Rajasthan Election 2023: मरुधरा के 'महासंग्राम' में प्रत्याशियों की किस्मत EVM में कैद हो गई है. शनिवार, 25 नवंबर को प्रदेश की 199 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ. चुनाव आयोग के रात 12 बजे तक के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में 74.13 फीसदी मतदान हुआ है. राजस्थान में सबसे ज्यादा जैसलमेर जिले में 82.37 फीसदी और सबसे कम पाली में 65.12 फीसदी वोटिंग हुई. अगर सीट के हिसाब से देखें तो पोकरण में सबसे ज्यादा 87.79 फीसदी और डूंगरपुर में सबसे कम 59.83 फीसदी वोटिंग हुई.
क्या कहता है राजस्थान का वोटिंग पैटर्न?
राजस्थान में 2018 में 74.06% मतदान हुआ था. इससे पहले 2013 विधानसभा चुनाव में 75.04% वोटिंग और 2008 में 66.25% वोट पड़े थे. इस बार 74.13 फीसदी वोट पड़े हैं. 2018 के मुकाबले इस बार 0.07 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई है.
हालांकि, राजस्थान में हर पांच साल पर सरकार बदलने का भी रिवाज चला आ रहा है. 1998 के बाद से - यानी 25 सालों में - किसी भी राजनीतिक दल ने राजस्थान में सत्ता बरकरार नहीं रखी है. इसके अलावा, तब से राज्य ने केवल दो मुख्यमंत्री देखे हैं - कांग्रेस से अशोक गहलोत और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से वसुंधरा राजे. ये दोनों बारी-बारी से इस पद पर रहे हैं.
मरुधरा में सत्ता परिवर्तन के पीछे वोटिंग पैटर्न भी अहम है. 2003 से लेकर 2018 के चुनावों के आंकड़े इस ओर इशारा करते हैं.
2003 विधानसभा चुनाव: 1998 विधानसभा चुनाव के मुकाबले 2003 में 3.79 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई थी. प्रदेश में तब 67.18 फीसदी वोट पड़े थे. इसके साथ ही सत्ता परिवर्तन भी हुआ था. बीजेपी ने इस चुनाव में 120 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. इन चुनावों में बीजेपी 39.85% और कांग्रेस को 35.65% वोट मिले थे.
2008 विधानसभा चुनाव: उस साल 66.25% वोटिंग हुई थी, जो कि 2003 के मुकाबले 0.93% कम थी. तब कांग्रेस ने 96 सीटें जीती थी, जबकि बीजेपी के खाते में 78 सीटें आई थी. अगर दोनों पार्टियों का वोट पर्सेंटज देखें तो कांग्रेस को 36.92% और बीजेपी को 35.60% वोट मिले थे. वोट पर्सेंट गिरने के साथ ही बीजेपी की सीटें भी कम हो गई थीं.
2013 विधानसभा चुनाव: राजस्थान में बंपर वोटिंग हुई और एक बार फिर सरकार बदल गई. उस साल 75.04 फीसदी वोट पड़े थे, जो कि 2008 के मुकाबले 8.79 फीसदी ज्यादा था. बीजेपी ने 200 में से 163 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी का वोट शेयर 45.50% और कांग्रेस का 33.31 फीसदी रहा.
पिछले चुनाव के मुकाबले 2013 में कांग्रेस का वोट शेयर मात्र 2.29 फीसदी गिरा, लेकिन 75 सीटों का नुकसान हुआ. वहीं बीजेपी का वोट शेयर 8.58 फीसदी बढ़ा और 85 सीटों का फायदा हुआ.
2018 विधानसभा चुनाव: प्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई. उस साल वोटिंग में कमी देखने को मिली. 2013 के मुकाबले 0.98 फीसदी कम वोट पड़े. 2018 में 74.06% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया. कांग्रेस ने 40.64% वोट शेयर के साथ 100 सीटों पर कब्जा जमाया तो बीजेपी के खाते में 73 सीटें आईं. उसका वोट शेयर 39.08% रहा.
इस लिहाज से अगर वोट प्रतिशत 3 से 8 फीसदी तक बढ़ता है तो बीजेपी को फायदा मिलता है. वहीं वोटिंग में एक प्रतिशत की भी कमी कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होती है. 2018 के मुकाबले 2023 में मामूली बढ़ोतरी देखने को मिली है. ऐसे में अब देखना होगा कि सत्ता की चाबी किसके हाथ लगती है?
VIP सीटों पर कैसी वोटिंग हुई?
राजस्थान की सबसे हाई प्रोफाइल सीट सरदारपुरा है. यहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मैदान में हैं. वहीं उनके सामने बीजेपी ने महेंद्र सिंह राठौड़ को उतारा है. इस बार यहां 61.30% वोटिंग हुई है. 2018 में 66.95% वोट पड़े थे. पिछले बार की तुलना में इस बार 5.65% कम वोटिंग हुई.
झालरापाटन से बीजेपी की कद्दवार नेता और राज्य की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे मैदान में हैं. वहीं कांग्रेस से रामलाल चौहान ताल ठोक रहे हैं. 2018 में इस सीट पर 78.38% मतदान हुआ था, जबकि इस बार 76.67% वोटिंग हुई है.
टोंक में इस बार 73.00% मतदान हुआ है. वहीं 2018 में 76.56% वोटिंग हुई थी. बता दें कि इस सीट से कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट मैदान में हैं. बीजेपी ने अजीत सिंह मेहता को टिकट दिया है.
सवाई माधोपुर में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है. यहां से बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा, कांग्रेस से दानिश अबरार और बीजेपी से बागी होकर निर्दलीय आशा मीना चुनाव लड़ रही हैं. इस बार यहां 70.27% मतदान हुआ, जबकि 2018 में 69.26% वोट पड़े थे. तब कांग्रेस के दानिश अबरार ने आशा मीना को 25 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. लेकिन आशा मीणा के खुद निर्दलीय चुनाव लड़ने से बीजेपी का वोट कटने की आशंका जताई जा रही है.
नाथद्वारा: यहां इस बार 78.20% मतदान हुआ है, जबकि 2018 में 76.39 फीसदी वोट पड़े थे. 2008 में इस सीट पर जीत-हार मात्र 1 वोट से तय हुआ था. तब सीपी जोशी को हार का सामना करना पड़ा था. इस बार उनके सामने बीजेपी ने मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह को टिकट दिया है.
राजस्थान के चुनावी 'रण' में प्रत्याशियों की किस्मत EVM में कैद हो गई है. प्रदेश के रिवाज के मुताबिक, सत्ता परिवर्तन होना चाहिए. लेकिन वोटिंग में मामूली इजाफे से किसे फायदा होगा ये तो नतीजों के बाद ही बता चलेगा. 3 दिसंबर को साफ हो जाएगा कि राजस्थान में ऊंट किस करवट बैठता है. सालों से चली आ रही सत्ता परिवर्तन की परंपरा बरकरार रहती है या फिर अशोक गहलोत अपने किले को बचाने में कामयाब रहते हैं.
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