मुक्तसर (Muktsar) सिखों की आस्था से जुड़ा ज़िला है. इसके अलावा अकाली दल (Akali dal) के अध्यक्ष सुखबीर बादल का गाँव बादल भी इसी ज़िले में पड़ता है. इसके चलते ये हॉट ज़िला माना जा रहा था. मुक्तसर ज़िले की लंबी सीट से पंजाब के पांच बार के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को आम आदमी पार्टी के गुरमीत खुडिया ने धूलचटाई. जबकि मलोट से आम आदमी पार्टी की डॉक्टर बलजिंदर कौर ने कांग्रेस की रूबी बराड़ को हराया. वही मुक्तसर सीट से जगदीप सिंह काका बराड़ ने कंवरजीत सिंह रोज़ी बरकंदी को हराया. कांग्रेस केवल ज़िले की एकमात्र सीट गिद्दडबाहा बचा पाई जिसे राजा वडिंग ने केवल 1349 वोटों से जीता.
क्या रहा सीटों का हाल
लंबी
जीते-गुरमीत खुडिया(आप)-66313
दूसरे- प्रकाश सिंह बादल(अकाली दल)-54917
तीसरे- जगपाल सिंह -10136
चौथे-राकेश ढींगरा -1116
मलोट
जीते- बलजीत कौर(आप)-77370
दूसरे- हरप्रीत सिंह(अकाली दल)-37109
तीसरे- रूपिंदर रूबी(कांग्रेस)-17652
चौथे-करणवीर सिंह(पंजाब लोक कांग्रेस)-1169
मुक्तसर
जीते-जगदीप सिंह(आप)-76321
दूसरे-कंवरजीत सिंह(अकाली दल)-42127
तीसरे- करण कौर(कांग्रेस)-14290
चौथे-राजेश पठेला(बीजेपी)-10634
गिद्डबाहा
जीते-राजा वडिंग(कांग्रेस)-50998
दूसरे-डिप्पी ढिल्लों(अकाली दल)-49649
तीसरे-प्रितपाल शर्मा(आप)-38881
चौथे-उम प्रकाश(पंजाब लोक कांग्रेस)-391
मुक्तसर में चुनाव नतीजों के कारण
पहला कारण, लंबी सीट पर अकाली दल के प्रकाश सिंह बादल 1997 से जीतते आ रहे थे. बादल की जीत का ग्राफ़ पिछले दो चुनावों से गिरता आ रहा था.
दूसरा कारण, कांग्रेस कमजोर थी और उभरने की कोशिश नहीं की. इस बार कांग्रेस का उम्मीदवार जगपाल सिंह अबुल खुराणा को उतारा था जो पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीबी माने जाते रहे है. कांग्रेस से नाराज़ होकर गुरमीत खुडिया ने आम आदमी पार्टी ज्वाइन की. 2004 से कांग्रेस के लिये काम करते आ रहे गुरमीत ने कांग्रेस को बड़ा नुक़सान पहुँचाया और पार्टी लंबी सीट पर तीसरे स्थान पर खिसक गई.
तीसरा, मुक्तसर सीट पर कांग्रेस में आंतरिक गुटबाज़ी ने पार्टी को बहुत नुक़सान पहुँचाया. उम्मीदवार करण बराड़ अपने ससुर और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री हरचरण बराड़ के नाम पर वोट माँगती रही. स्थानीय पत्रकारों की मानें तो राजा बराड़ ग्रुप उनके ख़िलाफ़ काम कर रहा था. करण बराड़ का वोट पिछले चुनाव के 36 हज़ार से गिरकर 14000 पर आ गया. जबकि अकाली दल के रोज़ी बरकंदी का वोट 45 हज़ार से कम होकर 42,000 हुआ. आम आदमी पार्टी को इस सबका फ़ायदा हुआ.
चौथा, मलोट सीट पर आम आदमी पार्टी को डॉक्टर बलजीत कौर को उतारने का फ़ायदा मिला. वे लोगों में अपने काम की वजह से जानी पहचानी है. बलजीत अपनी रैलियों के दौरान भी लोगों की आँखों की रोशनी चेक करती दिख जाती थी. जबकि कांग्रेस ने उनके ख़िलाफ़ रूपिंदर रूबी को उतारा था. रूबी पिछली बार आम आदमी पार्टी की टिक्ट पर विधानसभा चुनाव जीती थी. इसलिये कांग्रेस को उनके पार्टी बदलने का नुक़सान उठाना पड़ा. अकाली दल भले ही दूसरे स्थान पर रहा, लेकिन पार्टी की आम जन में कोई ख़ास अपील नहीं थी.
पाँचवाँ, गिददडबाहा से कांग्रेस और अकाली दल में कड़ी टक्कर थी जबकि आम आदमीं पार्टी मैदान ने ठीक टक्कर दी. गिददडबाहा से कांग्रेस सरकार के मंत्री राजा वडिंग बेहद ऊर्जावान रहे है, जबकि उनके अकाली प्रतिद्वंद्वी डिप्पी ढिल्लों भी कम नहीं थे. राजा ने ट्रांसपोर्ट मंत्री बनने पर निजी बस आपरेटरों को ख़िलाफ़ मोर्चा शुरू किया था. जबकि डिप्पी ढिल्लों खुद एक बस आपरेटर है.
राजा वडिंग ने अपने क्षेत्र में विकास का काम ठीक करवाया था लेकिन उन्होंने कांग्रेस सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल पर हकलाने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. राजा बेहद कड़े मुक़ाबले में अपने निकट प्रतिद्वंद्वी डिप्पी ढिल्लों से केवल वोटों से जीत पाये.
मुक्तसर के स्थानीय पत्रकार जसवीर सिंह के मुताबिक़,”कांग्रेस ज़िले में बेहद कमजोर हो गई थी और उसकी आंतरिक कलह पार्टी कोले डूबी. लंबी से उसको गुरमीत खुडिया छोड़कर चले गये, पार्टी कोई बड़ा उम्मीदवार लंबी से नहीं उतार पाई. मलोट से उसने आम आदमी पार्टी की बाग़ी विधायक रूबी को टिक्ट दिया था. मुक्तसर से उसने करण बराड़ को टिकट दिया जिनका ग्राउंड पर कोई काम नहीं था. वहीं अकाली दल अपनी इमेज को बदल नहीं पाया और बेअदबी जैसे मुद्दों से उबरा नहीं. रवायती पार्टियों से असंतुष्ट लोगों ने आम आदमीं पार्टी को चुन लिया.”
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