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महाराष्ट्र: जीरो से हीरो बनी कांग्रेस, उद्धव-शरद पवार मजबूत, क्यों हारी BJP-NDA?

Maharashtra Lok Sabha Election Result: वोट शेयर के मामले में बीजेपी टॉप पर, लेकिन सीटों के मामले में बुरी स्थिति क्यों?

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महाराष्ट्र (Maharashtra Lok Sabha Election Result) की 48 लोकसभा सीटों पर चुनावी नतीजे घोषित हो चुके हैं. नतीजे चौंकाने वाले और एग्जिट पोल से पूरी तरह अलग हैं. महायुति यानी NDA 17 सीटों पर जीतीं. वहीं महा विकास अघाडी (MVA) यानी इंडिया गुट (INDIA Bloc) 30 सीटें जीतने में कामयाब रही. एक सीट- सांगली निर्दलीय के खाते में गई है.

चलिए समझते हैं, यहां मोदी फैक्टर काम क्यों नहीं आया? कांग्रेस जीरो से महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी कैसे बनी? दो शिव सेना और पवार की पार्टियों का क्या हुआ?

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किस पार्टी को कितनी सीटें मिली?

महायुति

  • BJP: 9 सीटें जीतीं (28 सीटों पर लड़ा चुनाव)

  • NCP (अजित पवार): 1 सीट जीती (4 लड़ा चुनाव)

  • शिव सेना (एकनाथ शिंदे): 7 सीटें जीतीं (15)

  • राष्ट्रीय समाज पक्ष: 0 सीट (एनसीपी के कोटे की 1 सीट पर लड़ा चुनाव)

महा विकास अघाडी

  • कांग्रेस: 13 सीटें जीतीं (17)

  • NCP (शरद पवार): 8 सीटें जीतीं (10)

  • शिव सेना (उद्धव ठाकरे): 9 सीटें जीतीं (21)

Maharashtra Lok Sabha Election Result: वोट शेयर के मामले में बीजेपी टॉप पर, लेकिन सीटों के मामले में बुरी स्थिति क्यों?

बीजेपी को 14 सीटों का नुकसान हुआ, मामूली वोट शेयर घटा. उद्धव की सेना को भी बीजेपी जितनी सीटें मिलीं. कांग्रेस राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. शरद पवार की एनसीपी ने 10 सीटों पर चुनाव लड़ा और 8 पर जीत दर्ज की. अजित पवार की एनसीपी को ज्यादा सीटें नहीं मिली और वह 1 ही सीट निकाल पाए.

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किस पार्टी को कितना वोट मिला?

महायुति

  • BJP: 26.1%

  • NCP (अजित पवार समूह): 3.6%

  • शिव सेना (एकनाथ शिंदे ग्रुप): 12.9%

महा विकास अघाडी

  • कांग्रेस: 16.9%

  • NCP (शरद पवार): 10.2%

  • शिव सेना (उद्धव ठाकरे): 16.7%

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बीजेपी की सीटें कम क्यों हुई?

महाराष्ट्र में बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में 23 सीटें जीतीं थीं लेकिन 2024 में बीजेपी 9 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी को 14 सीटों का नुकसान हो गया साथ ही वोट शेयर में भी मामूली गिरावट आई.

महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार संजय जोग ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि, "राज्य में बहुत अधिक सत्ता विरोधी लहर है, मोदी की गारंटी काम नहीं आई, बीजेपी के पास दिखाने के लिए कुछ नहीं था. पीएम मोदी का 400 पार का नारा राज्य के एससी/एसटी वोटर्स को पसंद नहीं आया. उनको डर था अगर 400 पार हुआ तो मजबूत सरकार आरक्षण को छेड़ सकती है."

