राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election 2023) में करीब एक महीने का ही समय बचा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की पहली सूची तक जारी नहीं की है.
क्विंट को मिली जानकारी के मुताबिक, भारत आदिवासी पार्टी (BAP) और ग्रामीण किसान मजदूर समिति (GKS) जैसे कई छोटी पार्टियां चुनाव से पहले गठबंधन और सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस के साथ बातचीत कर रही हैं. बता दें कि BAP भारतीय आदिवासी परिवार की राजनीतिक शाखा है, जो दक्षिण राजस्थान में आदिवासियों का एक छत्र संगठन है. दूसरी ओर, GKS एक किसान संघ है जो उत्तरी राजस्थान के कई जिलों में सक्रिय है.
एक सूत्र ने क्विंट से कहा, "हालांकि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इन दोनों संगठनों के साथ बातचीत कर रहा है, लेकिन अशोक गहलोत आश्वस्त नहीं हैं. वास्तव में, सचिन पायलट खेमे को भी लगता है कि चुनाव पहले से इस तरह की बातचीत से पार्टी को फायदा होगा."
सूत्र ने आगे कहा, "...BAP आदिवासी क्षेत्र में 12-13 सीटों की मांग कर रही है, कांग्रेस उन्हें केवल चार सीटें देना चाहती है. GKS बस चाहती है कि पार्टी उनके दो उम्मीदवारों को कांग्रेस के सिंबल पर टिकट दे. इसके अलावा, अगर ये दोनों एक साथ आते हैं, तो चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी भी इसमें शामिल हो सकती है, क्योंकि उसका उनके साथ पहले से ही समझौता है."
क्या कई पार्टियों से हाथ मिलने से कांग्रेस को फायदा होगा?
2018 में BAP ने गुजरात स्थित भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के सिंबल और नाम के तहत दक्षिण राजस्थान के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में छह सीटों पर अपना पहला चुनाव लड़ा था. पार्टी ने दो सीटें जीतीं और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही.
वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में पार्टी के दो विधायक हैं - डूंगरपुर के चोरासी से राजकुमार रोत और बांसवाड़ा जिले की सागवाड़ा सीट से राम प्रसाद.
BTP का हिस्सा रहे आदिवासी समूह ने 2023 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए BAP नाम से अपनी खुद की पार्टी बनाई है. ये पार्टी जनजातीय उपयोजना (TSP) क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित 17 सीटों और उदयपुर, डूंगरपुर, राजसमंद, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ जिलों में उनके आसपास की नौ सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है.
BAP के राष्ट्रीय संयोजक मोहनलाल रोत ने द क्विंट को बताया, "हमारे क्षेत्र में कम से कम 26-27 सीटों पर हमारा अच्छा खासा प्रभाव है. कांग्रेस हमें चार सीटों तक सीमित रखना चाहती है. वे हमारे पास एक प्रस्ताव लेकर आए थे लेकिन हमने इसे खारिज कर दिया."
एक अन्य सूत्र ने खुलासा किया कि कांग्रेस आलाकमान आदिवासी नेतृत्व को 'INDIA' गठबंधन में शामिल करने के लिए BAP को अपने साथ लाने को इच्छुक है, जिससे उन्हें गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में फायदा मिल सके.
GKS राज्य का सबसे बड़ा किसान संघ है, जिसकी स्थापना 2016 में हुई थी. वर्तमान में इसका कोई प्रतिनिधि विधानसभा में नहीं है. समिति ने राजस्थान में किसानों के विरोध के लिए समर्थन जुटाया था. इसके साथ ही शाहजहांपुर बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन का भी नेतृत्व भी किया था. पिछले पांच सालों में उत्तरी राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और नवनिर्मित अनूपगढ़ जिले में महत्वपूर्ण किसान लामबंदी हुई है.
सूत्रों के मुताबिक, करणपुर विधानसभा सीट से 2018 में GKS द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार पृथ्वी पाल सिंह इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि, 2018 चुनाव में पृथ्वी पाल सिंह को 46,000 वोट मिले थे. वहीं बीजेपी तीसरे स्थान पर रही थी.
गहलोत क्यों झिझक रहे हैं?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के ऐसे गठबंधन के विरोध के पीछे तीन संभावित कारण हैं:
गहलोत का BAP नेताओं के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं. सितंबर 2020 में जनजातीय उप-योजना (TSP) क्षेत्र में रिक्त पदों पर शिक्षकों की भर्ती की मांग को लेकर जनजातीय युवाओं द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन में हिंसा भड़क उठी थी. राज्य की एक खुफिया रिपोर्ट में तब दावा किया गया था कि क्षेत्र में कई "चरमपंथी" संगठन युवाओं को "कट्टरपंथी" बनाने की कोशिश कर रहे थे. इसलिए, अगर आदिवासी नेता एक साथ आते हैं, तो भी उनके सचिन पायलट खेमे का समर्थन करने की संभावना है.
राजस्थान में 'रिवॉल्विंग डोर' (Revolving Door) मॉडल है, जिसका मतलब है कि हर 5 साल में सरकार बदलती है. अगर कांग्रेस BAP, GKS और आजाद समाज पार्टी जैसे खिलाड़ियों को जगह देती है - जिनका मूल मतदाता आधार कांग्रेस के समान है - तो वे स्थायी रूप से उस स्थान पर कब्जा कर सकते हैं. ऐसे में भविष्य में कांग्रेस के अपने दम पर सरकार बनाने की संभावना काफी कम हो सकती है.
सूत्रों के अनुसार, गहलोत को लगता है कि बेहतर विकल्प यह है कि इन पार्टियों के विजयी उम्मीदवारों को तोड़कर कांग्रेस के टिकट पर मैदान में उतारा जाए या फिर चुनाव नतीजों के बाद उन्हें कांग्रेस में शामिल करवा दिया जाए. 2018 में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) के 6 जीते हुए विधायक बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
राजस्थान में 'तीसरे मोर्चे' का इतिहास
2000 के दशक के बाद राजस्थान की राजनीति में केवल दो पार्टियों- कांग्रेस और बीजेपी - का वर्चस्व रहा है. हालांकि, राज्य में बड़ी संख्या में निर्दलीय और तीसरे मोर्चे के उम्मीदवारों को चुनने का एक लंबा इतिहास है.
पहली और दूसरी बार हुए विधानसभा चुनाव में क्रमशः 35 और 32 निर्दलीय विधायक थे. 1962 में तीसरे मोर्चे के 36 और 22 निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे. 1967 में तीसरे मोर्चे के उम्मीदवारों की संख्या 48 हो गई जबकि 16 निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे.
1985 में लोकदल ने 27 सीटें जीतीं और 10 सीटें निर्दलीयों के खाते में गई थी. इसी तरह 1990 में तीसरे मोर्चे ने 55 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि आठ सीटों पर निर्दलीयों ने बाजी मारी थी.
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