लोकसभा चुनावों को लेकर मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों का कहना है कि वो इस बार शांति के लिए वोट डालने जा रहे हैं. पिछले कई सालों से रिफ्यूजी कैंप में रहकर जिंदगी गुजार रहे इन लोगों को अभी तक सरकार ने अपना घर बनाकर नहीं दिया है. इन लोगों का आरोप है कि सरकार से कई बार मांग करने के बावजूद अभी तक उन्हें पक्के घर नहीं मिले हैं.
6 सालों से कैंप बने हैं घर
2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के पीड़ितों के लिए 6 साल बाद भी कैंप ही उनके घर बने हुए हैं. सरकार ने भले ही इनकी जरूरतों को पूरा करने का काम न किया हो, लेकिन इन लोगों का कहना है कि वो वोट डालने जरूर जाएंगे. दंगा पीड़ितों का कहना है कि इस लोकसभा चुनाव में वो शांति कायम रखने के लिए वोट डालेंगे.
मुजफ्फरनगर में कुछ हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा शुरू हुआ था, जिसने एक भयानक दंगे का रूप ले लिया. इस दंगे में करीब 62 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी, वहीं 93 लोग घायल हुए. इस भयानक देंगे के बाद हजारों लोग बेघर भी हुए
समस्याओं का इलाज नहीं
कैराना में रिफ्यूजी कैंप में जिंदगी गुजार रहे इन लोगों का कहना है कि इनकी समस्याएं तो कई हैं, लेकिन इनका इलाज कुछ नहीं है. दंगे में पीड़ित महमूद का कहना है कि यहां न तो बिजली है और न ही पानी की सही व्यवस्था. हम लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि हमारे लिए पक्के घर बनाए जाएं. लेकिन ऐसा अब तक नहीं हुआ.
कैराना लोकसभा क्षेत्र में पहले चरण यानी 11 अप्रैल को ही मतदान होने हैं. यहां से एसपी-बीएसपी गठबंधन ने तबस्सुम हसन को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं बीजेपी ने इस बार प्रदीप चौधरी को कैराना से अपना उम्मीदवार घोषित किया है.
मुजफ्फरनगर दंगों के बाद की कहानी
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