संजय जोग ने आगे कहा कि, "बीजेपी ने ऐसा दिखाया कि महाराष्ट्र के कर्ता-धर्ता वहीं हैं लेकिन सत्ता और धनबल का अहंकार, ईडी-सीबीआई का कथित इस्तेमाल उनके पक्ष में काम नहीं आया."

वो ये भी कहते हैं कि, महाराष्ट्र में RSS का परिवार 36 संस्थाओं के साथ मिलकर बना है लेकिन इस बार ये खुले तौर पर देखने को मिला की वो परिवार बीजेपी के साथ कई विषयों पर सहमत नहीं दिखा. बीजेपी की विचारधारा और उन संस्थाओं की विचारधारा मेल नहीं खा रहीं थीं."
संजय जोग

वहीं महाराष्ट्र की राजनीति पर नजर रखने वाले पत्रकार और लेखक जितेंद्र दीक्षित ने क्विंट हिंदी से बातचीत में पांच पॉइंट गिनाए:

  1. उद्धव की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी में टूट के बाद इनके पक्ष में सहानुभुति रही.

  2. बीजेपी ने उम्मीदवारों की घोषणा में देरी की, जिसका फायदा एनमवीए ने उठाया और अच्छा कैंपेन किया.

  3. किसानों की नाराजगी: उत्तर और पश्चिम राज्य के किसान नाखुश हैं, उन्होंने विरोध मार्च निकाले, किसान सरकार के प्याज निर्यात पर रोक से नाखुश हैं, उन्हें फसल का सही दाम नहीं मिला, पिछले साल मौसम अच्छा नहीं रहा-सूखा पड़ा लेकिन सरकार की तरफ से कोई राहत नहीं मिली.

  4. बीजेपी ने अजित पवार, अशोक चव्हाण जैसे नेताओं को पहले भ्रष्टाचारी बताया फिर उन्हीं को पार्टी में शामिल किया. इससे पार्टी की विश्वसनियता को डेंट लगा और लोगों ने इसे पसंद नहीं किया.

  5. और हां, एंटी इंकंबेंसी फैक्टर भी है. बीजेपी की कोई लहर नहीं थी, 2019 के जैसा कोई पुलवामा या राष्ट्रवाद की लहर नहीं थी, किसी ने राम मंदिर के नाम पर, हिंदुत्व के नाम पर या मोदी के नाम पर वोट नहीं किया.

जितेंद्र दीक्षित ने आगे कहा कि, "माराठा आरक्षण के मुद्दे का भी असर देखने को मिला, खासकर मराठवाड़ा इलाके में. कुल मिलाकर लोगों ने लोकल मुद्दों पर उम्मीदवार को देखकर वोट डाला है."
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दो सेना और दो पवार - पार्टियों का क्या हुआ? 

लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना में टूट हो गई. एक बनी एकनाथ शिंदे की शिवसेना और दूसरी उद्धव गुट की शिवसेना. शिंदे की सेना ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा और 7 सीटें जीतीं, उनका वोट शेयर 12.9 फीसदी रहा.

वहीं उद्धव की सेना 21 सीटों पर लड़ी और 9 सीटें निकाल पाई. इनका वोट शेयर लगभग 16.7 फीसदी रहा.

शिवसेना में टूट से नुकसान ही हुआ है. 2014 में अविभाजित शिवसेना को 20.8% वोट के साथ 18 सीटें मिली थीं, फिर 2019 में 23.5% वोट के साथ 18 सीटें मिली. इस बार दोनों सेना का वोट शेयर जोड़ दें तो वो पिछले चुनाव की तुलना में बढ़ा हुआ दिखाई जरूर देता है लेकिन वो सीटों में तब्दील नहीं हो पाया. इसके उलट सीटों में दोनों को नुकसान ही हुआ.

दोनों पार्टियां 13 सीटों पर आमने सामने थीं. इसमें से उद्धव की सेना 6 सीटों पर जीतीं और शिंदे की सेना 7 सीटों पर जीतीं हैं.

