राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Election) नजदीक आने के साथ ही 'गुटबाजी' शब्द राज्य में चर्चा का विषय बना हुआ है. बीजेपी के लिए पार्टी के अंदर गुटबाजी से निपटना मुश्किल हो रहा है. जबकि कांग्रेस में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट का झगड़ा राज्य की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए कुछ खास नहीं है.
राजस्थान में सीएम फेस की घोषणा नहीं करेगी बीजेपी?
राजस्थान में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को वसुंधरा राजे, राजेंद्र सिंह राठौड़, सतीश पूनिया, सीपी जोशी, गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल और ओम बिड़ला के बीच तल्खियां देखने को मिल रहा है. सभी नेताओं के सुर अलग सुनाई पड़ रहे है. खासतौर पर, बीजेपी द्वारा दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही वसुंधरा राजे को सीएम फेस घोषित न करने पर, राज्य इकाई के भीतर परेशानी पैदी हो गई है.
यह काफी हद तक साफ है कि विपक्ष शासित राज्यों में अपनी नीति के अनुरूप बीजेपी राजस्थान में मुख्यमंत्री के चेहरा की घोषणा नहीं करने वाली है. 25 सितंबर को जयपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि, "मैं हर बीजेपी कार्यकर्ता को बताना चाहता हूं कि हमारी पहचान और गौरव केवल कमल है."
क्विंट हिंदी को यह भी पता चला है कि बीजेपी मध्य प्रदेश की रणनीति की तरह ही अर्जुन राम मेघवाल, अश्विनी वैष्णव और गजेंद्र सिंह शेखावत जैसे केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनाव में उतारने की योजना बना रही है.
आलाकमान ने हाल ही में राज्य की सभी 200 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने की प्रक्रिया में 'वीटो पावर' के लिए राजे के अनुरोध को भी खारिज कर दिया.
वसुंधरा राजे के एक करीबी सूत्र ने क्विंट हिंदी से बातचीत में बताया, "जमीनी स्तर पर कैडर कंफ्यूज है. एक सच्चाई यह भी है कि जिन राज्यों में विपक्ष सत्ता में है, वहां सीएम चेहरे की घोषणा नहीं करना पार्टी की नीति है. मैडम (वसुंधरा राजे) को लगातार दरकिनार करने से राज्य भर में पार्टी कार्यकर्ताओं की भावना पर असर पड़ा है. आप खुद राजस्थान आकर देखिए. आप यह नहीं बता पाएंगे कि बीजेपी चुनावी मोड में है."
इन असफलताओं के बावजूद, वरिष्ठ नेताओं के साथ कई बैठकों के बाद, वसुंधरा राजे की वफादार रहीं देवी सिंह भाटी को पार्टी में शामिल करना, पूर्व सीएम के समर्थकों के लिए कुछ आशा लेकर आया है.
इस आर्टिकल में हम आपको मुख्य रूप से दो सवालों का जवाब देंगे- सीएम चेहरे के रूप में राजे पर दांव लगाने में बीजेपी की अनिच्छा के पीछे की वजह क्या है और वरिष्ठ बीजेपी नेता के राजनीतिक भविष्य के लिए इसका क्या मतलब है?
बीजेपी राजस्थान में सत्ता में आएगी?
राजस्थान के चुनावी इतिहास को देखा जाए, तो साल 1993 से यहां 'रिवॉल्विंग डोर' मॉडल काम कर रहा है. 'रिवॉल्विंग डोर' मॉडल का मतलब है कि जब भी राज्य में चुनाव होता है, मौजूदा सरकार हार जाती है. इस प्रवृत्ति को देखते हुए, कई लोग भविष्यवाणी कर रहे हैं कि बीजेपी राजस्थान में सत्ता में आएगी - राजे के साथ या उनके बिना.
ऐसे में उन्हें सीएम चेहरा घोषित नहीं करने से पार्टी को विपक्ष शासित राज्यों में पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की परंपरा का पालन करने में मदद मिल सकती है.
जुलाई 2023 में एबीपी-सी वोटर द्वारा किया गया सर्वे भी इस ट्रेंड की पुष्टि करता है. सर्वे के अनुसार, बीजेपी इस साल आसानी से जीत हासिल करने के लिए तैयार है. 200 सीटों वाली राज्य विधानसभा में बीजेपी की 109-119 सीटें जीतने की संभावना है.
इसी सर्वे में यह भी अनुमान लगाया गया है कि जहां 36% बीजेपी समर्थक वसुंधरा राजे को सीएम चेहरे के रूप में देखना चाहते हैं. वहीं 33% बीजेपी समर्थक इस पद के लिए एक नया चेहरा चाहते हैं. दिलचस्प बात यह है कि इसमें शीर्ष पद के लिए गजेंद्र शेखावत और राजेंद्र राठौड़ जैसे राजे के प्रतिस्पर्धियों का नाम शामिल नहीं है.
