अमृतसर (Amritsar) के आनंद नगर में रहने वाले रमेश कुमार हंसी-मजाक में कहते हैं कि "जितनी हलचल हमने पांच साल में नहीं देखी, अब अगले एक महीने में देखेंगे”
रमेश कुमार उसी अमृतसर पूर्व विधानसभा क्षेत्र के वोटर हैं, जो मौजूदा विधायक और पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के खिलाफ शिरोमणि अकाली दल द्वारा बिक्रम सिंह मजीठिया (Bikram Singh Majithia) को मैदान में उतारने के फैसले के बाद एक हाई प्रोफाइल चुनावी टक्कर का गवाह बन रहा है.
इस सवाल पर कि क्या वह एक विधायक के रूप में नवजोत सिद्धू के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं, रमेश कुमार का कहना है कि सिद्धू अक्सर नहीं आते लेकिन उनके प्रतिनिधियों के माध्यम से कुछ काम हुआ है.
सिर्फ रमेश कुमार ही नहीं, इस विधनसभा क्षेत्र के कई निवासी इसके हाई प्रोफाइल हो जाने पर चुटकी ले रहे हैं. इस रिपोर्टर को जसप्रीत सिंह ने "केवल अभी" इस क्षेत्र को याद करने के लिए फोन पर ताना मारते हुए कहा "अस्सी ता वीआईपी बन गए” (हम तो VIP बन गए).
जसप्रीत सिंह का मानना है कि नवजोत सिद्धू को हराना आसान नहीं होगा, लेकिन मजीठिया के यहां से खड़े होने से शहर में अकाली कार्यकर्ताओं में जोश भर गया है.
मजीठिया की एंट्री के लग रहे थे कयास
अगर अकाली कार्यकर्ताओं की माने तो मजीठिया की अमृतसर पूर्व में एंट्री पिछले कुछ समय से ही विचाराधीन थी. दिसंबर 2021 में इस रिपोर्टर से मिलने वाले कई अकाली समर्थकों ने कहा कि यह उनकी इच्छा है कि मजीठिया यहां सिद्धू का सीधा मुकाबला करें.
अकाली दल में ‘माझे दा जरनैल’ (माझा क्षेत्र के जनरल) के नाम से भी जाने जाने वाले मजीठिया पिछले कुछ समय से अमृतसर शहर में पार्टी के कैंपेन में गहरी दिलचस्पी ले रहे थे.
मजीठिया ने अमृतसर से बीजेपी उम्मीदवारों के लोकसभा कैंपेन की बारीकी से निगरानी की थी, लेकिन अकाली दल और बीजेपी के रास्ते अलग होने के बाद, मजीठिया ने अमृतसर शहर में और भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरू कर दी.
उदाहरण के लिए, अमृतसर-दक्षिण से अकाली दल के उम्मीदवार तलबीर सिंह गिल मजीठिया के करीबी सहयोगी हैं. कम से कम 6 महीने पहले ही गिल ने अमृतसर-दक्षिण से अपनी चुनावी तैयारी शुरू कर दी थी और मजीठिया इस दौरान गिल के कई पोस्टरों में प्रमुखता से दिखाई दे रहे हैं.
अकाल तख्त और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का अमृतसर घर है. इसलिए, शहर की पांच विधानसभा सीट में अकाली दल के लिए प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं.
अमृतसर-पूर्व से नहीं लड़ता था अकाली दल
बीजेपी ने अमृतसर-पूर्व से हाल ही में वोलंटरी रिटायरमेंट लेने वाले IAS अधिकारी जगमोहन सिंह राजू को मैदान में उतारा है. अभी तक उनके लिए सीट पर कोई हलचल नहीं थी, हालांकि, यह बदल सकता है क्योंकि इस सीट पर बीजेपी के पास आधार और कैडर की ताकत है.
1972 के बाद अस्तित्व समाप्त होने से पहले अमृतसर-पूर्व विधानसभा सीट 1960 और 1970 के दशक में जनसंघ के नेता बलदेव प्रकाश और कांग्रेस के ज्ञान चंद खरबंदा जैसे दिग्गजों का गढ़ हुआ करती थी.
लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि फिर 2012 में अस्तित्व में आने वाली यह सीट, 1960 और 1970 के दशक में मौजूद सीट से काफी अलग है. इसका कारण है कि पहले के अधिकांश क्षेत्र अब अमृतसर सेंट्रल के अंतर्गत आते हैं.
जनसांख्यिकीय तौर पर देखें तो अमृतसर-पूर्व की यह सीट इतनी भारी हिंदू बहुल सीट नहीं है जो 1970 के दशक तक अस्तित्व में थी. अमृतसर की इसी जनसांख्यिकी के कारण अकाली दल शहर की अधिकांश सीटें अपनी पूर्व सहयोगी बीजेपी को आवंटित कर रही थी. 2011 की जनगणना के अनुसार अमृतसर की जनसंख्या में हिंदू आबादी 49.36 प्रतिशत है जबकि सिख 48 प्रतिशत.
लेकिन अमृतसर-दक्षिण एकमात्र ऐसी सीट है जहां स्पष्ट सिख बहुमत है. अमृतसर-उत्तर और सेंट्रल में स्पष्ट हिंदू बहुमत है. जबकि पूर्व और पश्चिम में बैलेंस.
