गजवेल (Gajwel) के पास ऐसा क्या है, जो शेष तेलंगाना (Telangana Elections) के पास नहीं है? यहां से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) विधानसभा के निर्वाचित सदस्य हैं और यह निर्वाचन क्षेत्र न तो इस विशेषाधिकार पर प्रकाश डालता है और न ही इसे कम करने का कोई प्रयास करता है.
नगरपालिका बोर्ड की ओर से लगाई गई शहर की सीमा पर संगरमरमर जैसी चमचमाती चिकनी सड़कें, इस VIP निर्वाचन क्षेत्र में आपका स्वागत करती हैं. मुख्य सड़कें चार-लेन वाली हैं; बीच में लंबे पेड़ लगाए गए हैं, जिनकी शाखाएं करीने से काटी गई हैं.
यहां के चमकीले बोर्ड, मैटरनिटी अस्पताल और टाउन पुलिस मुख्यालय का रास्ता दिखाते हैं. अधिकांश साइन बोर्डों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर तेलुगु की जगह अंग्रेजी में नाम लिखा गया है और लगभग हर निजी बैंक की एक प्रमुख शाखा मुख्य सड़कों पर ही बनी है.
फिर भी, जो बिल्कुल विरोधाभासी है, वह यह धारणा है कि गजवेल के निवासी अपने 'पेड्डा कोडुकु' या बड़े बेटे से खुश हैं - जैसा कि केसीआर को यहां संबोधित किया जाता है. भले ही बुनियादी विकास ने तेलंगाना के प्रमुख शहरों और छोटे शहरों के बीच आर्थिक अंतर को कम कर दिया है, लेकिन यह इतनी स्पष्ट समृद्धि नहीं है.
केसीआर की अनुपस्थिति और उनके तक आसानी से नहीं पहुंच पाना शायद उस कस्बे की दुखती रग है, इसके आलावा यहां बाकी सब कुछ साफ-सुथरा और व्यवस्थित नजर आता है.
10 साल या दो कार्यकाल के लिए, केसीआर ने गजवेल को अपना घर और तेलंगाना को अपना किला बनाया और यहां उन्हें कोई कड़ी टक्कर नहीं मिली है. छह बार सिद्दीपेट (वह जिला जहां गजवेल है) जीतने के बाद, केसीआर ने 2014 में वी प्रताप रेड्डी को लगभग 20,000 वोटों से और 2018 में 50,000 से अधिक वोटों से हराया था.
1983 में चुनावी मैदान में एंट्री के अलावा, केसीआर कभी चुनाव नहीं हारे. प्रतिद्वंद्वी की राजनीतिक कद उनके लिए कभी मायने नहीं रहा.
खेत-नौकरी नहीं पर पानी बहुत
"हमें हर बार एक ही व्यक्ति को वोट क्यों देना चाहिए?" सेकु सत्तय्या, जो पिछड़े वर्ग की वोडेरा उपजाति से आते हैं, वो ये सवाल करते हैं. पहले वे पत्थरों को तोड़ते थे, उन्हें बजरी बनाते और उसे रोजी-रोटी के लिए बेचते थे.
अब आजीविका छीन जाने पर दुख जताते हुए कहते हैं...
"परियोजना दो साल पहले शुरू हुई थी, इसलिए मैं अब पहाड़ी पर जाने में असमर्थ हूं. कई चट्टानें पानी में समा गई हैं".
सत्तय्या तब से ग्राम पंचायत कार्यालय में छोटे-मोटे काम करके गुजारा कर रहे हैं. कुछ अन्य लोग आजीविका के इस नुकसान पर दुख व्यक्त कर रहे हैं.
जलाशय मल्लन्ना सागर यहां एक विचाराधीन मुद्दा है. मल्लन्ना सागर 50 टीएमसीएफटी की क्षमता वाला एक 'बाहुबली-स्केल' मानव निर्मित जलाशय है, जिससे खेतों की सिंचाई और हैदराबाद महानगरीय क्षेत्र को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए 7,400 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है. इस विशाल जलाशय के निर्माण से भारी कीमत चुकाकर भी हर घर में पाइप से पीने का पानी पहुंचाया गया.
यहां लगभग 14 गांव जलमग्न हो गए और सुंकु मल्लियाह जैसे किसानों, जिनकी उम्र अब 70 साल से अधिक हो गई है, उन्हें मामूली रकम के बदले में अपनी जमीनें छोड़नी पड़ीं.
मल्लैया ने सवाल खड़े करते हुए कहा...
