लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद हर तरफ मोदी-मोदी की चर्चा हो रही है, लेकिन मोदी के बाद जिस शख्स का नाम बीजेपी की शानदार कामयाबी के लिए लिया जा रहा है, वो हैं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह.
शाह ने इस बार पार्टी कार्यकर्ताओं को ‘मिशन 300 पार’ का टारगेट दिया था और उसे पूरा करके भी दिखाया. इस मिशन की कामयाबी के लिए बीजेपी अध्यक्ष ने पूरा चक्रव्यूह सेट किया था.
शतरंज खेलने से लेकर क्रिकेट देखने और संगीत में गहरी रुचि रखने वाले 54 वर्षीय अमित शाह को राजनीति का माहिर रणनीतिकार माना जाता है. इस बार के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, नॉर्थ ईस्ट, ओडिशा और दक्षिण भारत में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए उनकी सफल रणनीति को श्रेय दिया जा रहा है.
अमित शाह ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वह बूथ से लेकर चुनावी मैदान तक प्रबंधन और प्रचार की जो सधी हुई बिसात बिछाते हैं, उसमें किस तरह मंझे से मंझे राजनीतिक खिलाड़ी भी मात खा जाते हैं. शाह के नेतृत्व में न सिर्फ बीजेपी की लोकसभा सीटों का आंकड़ा 300 के पार पहुंचा, बल्कि जिन राज्यों में पार्टी मजबूत थी वहां और मजबूत हुई और उसने कुछ नए इलाकों में भी पांव पसारे.
शाह के नेतृत्व में जहां कर्नाटक, ओडिशा, बंगाल और नॉर्थ ईस्ट में बीजेपी मजबूत हुई, वहीं त्रिपुरा में यह पार्टी शून्य से सरकार बनाने लायक आंकड़े तक पहुंच गई.
सियासी बिसात पर शाह की चाल
1. गठबंधन
शाह ने मिशन 300 को पूरा करने के लिए सियासी बिसात पर कई तरह की चाल चलीं. उन्होंने बिहार और महाराष्ट्र में एनडीए के घटक दलों के साथ गठबंधन को लेकर लचीला रुख अपनाया. 282 सीटें होने के बावजूद अपना दल जैसी छोटी पार्टी का भी ध्यान रखा. नॉर्थ ईस्ट में कदम फैलाने के लिए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस बनाया.
2. जाति के खिलाफ जाति
बिहार और यूपी, जहां जाति की राजनीति हावी थी, वहां शाह ने जातियों को जातियों से ही लड़ा दिया. इसे ऐसे समझिए- यूपी की राजनीति में किसी पार्टी के लिए यादव अहम थे तो शाह ने उस पार्टी के खिलाफ गैर-यादव जातियों को लामबंद करके अपने पाले में लाने की रणनीति बनाई. उन्होंने यही काम बिहार में भी किया.
3. जाति के खिलाफ धर्म का कार्ड
शाह ने जाति के खिलाफ धर्म का कार्ड भी खेला. योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं को आगे बढ़ाकर हिंदू धर्म की हर जाति को एक बैनर तले लाने की कोशिश की. बीजेपी के नेताओं ने धर्म से जुड़े ढेर सारे बयान दिए और पोलराइजेशन हुआ. प्रज्ञा ठाकुर को टिकट देना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है. प्रज्ञा ने जब नाथूराम गोडसे पर बयान दिया और जब अमित शाह से पूछा गया कि क्या उन्हें प्रज्ञा को टिकट दिए जाने पर अफसोस है तो शाह ने पलटकर जवाब दिया.
प्रज्ञा की उम्मीदवारी भगवा आतंकवाद के फर्जी आरोप के खिलाफ हमारा सत्याग्रह है. इस आरोप के लिए कांग्रेस अध्यक्ष को माफी मांगनी चाहिए.अमित शाह, बीजेपी अध्यक्ष
4. विकास और राष्ट्रवाद की जुगलबंदी
शाह ने विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक साथ जोर दिया. उन्होंने बीजेपी के नेताओं से रैलियों में विकास की बात करवाई और बालाकोट स्ट्राइक जैसे मुद्दों को भी खूब हवा देने को कहा. इससे बाकी सारे मुद्दे छोटे हो गए और राष्ट्रवाद का मुद्दा छा गया.
5. कैडर में सुधार
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ 4 करोड़ कार्यकर्ता थे. 2019 आते-आते 11 करोड़ से ज्यादा हो चुके हैं. अमित शाह की कोशिश हर बूथ तक पहुंचने की थी. इसके लिए उन्होंने बड़े पैमाने पर नए कार्यकर्ता बनाने का अभियान चलाया. ये कहना गलत नहीं होगा कि 2014 के बाद अमित शाह कभी चुनाव मोड से बाहर ही नहीं निकले. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन 17 मई को खुद अमित शाह ने बताया कि बीजेपी का ‘मिशन 2019’ जनवरी 2016 से ही शुरू हुआ था. शाह ने पूरे देश में करीब 500 चुनाव समितियों का गठन किया और करीब 7000 नेताओं को तैनात किया.