वसुंधरा और अशोक गहलोत का 'कनेक्शन'
टिकट वितरण से संबंधित घटनाक्रम से परिचित एक सूत्र ने कहा, "वसुंधरा जी बसवराज बोम्मई या गुजरात के उन नेताओं की तरह नहीं हैं, जो पार्टी के 'नो रिपीट' मॉडल से खुश हैं. वह एक जन नेता हैं और जानती हैं कि उन्हें अपना हक कैसे लेना है."
राज्य के एक पूर्व बीजेपी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "यह किसी से छिपा नहीं है कि वसुंधरा राजे के संघ (RSS) और बीजेपी आलाकमान के साथ कभी भी मधुर संबंध नहीं रहे हैं, जिसका परिणाम अब देखा जा सकता है."
साथ ही वसुंधरा राजे और मौजूदा सीएम अशोक गहलोत के आपसी संबंध और 'बैकडोर डील' का व्यापक दावा भी उनके लिए घातक साबित हो रहा है.
जानकारी के अनुसार, वर्ष 2020 में, गहलोत ने अपनी सरकार को गिराने के लिए केंद्रीय नेतृत्व के साथ मिलकर काम नहीं करने के लिए राजे को सार्वजनिक रूप से धन्यवाद दिया था. राजे के गढ़ धौलपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "वसुंधरा राजे और कैलाश मेघवाल ने मेरी सरकार बचाने में मेरी मदद की. उन्होंने मेरी सरकार गिराने के लिए बीजेपी का समर्थन नहीं किया."
दूसरी ओर, सचिन पायलट ने बार-बार गहलोत पर राजे और उनके सहयोगियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों पर नरम रुख अपनाने का आरोप लगाया है.
पीएम मोदी के भाषण में राजे को कोई जिक्र नहीं
पीएम मोदी की 25 सितंबर की जयपुर रैली ने न केवल यह स्पष्ट किया कि पार्टी चुनावों में सीएम चेहरा घोषित नहीं करेगी. बल्कि यह भी संकेत दिया कि बीजेपी राज्य में महिला नेताओं की एक नई पीढ़ी पर भरोसा करना चाहती है.
जहां एक ओर जयपुर रैली के दौरान, पीएम मोदी के भाषण में राजे या सीएम के रूप में उनके पिछले कार्यकाल का कोई जिक्र नहीं था. वहीं दूसरी ओर, बीजेपी सांसद दीया कुमारी और बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव अलका गुर्जर को मंच पर पीएम के साथ प्रमुखता से देखा गया.
वसुंधरा राजे ,पीएम मोदी के इस रवैये का अंंदाजा शायद पहले से ही था. इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री के रैली से ठीक दो दिन पहले, अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुए जयपुर में एक विशाल राजनीतिक रैली आयोजित की थी.
उस रैली में लोगों को संबोधित करते हुए वसुंधरा राजे ने कहा, "मैं राजस्थान छोड़ने वाली नहीं हूं. मैं यहीं रहूंगी और लोगों की सेवा करूंगी."
अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर बढ़ रहा वसुंधरा का करियर
राजस्थान बीजेपी के एक सूत्र के मुताबिक, पार्टी आलाकमान राजे पर अपना रुख नरम कर रहा है. सूत्र ने कहा, "कुछ आंतरिक सर्वे ने संकेत दिया है कि गहलोत सरकार उतना बुरा प्रदर्शन नहीं कर रही है, जितना राज्य में मौजूदा सरकार आमतौर पर करती है. इसका दोष इस बात पर लगाया जा रहा है कि बीजेपी बाहर से कैसे भ्रमित दिखती है. वे जानते हैं कि वे उन्हें पूरी तरह से अलग नहीं कर सकते हैं." .
हालांकि, एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा कि राजे पर दिल्ली की स्थिति सावधानीपूर्वक तय की गई है. "वे नहीं चाहते कि वह दुखी हों. अगर पार्टी जीतती है और वह विधायकों का समर्थन पाने में असमर्थ रहती हैं, तो वह किसी भी तरह से सीएम नहीं बनेंगी. यही कारण है कि वह जितना संभव हो उतने वफादारों को मैदान में उतारने और वीटो करने पर तुली हुई हैं. जो लोग उनके खिलाफ जा सकते हैं, वे जानते हैं कि वह पार्टी नहीं छोड़ेंगी. ऐसे में उनका सबसे अच्छा प्रयास सक्रिय रूप से यह सुनिश्चित करना होगा कि बीजेपी उम्मीदवार हार जाए. हालांकि, इससे उन्हें ज्यादा फायदा नहीं होने वाला."
नतीजतन, राजस्थान में बीजेपी चाहे कैसा भी प्रदर्शन करे, वसुंधरा राजे एक ऐसे चौराहे पर हैं, जो दोनों तरफ अनिश्चित राजनीतिक भविष्य की ओर ले जाता है.
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