"इंदिरा गांधी के समय हमें जो जमीनें दी गई थीं, वे सभी जब्त कर ली गई हैं. हमारी जमीनें छीनने के बाद मुख्यमंत्री कौन सा कृषि ऋण माफ करेंगे?"
केसीआर ने परियोजना के लिए अपनी जमीन छोड़ने वाले प्रत्येक किसान, जिन्हें 8 लाख रुपये प्रति एकड़ के नकद मुआवजे नहीं चाहिए, एक रेडीमेड दो बेडरूम का घर देने का वादा किया.
वोटेम राजू, जो उनके घर के निर्माण की देखरेख कर रहे हैं, वे कहते हैं कि प्रति गांव लगभग 2,000-3,000 एकड़ कृषि भूमि थी. उन्हें और कुछ अन्य लोगों को गजवेल में एक पुनर्वास स्थल पर अपने घर बनाने के लिए जमीन के छोटे भूखंड दिए गए हैं.
पिछले पांच साल में गजवेल और उसके आसपास अवैध शराब की बढ़ोतरी पर अपनी नाराजगी राजू छुपा नहीं सके. उन्होंने कहा...
"हम दोरापलाना (सामंती प्रभुओं का शासन) में वापस आ गए हैं. हमारे पास न तो हमारी जमीन है और न ही हमारी नौकरियां, लेकिन बहुत सारी शराब है."
कुछ किलोमीटर दूर, कोमाटीबंदा में, 50 साल की ज्योति भी कई शिकायतें करती हैं लेकिन सावधानी से.
कोमाटीबंदा एक गांव है, जो गजवेल निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है और ज्योति अपनी किराने की दुकान पर आने वाले छोटे बच्चों को मूंगफली और गुड़ से बनी एक तीखी मिठाई चिक्की के छोटे-छोटे टुकड़े बेचती हुई विस्तार से अपनी कहानी कहती हैं.
पुराने ग्राहकों को मूंगफली चिक्की के साथ देशी शराब का एक प्लास्टिक गिलास भी परोसा जाता है.
ज्योति ने यह तो नहीं बताया कि वो किसे वोट देंगी लेकिन उन्होंने अपनी परेशानी बयां करते हुए कहा...
"मैंने अपनी बेटी को ग्रुप IV तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल होने के लिए कोचिंग करने के लिए हैदराबाद भेजा है. इसके लिए मैंने लगभग 5-6 लाख रुपये खर्च किए. परीक्षा के बाद, हमने सुना कि ये परीक्षा फिर से आयोजित की जाएगी. अब, मैं क्या करूं? इतना पैसा खर्च करने के बाद अब मैं अपनी बेटी की शादी भी नहीं कर सकती हूं."
केसीआर की बीआरएस सरकार ने 2018 में सत्ता में लौटने पर प्रत्येक परिवार के लिए एक नौकरी का वादा किया था. इसके साथ ही, विभिन्न स्तरों पर राज्य सरकार में दो लाख वैकेंसी को भरने की कसम खाई थी.
एटाला फैक्टर
यह वह असंतोष है, जिसे केसीआर के धुर विरोधी इसे कैश करना चाहते हैं. एटाला अपनी रैलियों के दौरान गरजते हुए कहते हैं, "हर घर में एक सदस्य है, जो केसीआर के अधूरे वादों के कारण प्रभावित है. मैं भी एक पीड़ित (राजनीतिक) हूं."
एटाला का यह आत्मविश्वास मुदिराज समुदाय से आता है, जिससे वो संबंधित है. मुदिराज तेलंगाना में 18 वर्गीकृत पिछड़े वर्गों का हिस्सा हैं और उन्होंने लंबे समय से मछली पकड़ने को अपने मुख्य पेशे के रूप में अपनाया है. गजवेल के करीब 65 प्रतिशत मतदाता पिछड़े वर्ग से हैं और केसीआर के कैबिनेट में पूर्व स्वास्थ्य मंत्री इन आंकड़ों को केसीआर के खिलाफ बढ़ाना चाह रहे हैं.
चार बार के विधायक एटाला राजेंद्र, केसीआर के वित्त मंत्री और बाद में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं. वे तेलंगाना राज्य आंदोलन के लंबे समय तक कार्यकर्ता थे.
2021 में, मुख्यमंत्री को एक गुमनाम पत्र मिलने के कुछ ही दिनों के भीतर केसीआर ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एटाला और उनके परिवार के स्वामित्व वाली जमुना हैचरी कथित तौर पर भूमि-हथियाने की गतिविधियों में शामिल थीं.
एटाला को तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति की ओर से गलत तरीके से निशाना बनाया गया, क्योंकि जांच समिति गठित होने से पहले ही उन्हें कैबिनेट से हटा दिया गया था. इसके बाद, एटाला बीजेपी में शामिल हो गए और उसी साल हुजूराबाद से उपचुनाव में जीत दर्ज की.
