राजस्थान की राजनीति का वो सुर्ख चेहरा, जिसने कभी किसी से शिकायत नहीं की. जब एक वोट से हारा तो मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया. पत्नी और बेटे ने ही वोट नहीं दिया. कहा जाता है कि उसको हराने के पीछे अशोक गहलोत का हाथ था, क्योंकि सियासत में वो अशोक गहलोत का जूनियर था, और तेजी से राजनीति की सीढ़िया चढ़ रहा था. पेशे से प्रोफेसर था, लेकिन सियासत में छात्र राजनीति से सक्रिय था. राजनीति के शुरुआती दिनों में वो अशोक गहलोत का प्रशंसक था, लेकिन उसके बढ़ते कद ने अशोक गहलोत का धूर विरोधी बना दिया.
एक वक्त था, जब वह राहुल गांधी का आंख-कान हुआ करता था. राहुल गांधी उसके फ्रंटफूट पर खेलने की शैली के कायल थे. यही वजह रही कि जब वह पहली बार संसद पहुंचा तो मनमोहन सरकार में 80 हजार करोड़ के भारी भरकम वाले पंचायतीराज का जिम्मा सौंपा गया. हालांकि, इस वक्त गहलोत और उसके रिश्ते में इतनी मिठास है कि दोनों ने मिलकर सचिन पायलट की राजनीतिक पकड़ को ढीला कर दिया है.
साल 2003, राजस्थान विधासभा चुनाव का वक्त था. अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस मैदान में उतरी थी. गहलोत उस समय मुख्यमंत्री थे, लिहाजा आलाकमान ने उन पर भरोसा जताते हुए कांग्रेस संगठन की कमान भी उन्हीं के हाथों में सौंपी थी. जब चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी पूर्ण बहुमत से सरकार में वापसी की और पहली बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं. गहलोत ने हार की जिम्मेदारी ली और राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया. अब कांग्रेस आलाकमान के सामने चुनौती ये थी कि प्रदेश की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए. कद्दावर जाट नेता परसराम मदेरणा की तरफ कांग्रेस आलाकमान की नजर जाती तब तक उन्होंने राजनीति से सन्यास लेने की घोषणा कर दी.
दरअसल, 1998 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस परसराम मदेरणा के चेहरे पर ही लड़ी थी और 153 सीटों के साथ भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार को मात दी थी. उस वक्त तक साफ था कि अगले कांग्रेस मुख्यमंत्री के तौर पर जाट नेता परसराम मदेरणा होंगे.
30 नवंबर 1998 की दोपहर जयपुर में विधायक दल की बैठक शुरू हुई. राज्य के कांग्रेस प्रभारी माधव राव सिंधिया के अलावा गुलाम नबी आजाद, बलराम जाखड़ और मोहसिना किदवई जयपुर पहुंचे. इन नेताओं ने सभी विधायकों के मन की बात जानने के बाद कहा कि मैडम चाहती हैं कि अशोक गहलोत सीएम बनें. उस वक्त कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं और गांधी परिवार के साथ अशोक गहलोत के मधुर संबंध थे. कहा जाता है कि सोनिया गांधी के निर्देश पर ही मुख्यमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत का नाम फाइनल हुआ था.
प्रवेक्षक बनकर दिल्ली से जयपुर पहुंचे सभी 4 नेताओं ने एक लाइन का प्रस्ताव पारित किया और अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री चुन लिया गया और परसराम मदेरणा को विधानसभा अध्यक्ष पद से ही संतुष्ट होना पड़ा. सबसे बड़ी बात ये है कि गहलोत उस समय विधायक भी नहीं थे. फिर, भी उन्हें विधायक दल का नेता चुन लिया गया. यह पहली बार था जब गहलोत के जादू को राजस्थान के नेताओं ने देखा था. यहीं से राजनीतिक पंडितों ने गहलोत को 'जादूगर' नाम दिया. हालांकि, इस बात से खफा जाटों ने 2003 में कांग्रेस से हाथ पीछे खिंच लिया था और बीजेपी का साथ दिया था.
1998 के चुनाव में सीपी जोशी नाथद्वारा से तीसरी बार विधायक चुने गए थे और गहलोत के सरकार में मंत्री थे. साल 2003 में भी नाथद्वारा की जनता ने सीपी जोशी को चौधी बार विधायक चुनकर विधानसभा भेजा था.
अब कांग्रेस आलाकमान की नजर सीपी जोशी पर पड़ी. काफी सोच विचारकर सीपी जोशी को कांग्रेस की कमान सौंपी गई. इसके बाद सीपी जोशी ने अपने तरीके से प्रदेश की रणनीति बनानी शुरू की. प्रदेश अध्यक्ष के नाते उनका सोनिया गांधी और राहुल गांधी से लगातार मिलने का सिलसिला शुरू हुआ और इस बीच वह सोनिया और राहुल के नजदीक होते चले गए.