वरिष्ठ पत्रकार संजय जोग ने कहा कि, महायुति के घटक दलों में भरोसे की कमी थी. अजित पवार सीधे तौर पर नाखुश थे, उन्हें केवल 4 सीटें ही मिल पाईं.

"सुप्रीम कोर्ट, महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष ने शिंदे की शिवसेना को असली बताया, चुनाव आयोग ने उन्हें ही पार्टी का चिन्ह दिया लेकिन उसका बहुत ज्यादा फायदा उन्हें नहीं मिला. उधर अजित पवार की एनसीपी को चुनाव आयोग ने असली बताया लेकिन फिर भी उन्हें फायदा नहीं मिला."
जितेंद्र दीक्षित

उधर दोनों पवार केवल 2 ही सीटों पर आमने सामने रहे. बारमती में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के सामने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार हैं और दूसरी सीट शिरूर है. दोनों सीटों पर शरद पवार की एनसीपी ने जीत हासिल की. इससे समझ आता है कि वोटर्स को दल बदल पसंद नहीं आया.

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कांग्रेस को कैसे मिली शानदार जीत? 

पत्रकार और लेखक जितेंद्र दीक्षित कहते हैं कि, "एमवीए गठबंधन बनाने का सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस को ही हुआ. कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले शून्य पर थी लेकिन अभी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. गठबंधन की वजह से कांग्रेस का वोट नहीं कटा. सीट शेयरिंग के बाद एमवीए मजबूती के साथ खड़ा था. सहयोगी पार्टियों का कांग्रेस के लिए शिद्दत से किया गया प्रचार पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हुआ."

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आगामी विधानसभा पर पड़ेगा असर?

जाहिर तौर पर इसका असर महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा के चुनावों पर पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि केवल विधानसभा चुनाव ही नहीं, बीएमसी के चुनाव में भी असर देखने को मिलेगा. उद्धव गुट की सेना के पक्ष में इसका फायदा जा सकता है.

विधानसभा चुनावों पर इसका असर देखने को मिलेगा. गठबंधन में नेताओं का आना जाना और देखने को मिलेगा. उद्धव गुट की सेना और शरद पवार के पास उनके बागी नेता लौटकर आ सकते हैं.
जितेंद्र दीक्षित, पत्रकार और लेखक
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महाराष्ट्र के बड़े चेहरों का क्या हुआ?

पीयूष गोयल (उत्तर मुंबई), बीजेपी: जीते

नितिन गडकरी (नागपुर), बीजेपी: जीते

सुप्रिया सुले (बारामती), एनसीपी (शरद पवार गुट): जीती

अरविंद सावंत (दक्षिण मुंबई), शिवसेना (उद्धव गुट): जीते

वर्षा गायकवाड़ (उत्तर मध्य मुंबई), कांग्रेस: जीती

कपिल पाटिल (भिवंडी), बीजेपी: हारे

राजन बाबुराव विचारे (ठाणे), शिवसेना (उद्धव गुट): हारे

डॉ श्रीकांत शिंदे (कल्याण), शिवसेना (शिंदे गुट): जीते

रावसाहेब दानवे (जालना), बीजेपी: हारे

पंकजा मुंडे (बीड), बीजेपी: हारी

अनुप धोत्रे (अकोला), बीजेपी: जीते

नवनीत कौर राणा (अमरावती), बीजेपी: हारी

Maharashtra Lok Sabha Election Result: वोट शेयर के मामले में बीजेपी टॉप पर, लेकिन सीटों के मामले में बुरी स्थिति क्यों?

सुप्रिया सुले

फोटो- पीटीआई

नवनीत राणा की हार पर जितेंद्र दीक्षित कहते हैं, "अमरावती की बीजेपी नवनीत राणा से नाखुश हैं. वहीं नवनीत राणा ने हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगे लेकिन राज्य में हिंदुत्व के नाम पर वोट नहीं हुआ."
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