आज वसीम बरेलवी का एक शेर याद आ रहा है
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं एतबार न करता तो और क्या करता
'रोज का डोज' में आज बात झूठ के उस डोज की जो वोटर को दी जा रही है. झूठ की शीशी कभी चुनावी रैलियों में भरी जा रही है तो कभी टीवी पर इसके टैबलेट बनाए जा रहे हैं. झूठ सियासत की सीरत में है लेकिन गैर सियासी माने जाने वाली सूरतों से भी झूठ झरने लगे शक होने लगता है कि कहीं अटल बात - ‘असत्यमेव जयते’ तो नहीं.
असत्य कांड 1
प्रधानमंत्री मोदी का नया-नया इंटरव्यू आया है. एक टीवी चैनल पर. मेरे मोबाइल के स्क्रीन पर आज दिन भर इस कालजयी इंटरव्यू से जुड़ी खबरों का नोटिफिकेशन आता रहा. लब्बोलुआब ये था कि - राम मंदिर, बेरोजगारी, पाकिस्तान, आतंकवाद, एयर स्ट्राइक समेत हर बड़े मुद्दे पर पीएम ने दिए सवालों के जवाब.
एक प्रमोशनल ट्वीट पर एक दर्शक का जवाब भी नजर आया - ‘मोदी जी का इंटरव्यू देखा, 32 सवाल एंकर ने पूछे इसमें नया क्या था? PM चुनावी सभाओं में ये गीत तो गाते ही हैं.’
दरअसल इस इंटरव्यू में सवाल तो बहुत पूछे गए लेकिन जवाब को इस अंदाज में स्वीकार किया गया कि - ‘जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे’. इंटरव्यू में मोदी से बेरोजगारी से लेकर नमो टीवी और राहुल गांधी के दो जगह से चुनाव लड़ने पर जिस अंदाज में सवाल पूछे गए, उन्हें देखकर मन करता है कहूं - ये जीना (पूछना) भी कोई जीना है लल्लू?
नमो टीवी पर सवाल के जवाब में मोदी ने कहा - हां कुछ लोग चला रहे हैं, मैंने देखा नहीं है, मुझे समय कहां मिलता है. लेकिन फिर कोई काउंटर सवाल नहीं हुआ. असली सवालों के जवाब नहीं मिले.
चुनावों से पहले कैसे एक चैनल पर सिर्फ एक पार्टी का प्रचार हो रहा है? लाइसेंस किसने दिया? बिना लाइसेंस के चल रहा है तो कैसे? किसने पैसा लगा रखा है? आखिर इस इंटरव्यू के पहले ही टाटा स्काई के सीईओ ने खुलासा कर दिया था कि फीड इंटरनेट के जरिए बीजेपी दे रही है. तो सवाल तो बनता था.
रोजगार के मोर्चे पर भी मोदी ने खुद को कामयाब बताया. इंटरव्यू में मोदी ने मुद्रा लोन और MSME के जरिए करोड़ों नौकरियां पैदा करने का दावा किया. लेकिन सच ये है कि इन आंकड़ों को परखा नहीं जा सकता. रोजगार पर सरकार ने कोई आंकड़ा ही जारी नहीं किया है. नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (ये सरकारी संस्था है) ने इसी साल जनवरी में रिपोर्ट जारी की कि देश में रोजगार की हालत 45 सालों में सबसे खराब है. पहली फुर्सत में नीति आयोग ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया। नाराज होकर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से दो लोगों ने इस्तीफा तक दिया. नीति आयोग ने तब कहा था कि मार्च में दोबारा रिपोर्ट जारी करेंगे. अप्रैल आ गया, रिपोर्ट नहीं आई. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के मुताबिक देश में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट पिछले तीन सालों में घटकर 42.81 फीसदी रह गई है. मार्च 2019 में अमेरिका में यही रेट 63% है.
लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट का मतलब ये है कि लेबर फोर्स में से कितने फीसदी लोग नौकरी मांगने आए. अब अमेरिका में ये दर हमसे ज्यादा है तो मतलब ये हुआ कि हम जॉब क्रिएशन में अमेरिका से आगे हैं. लेकिन ऐसा है क्या? क्या ये नहीं हो सकता कि अब लोगों को नौकरी मिलने का भरोसा तक नहीं रहा, लिहाजा वो नौकरी ढूंढने निकल ही नहीं रहे?
जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हिंसा घटने और पर्यटन बढ़ने का दावा. इंटरव्यू में मोदी ने कहा - उनकी सरकार में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं कम हुईं और पर्यटन बढ़ा। जबकि गृह मंत्रालय की 2017-18 की रिपोर्ट बताती है कि 2013 में जहां राज्य में आतंकवादी हिंसा की 170 घटनाएं हुईं वहीं 2017 में ये बढ़कर 342 हो गई. अगले साल यानी 2018 में सिर्फ जून तक 231 घटनाएं हुईं.
इकनॉमिक सर्वे 2017-18 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में 2012 और 2013 में एक करोड़ से ज्यादा सैलानी आए. जबकि 2016 में सिर्फ 84 लाख और 2017 में सिर्फ 73 लाख.
असत्य कांड 2
ED (इन्फोर्समेंट डायरेक्टोरेट) ने 5 अप्रैल को अगस्ता वेस्टलैंड केस में एक पूरक चार्जशीट दायर की. इसमें ED ने दावा किया है कि मामले के एक आरोपी क्रिश्चियन मिशेल ने अपने बयान में कहा है कि AP का मतलब AHMAD PATEL (कांग्रेस नेता) है.
मिशेल पर आरोप है अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर डील के लिए उसने भारत में नेताओं, अफसरों और डिफेंस के लोगों को रिश्वत खिलाई.
‘द क्विंट’ से बातचीत में मिशेल की वकील रोजमेरी पातरिजि ने कहा कि उनके क्लाइंट ने अपने किसी बयान में कांग्रेस नेता अहमद पटेल का नाम नहीं लिया. रोजमेरी का ये भी दावा है कि जिस बजट शीट में AP शब्द लिखे जाना का दावा किया जा रहा है, और कहा जा रहा है कि इसे मिशेल ने लिखा था वो भी गलत है. मिशेल ने ऐसी कोई बजट शीट लिखी ही नहीं. रोजमेरी ने ED पर सबूतों से छेड़छाड़ करने का भी आरोप लगाया. इस बीच पटेल ने भी अपने ऊपर लगे आरोपों को निराधार बताया और कहा कि उन्हें कानून पर पूरा भरोसा है.
अब देखिए क्या हुआ. इधर 4 अप्रैल को ED ने पटियाला हाउस कोर्ट में ये चार्जशीट दाखिल की और 5 अप्रैल को देश के प्रधानमंत्री ने अपनी देहरादून रैली के मंच से अहमद पटेल पर हवाई हमले किए. कोई आरोपी के वकील के दावों को दरकिनार भी कर सकता है लेकिन क्या अदालत और रवायत का तकाजा ये नहीं है कि किसी के दोषी साबित हो जाने तक सब्र कर लीजिए. कम से कम देश के पीएम से तो इस सलीके की उम्मीद की ही जा सकती है?
चार्जशीट में दो पत्रकारों के भी नाम शामिल हैं. द इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व एडिटर इन चीफ शेखर गुप्ता और पत्रकार मनु पब्बी पर आरोप लगाए गए हैं.
मिशेल के हवाले से बताया गया है कि उसने अपने पक्ष में रिपोर्टिंग के लिए एक फुलटाइम प्रेस एडवाइटर डगलस से मुलाकात की थी. जिसके बाद डगलस ने जर्नलिस्ट मनु पब्बी का नाम सुझाया. चार्जशीट के मुताबिक मिशेल ने इंडियन एक्सप्रेस का नाम लेकर बताया, डगलस का पहला टास्क पब्बी से मिलकर उन्हें ये बताना था कि वो कम से कम अगस्ता वेस्टलैंड का पक्ष तो छापें. चार्जशीट के हवाले से जब पब्बी और शेखर गुप्ता पर बेतहाशा चार्ज हुए तो दोनों ने इन आरोपों को गलत बताया. शेखर गुप्ता ने इसे 100% झूठ और हास्यास्पद कहा. दोनों ने कहा कि उन्होंने ये खबर ब्रेक की. उनकी रिपोर्टिंग के कारण मिशेल पकड़ में आया.