दोनों पूर्व सहयोगियों के बीच रिश्तों में खटास का असर बीआरएस पार्टी के टिकट वितरण के दौरान भी पड़ा. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मुदिराज समुदाय को एक भी बीआरएस टिकट नहीं देना भी नाराजगी का एक कारण है.
इसके विपरीत, बीजेपी, जिसका अब एटाला हिस्सा है, ने अब तक ओबीसी को 32 से अधिक टिकट दिए हैं और जाहिर तौर पर एटाला के कई समर्थकों को भी चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है.
अगर किसी को एटाला राजेंदर का SWOT एनालिसिस करना हो, तो उनकी मजबूत पकड़ उनकी पहुंच और उनके बढ़ते समर्थन आधार को बढ़ाने की उनकी क्षमता है.
लंबे समय तक चुनावों को कवर करने वाले वरिष्ठ स्तंभकार सुसरला नागेश ने कहा...
"एटाला लोगों के घरों में शोक व्यक्त करने या पार्टी कार्यकर्ता की शादी में शामिल होने जाते हैं. वह जानते हैं कि अपने लोगों को कैसे खुश रखना है."
यह एक कारण हो सकता है कि वह बीजेपी के लिए इतने खास क्यों हैं? भगवा पार्टी के साथ उनका जुड़ाव कांग्रेस और बीआरएस के लिए महंगा साबित हो सकता है.
नागेश ने बताया, "उन्हें हुजूराबाद और गजवेल दोनों से चुनाव लड़ने की अनुमति दी जा रही है, यह उनकी योग्यता साबित करने का सबसे अच्छा मौका है." उन्होंने आगे कहा कि एटाला अपने प्रतिद्वंदी के लिए सबसे बड़े बाधक बन सकते हैं.
भानुचंद्र शिवमल्ली (30 साल) स्वरोजगार से जुड़े हैं. वे पिछले पांच साल से राज्य में राजनीतिक परिवर्तनों के गवाह रहे हैं. वे एटाला से सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन्होंने गजवेल में समानांतर कहानी को संक्षेप में बताया. वे कहते हैं...
"हमें एटाला से बहुत लगाव हो सकता है लेकिन हम फिर भी केसीआर को वोट देंगे."
गजवेल में संरक्षक की भूमिका में केसीआर
यह भानु चंद्र का निष्कर्ष है, जो यह विश्वास करने पर मजबूर करता है कि नायकों को भूलना कठिन है और उनकी जगह लेना कठिन है. वे स्वरोजगार करते हैं, इसलिए उनका कहना है कि केसीआर की योजनाओं से उन्हें बहुत कम लाभ होता है. अपने विधायक से उनकी सबसे बड़ी मांग एक निम्न-मध्यम परिवार से एक मध्यम-वर्गीय आय वर्ग से संबंधित आर्थिक सीढ़ी पर चढ़ना है.
पेंशनभोगी और विधवा महिला थोड़ा से केसीआर को राहत दे सकते हैं. 'आसरा' पेंशन योजना जो वरिष्ठ नागरिकों, विधवाओं और बुनकरों को हर महीने 1,000 रुपये देती है, यही कारण है कि कई महिलाएं केसीआर की जय-जयकार कर रही हैं.
गजवेल से सड़क के नीचे, तूप्रान जादैया और उसका दोस्त, जो दोपहर की सैर पर दिहाड़ी मजदूर/कुली के रूप में निर्माण कार्य के लिए सामग्री ढोने का काम कर रहे हैं. कहते हैं "एटाला के पास एक अच्छा मौका है, लेकिन हमें लगता है कि केसीआर इसमें सफल होंगे." दोनों व्यक्ति उस निश्चितता के साथ कहते हैं, जिस पर केवल स्थानीय लोग ही दावा कर रहे हैं.
इन कहानियों से पता चलता है कि कैसे केसीआर समाज के कुछ सबसे अनदेखे वर्गों में अपने लिए समर्थन मजबूत कर रहे हैं, जिसका वोटों की गिनती के दिन महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है. एक व्यापारिक प्रतिष्ठान चलाने वाले अमराज रमेश और एक पशु चिकित्सक उपेन्द्र, जिनसे द क्विंट ने बात की, उन्होंने अपना अनौपचारिक फैसला सुनाया-"जो भी जीतेगा, बहुत कम बहुमत से जीतेगा." यह, शायद, गजवेल में आगामी लड़ाई की छोटी तस्वीर दिखा रहा है.
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