछे वजह हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक हैं, जहां चुनाव पहले कांग्रेस ने बड़े-बड़े वादे किए थे लेकिन जब योजनाओं के क्रियान्वयन की बारी आई तो सरकारी खजाने में फंड ही नहीं है. इसका अर्थ यह है कि कांग्रेस सिर्फ लोकप्रिय वादों के जरिए सत्ता में आने की जुगत भिड़ा रही है.ललित राय, वरिष्ठ पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार पीयूष मिश्रा ने कहा, "बीजेपी भी मुफ्त के वादे करती रही है. राज्य में शिवराज सिंह चौहान भी कई मुफ्त योजनाएं चला रहे हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सत्ता में वापसी मुफ्त ऐलान से ही होगी. हां, ये बात सच है कि हिमाचल और कर्नाटक में मुफ्त ऐलान से पार्टी को लाभ हुआ है लेकिन ये सब जगह चलेगा, ये संभव नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस ने मुफ्त ऐलान तो कई कर दिये, लेकिन इसका पैसा कहां से आएगा, एमपी पर पहले से ही कर्ज का बहुत बोझ है. ऐसे में मुफ्त की योजनाएं कैसे लागू होंगी, ये बड़ा सवाल है."
पीयूष मिश्रा ने कहा, "हमने कर्नाटक में देखा कि किस तरह कांग्रेस के विधायक फंड नहीं मिलने की बात सार्वजनिक रूप से कह रहे थे. अगर ऐसा ही सत्ता में आने के बाद यहां हुआ तो कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बड़ा झटका लग सकता है."
कांग्रेस के घोषणा पत्र को देखें तो ये साफ है कि मुफ्त रेवड़ियों पर सुप्रीम कोर्ट के तेवरों और चुनाव आयोग की नसीहतों का एमपी में असर होता नहीं दिख रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने तारीखों का ऐलान करते हुए लुभावने वादों पर पार्टियों को नसीहत दी थी. लेकिन कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र से स्पष्ट है कि चुनाव आयोग की नसीहत का कोई असर नहीं हो रहा है.
अब कांग्रेस का घोषणा पत्र सामने आ चुका है. पार्टी चुनावी तैयारियों में जुटी है. राहुल गांधी का दावा है कि एमपी में कांग्रेस की वापसी हो रही है. लेकिन घोषणा पत्र और दावों की बीच मौन जनता के मन में क्या चल रहा है, ये कहना मुश्किल है. लेकिन एक बात सच है कि कांग्रेस ने अपने वचन पत्र के जरिए बड़ा दांव चला है. इसका दबाव बीजेपी पर भी आने वाले समय में दिखेगा, लेकिन कौन कितना सफल होगा, ये 3 दिसंबर को ही पता चलेगा,
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