असत्य कांड 3
शुक्रवार को सहारनपुर की रैली में पीएम मोदी ने कहा - कांग्रेस ने अपने ढकोसला पत्र (घोषणापत्र) में जो लिखा है उसका मतलब ये निकलता है कि बेटियों के साथ राक्षसी अपराध करने वालों को भी अब बेल मिल जाएगी. जो दहेज के कारण बहू को जला देते हैं, क्या ऐसे राक्षसों को बेल मिलनी चाहिए? मोदी कांग्रेस के घोषणापत्र के उस हिस्से की ओर इशारा कर रहे थे जिसमें लिखा है -
उन कानूनों को संशोधित करेंगे जो बिना सुनवाई के व्यक्ति को गिरफ्तार और जेल में डालकर संविधान की आत्मा के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय मानव अधिकार मानकों, सम्मेलनों का भी उल्लघंन करते हैं।कांग्रेस के घोषणापत्र से
रेप, दहेज के लिए उत्पीड़न और दहेज हत्या. ये सारे अपराध गैर जमानती हैं. ऊपर लिखी पंक्तियों में आप देख सकते हैं कि कांग्रेस ने महिलाओं के खिलाफ होने अपराधों का जिक्र तक नहीं किया है. बस इतना कहा है कि बिना सुनवाई के गिरफ्तारी ठीक नहीं. तो कानून में संशोधन करेंगे. लेकिन मोदी ने इसे सीधे महिलाओं पर हिंसा से जोड़ दिया. इंसाफ के बारे में एक बात कही जाती है कि भले सौ गुनहगार छूट जाएं लेकिन किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए.
दाताराम बनाम यूपी सरकार, निकेश ताराचंद बनाम भारत सरकार और गुरबख्श सिंह बनाम पंजाब सरकार, इन तमाम मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि CRPC के मुताबिक आदर्श स्थिति बेल देना है, जेल में डालना नहीं.
और ऐसा नहीं कि ‘बेल देना सही है, बेल नहीं’, तो हर मामले में बेल मिल जाएगी. ये केस टू केस निर्भर करता है. बेल देने से पहले देखा जाता है कि अपराध कितना गंभीर है? कहीं आरोपी भाग तो नहीं जाएगा? सबूत तो नहीं मिटाएगा? गवाह को धमकाएगा तो नहीं? आरोपी हिस्ट्रीशीटर तो नहीं है?
ऐसा भी नहीं है कि अभी गैरजमानती अपराधों में जमानत की गुंजाइश नहीं है. अदालत अपने विवेक पर ऐसे तमाम अपराधों में जमानत दे सकती है. तो कांग्रेस बस इतना कह रही है कि कानून में इस तरह के बदलाव किए जाएं कि नागरिक अधिकार पुख्ता हों. आखिर हमारी जिंदगी में सरकार की भूमिका कम से कम हो तो क्या बुराई है.
और सबसे बड़ी बात - कांग्रेस के घोषणापत्र में बिना सुनवाई के गिरफ्तारी और जेल के कानून में बदलाव की बात किस संदर्भ में कही गई है, ये भी समझना चाहिए.
नागरिक स्वतंत्रता हमारे लोकतांत्रिक गणंराज्य की प्रमुख पहचान है। कानूनों का उद्देश्य स्वतंत्रता को मजबूती देना है, कानून सिर्फ और सिर्फ हमारे संवैधानिक मूल्यों को दर्शाने के लिए होने चाहिए। हमारी सरकार आज के संदर्भों के हिसाब से पुराने और बेकार हो चुके कानूनों को खत्म करेगी, जो बेवजह नागरिकों की स्वतंत्रता पर अड़चन डालतें हैं।कांग्रेस के घोषणापत्र से
कहा जाता है कि एक झूठ को सौ बार कहा जाए तो वो सच लगने लगता है और यहां तो कई-कई झूठ सोशल मीडिया से लेकर टीवी के परदे और दूसरे मंचों से हजार-हजार बार दोहराए जा रहे हैं...ऐसे में पहली नजर में तो यही लगता है - असत्मेव जयते! लेकिन अभी भले लग रहा हो कि झूठ की जीत हो रही है लेकिन आखिरी फैसला मई में आएगा. और वोटर के अब तक के फैसलों को देखकर भरोसा है - सत्यमेव जयते!
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