राजस्थान (Rajasthan) में हाई प्रोफाइल चुनाव खत्म होने के बाद अब 25 नवंबर यानी आज राज्य की 200 में से 199 विधानसभा सीटों पर वोट डाले गए. कांग्रेस पार्टी का चुनाव अभियान अशोक गहलोत सरकार के रिपोर्ट कार्ड, मुख्यमंत्री की प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं और राज्य में जाति जनगणना जैसे वादों पर केंद्रित रहा, जबकि बीजेपी (BJP) ने भ्रष्टाचार, पेपर लीक और राज्य में कानून व्यवस्था की हालत जैसे मुद्दों को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी को घेरने की कोशिश की.
भारतीय राजनीति के कई बड़े नामों जैसे मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot), पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) और पूर्व डिप्टी सीएम व पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट (Sachin Pilot) के लिए इस चुनाव के नतीजे यह समझने में निर्णायक होंगे कि राजशाही सत्ता समीकरण, हिंदुत्व की राजनीति और जाति समीकरण भारत के सबसे बड़े राज्य में लोगों और राजनीति को किस तरह प्रभावित कर रहे हैं.
राजस्थान के लोग अब जबकि मतदान कर रहे हैं तो यहां हम उन खास सीटों, उम्मीदवारों और राजनीतिक रुझान पर बात करेंगे, जिन पर सबकी नजर रहेगी:
‘महारानी’ और ‘जादूगर’ के लिए परीक्षा की घड़ी
यह, अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे दोनों के लिए अब तक का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है— ये दोनों नेता बीते दो दशकों में राज्य की राजनीति में सत्ता का केंद्र रहे हैं.
2018 में राजस्थान में चुनाव जीतकर पद संभालने के फौरन बाद गहलोत और उनके तत्कालीन डिप्टी व लोकप्रिय कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच अनबन की खबरें आने लगी थीं. जुलाई 2020 में, पायलट के साथ कई दूसरे विधायकों के दिल्ली जाने और कथित तौर पर गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने की कोशिश करने के बाद मतभेद खुलकर सबके सामने आ गए थे. पायलट ने जहां BJP में शामिल होने की खबरों को खारिज किया, वहीं गहलोत ने हिंदुत्ववादी पार्टी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाए.
इस पूरे प्रकरण का खात्मा अशोक गहलोत द्वारा सदन में विश्वास मत जीतने के साथ हुआ. पायलट कांग्रेस पार्टी के साथ रहे, और तब से गहलोत ‘वन-मैन शो’ की तरह सरकार चला रहे हैं.
यहां तक कि चुनाव की तैयारी के दौरान भी कांग्रेस की पूरी तैयारी गहलोत के इर्द-गिर्द केंद्रित थी और दूसरे नेताओं के बारे में बहुत कम चर्चा हुई.
ग्वालियर के सिंधिया घराने की बेटी और पूर्व में धौलपुर के महाराजा से विवाहित पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए यह अस्तित्व बचाने का चुनाव है. निश्चित रूप से राज्य में सबसे लोकप्रिय BJP नेता राजे को पार्टी आलाकमान ने पूरी चुनावी तैयारी के दौरान दरकिनार रखा.
हिंदुत्व बनाम जनकल्याण
महीनों के अभियान के बाद राजस्थान में चुनावी चर्चा अंत में दो मुख्य मुद्दों पर केंद्रित हो गई, जिसमें BJP ने कांग्रेस की कल्याणकारी योजनाओं के खिलाफ हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित हिंदुत्ववादी पार्टी के स्टार प्रचारकों ने राज्य का दौरा किया और कांग्रेस पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” का आरोप लगाया.
उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री मोदी ने 2 अक्टूबर को अपनी रैली में कहा, “उदयपुर में जो हुआ, क्या आपने कभी वैसा कुछ सोचा था? राजस्थान की धरती पर इतना बड़ा पाप हुआ. वे (हत्यारे) कपड़े सिलवाने के बहाने आते हैं और फिर बिना किसी डर के दर्जी की गर्दन काट देते हैं और फिर गर्व से वीडियो वायरल कर देते हैं. और कांग्रेस सरकार को इसमें भी वोट बैंक की चिंता है.”
इसी तरह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 नवंबर को भीलवाड़ा में एक रैली को संबोधित करते हुए ‘राम राज्य’ की वकालत की, अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की मुफ्त यात्रा का वादा किया और राजस्थान में साधुओं की मौत पर कांग्रेस पर निशाना साधा. मुख्यमंत्री ने कहा, “जहां उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में रामनवमी के जुलूस निकलते हैं, वहीं राजस्थान में लोगों को कर्फ्यू और दंगों का सामना करना पड़ता है. यहां साधुओं की हत्या कर दी जाती है, लेकिन राज्य सरकार कुछ भी करने में विफल रहती है.”
दूसरी तरफ कांग्रेस का चुनाव अभियान काफी हद तक कल्याणकारी योजनाओं और चुनाव प्रचार के दौरान वादा की गई नई गारंटियों पर केंद्रित था.
जातिगत आयाम
अगर कांग्रेस पार्टी दोबारा सत्ता में आती है तो उसके कई वादों में से एक है जातिगत जनगणना कराने का वादा. BJP ने भी कांग्रेस से सत्ता छीनने के मकसद से टिकट बंटवारे में जातिगत गणित पर भरोसा किया है.