दो परिसीमन (डीलिमिटेशन) के बाद के चुनावों - 2012 और 2017 में - बीजेपी अमृतसर में चार सीटों पर चुनाव लड़ी, जबकि अकाली दल ने केवल अमृतसर-दक्षिण में.
अकाली दल अमृतसर-पूर्व में चुनाव नहीं लड़ता रहा है और इसलिए अमृतसर दक्षिण की तुलना में पार्टी यहां संगठनात्मक रूप से कमजोर है.
नवजोत सिद्धू ने यह आरोप लगाया है कि मजीठिया जानते हैं कि वह अमृतसर-पूर्व से चुनाव हारेंगे और इसलिए वह अपने गढ़ मजीठा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. मालूम हो कि अमृतसर जिले के उत्तरी हिस्से में मौजूद मजीठा मुख्य रूप से ग्रामीण सीट है और बिक्रम सिंह मजीठिया ने इसे लगातार तीन बार जीता है.
इस आरोप जैसी ही राय स्थानीय लोगों की है. रमेश कुमार का कहना है कि, ''हां, कायदे से, उन्हें सिर्फ यहां से ही चुनाव लड़ना चाहिए था. इससे यह लगता है कि उन्हें भरोसा नहीं है.''
आम आदमी पार्टी का चैलेंज
अमृतसर-पूर्व विधानसभा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के समर्थकों का कहना है कि असली लड़ाई AAP और नवजोत सिद्धू के बीच है, मजीठिया लड़ाई में नहीं हैं.
तुंग पाई एरिया के एक AAP कार्यकर्ता ने कहा कि " यहां पर या शहर में कहीं भी मजीठिया की अच्छी प्रतिष्ठा नहीं है. लोग बदलाव चाहते हैं. अगर उन्हें सिद्धू को हराना है तो वे मजीठिया को नहीं चुनेंगे, जिनके खिलाफ इतने सारे आरोप हैं"
अमृतसर-पूर्व में आम आदमी पार्टी ने जीवन ज्योत कौर को मैदान में उतारा है जो अमृतसर (अर्बन) से पार्टी की जिलाध्यक्ष हैं. माहवारी से जुड़ी स्वच्छता को बढ़ावा देने के कारण उन्हें अमृतसर की 'पैडवुमन' का निकनेम मिला हुआ है.
AAP अमृतसर सिटी में लगातार बढ़त बना रही है, खासकर लोअर मिडिल क्लास के वोटर्स के बीच. हालांकि, अमृतसर-पूर्व पार्टी के लिए कठिन सीटों में से है और पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमृतसर-दक्षिण और उत्तर में इसकी संभावना बेहतर है.
मजीठिया के आने से पहले अमृतसर-पूर्व में आम आदमी पार्टी की एक समस्या यह थी कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ जनता के गुस्से से उसे फायदा हो रहा था लेकिन व्यक्तिगत रूप से नवजोत सिद्धू के खिलाफ उतना गुस्सा नहीं था.
सिद्धू के खिलाफ जो सबसे बड़ी शिकायतें सुनने को मिली हैं, वह यह है कि सिद्धू अपने "निर्वाचन क्षेत्र में ज्यादा नहीं आते" या वो "एक अजीब व्यक्तित्व रखते हैं" या यह कि वो "बहुत ज्यादा बात करते हैं". लेकिन खास बात है कि कुल मिलाकर उन्हें भ्रष्ट नहीं माना जाता और तुलनात्मक रूप से उनकी छवि साफ-सुथरी है.
अकाली दल का दांव और मजीठिया के खिलाफ मामला
चुनाव में मजीठिया की संभावनाओं के बावजूद अकाली दल ने एक बड़ा दांव खेला है. अकाली दल का यह दांव ऐसे समय में आया है जब मजीठिया एक ड्रग केस में गंभीर कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया को 31 जनवरी तक गिरफ्तारी से सुरक्षा दी है.
कुछ का तर्क है कि नवजोत सिद्धू के खिलाफ चुनाव लड़ने का मजीठिया का फैसला उनके खिलाफ चल रहे मामले से ध्यान हटाने या गिरफ्तार होने की स्थिति में खुद को शहीद के रूप में पेश होने का है.
बावजूद इसके, इसका एक दूसरा पहलू भी है.
सिद्धू के खिलाफ मजीठिया को मैदान में उतारना सुखबीर बादल द्वारा यह दावा करने का एक तरीका भी है कि अकाली दल राज्य में मुख्य विपक्ष है.
वर्तमान में, पंजाब की राजनीति में यथास्थिति को बदलने का काम करने वाले तीन विघटनकारी स्थिति हैं- AAP, जो पारंपरिक पार्टियों के खिलाफ मौजूद गुस्से का दोहन कर रही है, पंजाब के पहले दलित सीएम के रूप में चरणजीत चन्नी को पंजाबी समाज के इस महत्वपूर्ण समूह से कुछ समर्थन मिला है, और संयुक्त समाज मोर्चा, जो किसान आंदोलन से उपजी भावना से लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है.
'सिद्धू बनाम मजीठिया' की लड़ाई कुछ मायनों में बादल की पारंपरिक राजनीति को फिर से स्थापित करने का तरीका है.
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