देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट घराने में से टाटा ग्रुप के प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट ने लोकसभा चुनाव में देश की पार्टियों को 500-600 करोड़ रुपये तक का चंदा दिया है. प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक इसमें से 220 करोड़ रुपये सिर्फ टीसीएस कंपनी ने दिए हैं.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक टाटा ग्रुप के चंदा देने में 20 गुना से ज्यादा की बढ़ोत्तरी हुई है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में टाटा ने सभी पार्टियों को कुल 25 करोड़ रुपये ही चंदे के तौर पर दिए थे.
टाटा ग्रुप ने सबसे ज्यादा बीजेपी को 300-350 करोड़ का चंदा दिया है, जबकी कांग्रेस को 50 करोड़ रुपये का चंदा मिला. बाकी चंदा तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआई और सीपीएम जैसी पार्टियों को दिया गया.
प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट के मुताबिक बीजेपी को सबसे ज्यादा चंदा इसलिए मिला है क्योंकि लोकसभा में उसके सबसे ज्यादा सदस्य है. और इसी हिसाब से हर पार्टी को चंदा दिया गया है.
क्या है चुनावी चंदा देने की प्रक्रिया?
टाटा ग्रुप की सारी कंपनियां कुछ-कुछ पैसा इस ट्रस्ट में जमा करती हैं. इस ट्रस्ट का काम है पार्टियों तक चंदे का पैसा पहुंचाना. साल 2014 के चुनावों के लिए टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज ने 1.48 करोड़ रुपये दिए थे. लेकिन इस बार टीसीएस ने 220 करोड़ रुपये का फंड इस ट्रस्ट को दिया है. टीसीएस के अलावा टाटा ग्रुप की और कंपनियां जैसे टाटा संस, टाटा मोटर्स, टाटा पॉवर और टाटा ग्लोबल बेवरेज लिमिटेड ने भी प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट में पैसे जमा किए हैं.
पहले टाटा के ट्रस्ट की ओर से राजनीतिक पार्टियों को चंदे का आधा पैसा चुनावों के पहले और आधा पैसा चुनावों के बाद दिया जाता था. लेकिन बाद में ये नियम बदल दिया गया और अब पूरा चंदा चुनाव के पहले ही दे दिया जाता है. इससे सत्ता में बैठी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होता है.
ADR ने बताई ये बड़ी बात
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के मुताबिक साल 2004-05 से लेकर 2017-18 तक देश की पार्टियों को 9,278.3 करोड़ रुपये का चंदा मिला है. इसका बहुत बड़ा हिस्सा यानी 6,612.42 करोड़ का चंदा अनजान सोर्स से आया है. अकेले साल 2016-17 के दौरान 1,559.17 करोड़ का चंदा पार्टियों को मिला, जिसमें से 710.8 करोड़ का चंदा अनजान सोर्स से पार्टी को मिला.
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