द इंडियन एक्सप्रेस के एक विश्लेषण के अनुसार, BJP ने 60 OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जो इस चुनाव में पार्टी के कुल उम्मीदवारों का 30 प्रतिशत है. राजस्थान में सबसे प्रमुख OBC समूह जाट समुदाय के BJP नेताओं को 31 टिकट मिले हैं, जबकि दूसरे अपेक्षाकृत छोटे OBC समूहों जैसे यादव, कुमावत, बिश्नोई, सैनी, पटेल, नागर, रावणा राजपूत और धाकड़ को 29 टिकट मिले हैं.
राज्य के रिवॉल्विंग डोर वोटिंग पैटर्न, जिसका मतलब है कि मतदाता हर बार सत्ताधारी दल को सत्ता से बेदखल कर देते हैं, राजस्थान में जाति समूहों की राजनीतिक वफादारी स्थायी नहीं है.
2008 और 2013 में जाट समुदाय के वोट कांग्रेस और BJP के बीच बंटे, जबकि 2018 में समुदाय के एक बड़े तबके ने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) का समर्थन किया. परंपरागत रूप से BJP के वोटर रहे गुर्जरों ने 2018 में अपने समुदाय के नेता सचिन पायलट के लिए एकजुट होकर कांग्रेस को वोट दिया था.
राजस्थान में कुल 59 रिजर्व सीटें हैं, जिनमें 34 अनुसूचित जाति (SC) के लिए और 25 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए हैं. आंकड़े बताते हैं कांग्रेस 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में SC के लिए रिजर्व एक भी सीट जीतने में नाकाम रही. दूसरी ओर BJP ने SC समुदाय के लिए रिजर्व कुल 34 सीटों में से क्रमशः 32 और 33 सीटें जीतीं. ज्यादातर ST रिजर्व सीटों पर भी पार्टी का दबदबा रहा.
कांग्रेस ने 2018 में SC के लिए रिजर्व 19 सीटें और ST के लिए रिजर्व 12 सीटें जीतीं.
मायावती की बहुजन समाज पार्टी (BSP) और चन्द्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी का SC मतदाताओं के बीच कुछ असर है, जबकि भारतीय आदिवासी पार्टी आदिवासियों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश कर रही है. 2018 में BSP ने छह सीटें जीतीं. हालांकि बाद में BSP के सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए.
सीटें और उम्मीदवार जिन पर सबकी नजर होगी
राजस्थान की सभी सीटों पर जोरदार मुकाबला है, मगर कुछ हाई-प्रोफाइल सीटों पर लड़ाई दिलचस्प होगी:
सरदारपुरा (Sardarpura): जोधपुर जिले में यह कांग्रेस का गढ़ रहा है. मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस सीट से चार बार विधायक रहे हैं. उन्होंने 2018 में 60 फीसद से ज्यादा वोट हासिल कर BJP के शंभू सिंह को हराया था.
टोंक (Tonk): कांग्रेस नेता सचिन पायलट की सीट टोंक में अच्छी खासी गुर्जर, मीणा और मुस्लिम आबादी है. इस बार पायलट का मुकाबला BJP के अजित मेहता से है. कुछ समय पहले BJP ने संसद में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी करने वाले दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का प्रभारी नियुक्त किया था.
झालरापाटन (Jhalrapatan): BJP का गढ़ और वसुंधरा राजे की सीट. झालरापाटन राज्य के हाड़ौती क्षेत्र के झालावाड़ जिले में आती है. राजे 2003 से इस सीट से लगातार जीत रही हैं. 2018 में उन्होंने 54 फीसद वोट हासिल कर कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह को हराया था. BJP के दिवंगत दिग्गज नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह इस बार अपने पैतृक जिले बाड़मेर के सिवाना से चुनाव लड़ रहे हैं.
उदयपुर (Udaipur): मेवाड़ क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण सीट. इस सीट पर 2003 से BJP जीतती आ रही है. हालांकि पार्टी के विजयी उम्मीदवार गुलाब चंद कटारिया असम के राज्यपाल बना दिए गए हैं और पार्टी ने अब ताराचंद जैन को नया उम्मीदवार घोषित किया है. उनका मुकाबला कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ से है.
तारानगर (Taranagar): चुरू की तारानगर सीट पर BJP के राजेंद्र राठौड़ और कांग्रेस के नरेंद्र बुढानिया के बीच मुकाबला है. राठौड़ राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं. कांग्रेस ने तारानगर में 10 विधानसभा चुनावों में से छह में जीत हासिल की है, जबकि BJP और जनता दल ने दो-दो बार जीत हासिल की है. राठौड़ पहले जनता दल के टिकट पर जीते हैं.
नाथद्वारा (Nathdwara): राजसमंद जिले के नाथद्वारा निर्वाचन क्षेत्र में BJP ने राज्य विधानसभा स्पीकर और कांग्रेस के दिग्गज सीपी जोशी को टक्कर देने के लिए महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह को मैदान में उतारा है.
लक्ष्मणगढ़ (Lakshmangarh): राजस्थान कांग्रेस प्रमुख गोविंद डोटासरा इस बार पार्टी के गढ़ लक्ष्मणगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं. तीन बार के विधायक डोटासरा 2020 में विद्रोह के बाद सचिन पायलट को हटाए जाने के बाद से राज्य कांग्रेस प्रमुख हैं. यह सीकर जिले की एक महत्वपूर्ण सीट हैं. कांग्रेस 2008 से लक्ष्मणगढ़ जीत रही है.
(क्विंट हिंदी में, हम सिर्फ अपने पाठकों के प्रति जवाबदेह हैं. सदस्य बनकर हमारी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभाएं. क्योंकि सच का कोई विकल्प नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)