प्रदेश की राजनीति में सीपी जोशी का बढ़ता कद देख अशोक गहलोत इनसिक्योर हो गए और यहीं सीपी जोशी और गहलोत के बीच मतभेदों की नींव पड़ी. हालांकि, तब तक सीपी जोशी बहुत आगे बढ़ चुके थे. साल 2008 का विधानसभा चुनाव आया और सीपी जोशी ने अपने तरीके से प्रदेश की राजनीति की फिल्डिंग सजाई, जिसको सोनिया गांधी ने बहुत सराहा था.
एक इंटरव्यू में सीपी जोशी ने कहा था कि...
"जब मुझे राजस्थान में पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था तो मैं कुछ आंकड़ों के साथ सोनिया गांधी जी से मिला था. मैंने उन्हें वल्लभनगर और गंगानगर का उदाहरण दिया था. जहां, वल्लभनगर में लंबे समय से गुलाब सिंह शक्तावत और गंगानगर में राधेश्याम को टिकट मिल रहा था. मैंने उन्हें बताया कि इन क्षेत्रों में मतदाता तो दोगुने हो गए हैं, लेकिन कांग्रेस के वोट पहले जितने ही हैं. इस फासले को कम करने के लिए कुछ बदलाव करने होंगे और जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करना होगा. सोनिया जी ने हमारा उत्साहवर्धन किया और पार्टी मजबूत हुई."
साल 2008 का विधानसभा चुनाव सीपी जोशी के नेतृत्व में लड़ा गया. ये तय माना जा रहा था कि अगर कांग्रेस की सत्ता में वापसी होती है तो सीपी जोशी राजस्थान के अगले मुख्यमंत्री होंगे. खैर विधानसभा चुनाव हुए और जोशी की संगठनात्म कार्यशैली और कड़ी मेहनत की बदौलत कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. लेकिन, सीपी जोशी एक वोट से चुनाव हार गए. कहा जाता है कि उस चुनाव में उनकी पत्नी ने ही वोट नहीं डाला था. जब चुनाव हो रहे थे तो उनकी पत्नी सीपी जोशी की जीत के लिए मंदिर में पूजा कर रहीं थीं. इस एक वोट की वजह से सीपी जोशी का मुख्यमंत्री बनने का सपना अधूरा रह गया.
राजनीति गलियारों में खबरें ये भी हैं कि सीपी जोशी को हराने के लिए अशोक गहलोत ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था. हालांकि, राजनीति पंडितों का मानना है कि इसके बाद भी कांग्रेस आलाकमान सीपी जोशी को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था. लेकिन, एक बार फिर गहलोत का जादू चला और गहलोत ने दिल्ली से अपने नाम का फरमान जारी कर दिया. गहलोत की ताजपोशी हुई और सीपी जोशी को दिल्ली बुला लिया गया.
जब साल 2009 का लोकसभा चुनाव आया तो कांग्रेस आलाकमान ने सीपी जोशी को भीलवाड़ा से मैदान में उतार दिया. सीपी जोशी की जीत हुई और पहली बार सांसद बनकर संसद पहुंचे.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि...
"मैं संसद का चुनाव भी नहीं लड़ना चाहता था, लेकिन सोनिया जी ने मुझसे चुनाव लड़ने को कहा और मैंने संसद का चुनाव लड़ा."
पहली बार सांसद बने सीपी जोशी को कांग्रेस हाई कमान ने 80 हजार करोड़ वाले बड़े महकमे ग्रामीण विकास और पंचायती राज की जिम्मेदारी से नावाजा.
इसके बाद सीपी जोशी के तारे बुलंदियों पर पहुंचे गए. राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद में उनका नाम गिना जाने लगा. ये भी कहा जाता है कि वो राहुल गांधी के आंख कान थे, वो जो कहते थे राहुल गांधी उसे निश्चित तौर पर लागू करते थे. हालांकि, साल 2014 में कांग्रेस की बुरी तरीके से हार के बाद वह प्रदेश की राजनीति तक समीति हो गए. साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई तो सीपी जोशी को विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद गहलोत और सीपी जोशी के रिश्ते अच्छे हो गए.
साल 2019 में सचिन पायलट ने जब बगावत की तो मुख्यमंत्री के रूप में तीसरे विकल्प के नाम पर सीपी जोशी की चर्चा होने लगी. लेकिन, गहलोत और सीपी जोशी की एकजुटता ने पायलट के बगावती खेमे को चुप करा दिया था. हाल के दिनों में जोशी और गहलोत की दोस्ती की मिठास का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब जोशी विधानसभा अध्यक्ष बने तो उन्होंने राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को सौंपी. तभी वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)