6. शाह का मेगा प्रचार और जनसंपर्क अभियान
- ऐसी 120 सीटों पर खास ध्यान दिया, जहां बीजेपी पहले चुनाव नहीं जीत पाई थी
- 3 हजार फुलटाइमर्स ने दो साल से विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में काम किया. ये लोग स्वयंसेवी थे. कोई वेतन नहीं लिया
- 120 सीटों के लिए 13 प्रदेशों में 25 क्लस्टर बनाए गए
- 150 क्लस्टर सम्मेलन हुए
- 18 राष्ट्रीय चुनाव समितियां बनाई गईं
- 29 प्रदेश चुनाव समितियां बनाई गईं
- 2566 सीटों पर फुलटाइमर
7.स्पेशल कैंपेन
- मेरा बूथ सबसे मजबूत
- 472 लोकसभा सीटों पर प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन
- 482 सीटों पर युवा सम्मेलन
- संगठन संवाद अभियान
- मेरा परिवार-भाजपा परिवार के तहत ढेर सारे कार्यकर्ताओं ने झंडे और बैनर लगाए
- 3800 विधानसभा क्षेत्रों में कमल संदेश बाइक रैली निकाली गई
- 22 करोड़ लाभार्थियों के घर में कमल ज्योति संकल्प कार्यक्रम किया गया
- मैं भी चौकीदार अभियान देश भर में चला
- भारत के मन की बात अभियान से चुनाव संकल्प पत्र के लिए सुझाव मांगे गए
- 161 कॉल सेंटरों से 15682 कॉलर्स ने 6 महीने में 24.81 करोड़ लोगों को फोन किया
खुद अमित शाह 312 लोकसभा सीटों पर गए. 18 रोडशो किए. पीएम नरेंद्र मोदी ने 1.05 लाख किलोमीटर की यात्रा की लेकिन अमित शाह ने उनसे भी ज्यादा 1.58 लाख किलोमीटर की यात्रा. पीएम नरेंद्र मोदी ने 142 सभाएं कीं, जबकि अमित शाह ने उनसे ज्यादा 161 जनसभाएं कीं.
शाह मतलब सियासत
अमित शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था. मगर उनके बूथ प्रबंधन का 'करिश्मा' 1995 के उपचुनाव में तब दिखा, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया. खुद यतिन ओझा कहते हैं कि शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता. शाह के करीबी बताते हैं कि वह पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में वह बहुत कम वक्त जाया करते हैं.
शाह के बारे में एक बात और कही जाती है कि पार्टी में उनके काम में कोई दखल नहीं देता. टिकट देने का मामला हो या फिर किसी रणनीति का, शाह को जो सही लगता है, वो वही करते हैं. अगर उन्हें किसी उम्मीदवार की हार का डर होता है तो उसे टिकट नहीं देते, चाहे वो कितना भी दिग्गज या किसी का खास क्यों न हो. इसके साथ ही शाह को अच्छे कार्यकर्ताओं की अच्छी परख भी है.
शाह का जादू - 7 से बढ़कर 21 पर काबू
बीजेपी अध्यक्ष का पद संभालने के बाद अमित शाह ने पार्टी के विस्तार पर काम किया. इसके लिए उन्होंने 'साथ आएं, देश बनाएं' नारे के साथ पार्टी की सदस्यता का कार्यक्रम लॉन्च किया. इसके साथ ही शाह ने पार्टी के नए सदस्यों को संगठन और इसकी विचारधारा से रूबरू कराने के लिए 'महा संपर्क अभियान' चलाया.
शाह ने बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत’ कैंपेन लॉन्च किया. शाह की इन कोशिशों का असर त्रिपुरा जैसे राज्य से समझा जा सकता है, जहां बीजेपी लेफ्ट के 25 साल पुराने किले को ढहा कर सत्ता में आई.
अमित शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के वक्त 7 राज्य ऐसे थे, जहां या तो बीजेपी की सरकार थी या फिर वह सरकार का हिस्सा थी. शाह के नेतृत्व में बीजेपी शासित राज्यों की संख्या 21 तक पहुंच गई. इस वक्त 16 राज्यों में बीजेपी शासित या समर्थित राज्य हैं.
कर्नाटक में बहुमत साबित ना कर पाने और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद यह संख्या 19 हो गई थी. इसके बाद बीजेपी के हाथ से 3 राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) की सरकार निकल गई. मगर पिछले साल बीजेपी के हाथ से जिन 5 राज्यों की सरकार गई, पार्टी ने इस लोकसभा चुनाव में उन सभी में शानदार प्रदर्शन किया है.
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