ADVERTISEMENTREMOVE AD

मेयर, राजयपाल और अब UP में मंत्री- बेबी रानी मौर्य का दिलचस्प राजनीतिक सफर

बेबी रानी मौर्य को बीजेपी आलाकमान BSP सुप्रीमो मायावती की काट के तौर पर क्यों देख रहा?

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बेबी रानी मौर्य को योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल किया गया है। बेबी रानी मौर्य को भाजपा आलाकमान बसपा सुप्रीमो मायावती की काट के तौर पर देख रहा है और इसलिए उन्हें उत्तराखंड के राजभवन से वापस बुला कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में दोबारा से सक्रिय और बड़ी भूमिका दी गई है।

ADVERTISEMENTREMOVE AD

उत्तर प्रदेश राज्य बाल आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग में रह चुकी बेबी रानी मौर्य का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है। अटल-आडवाणी के दौर में बेबी रानी मौर्य ताज नगरी आगरा की मेयर चुनी गई थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्हें एत्मादपुर विधानसभा क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान, अगस्त 2018 में उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बना कर देहरादून के राजभवन भेज दिया गया। भारतीय राजनीति की परंपरा के अनुसार , राज्यपाल के पद को आमतौर पर सक्रिय राजनीति से सन्यास लेने का प्रतीक माना जाता है।

लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती की घटती ताकत और जाटव मतदाताओं के महत्व ने एक बार फिर से भाजपा आलाकमान को बेबी रानी मौर्य के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया। पार्टी के निर्देश पर राज्यपाल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सितंबर 2021 में उन्होंने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया।

राज्यपाल पद से इस्तीफा देने के बाद भाजपा आलाकमान ने सक्रिय राजनीति में उन्हें बड़ी भूमिका देते हुए भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। विधानसभा चुनाव में उन्हें आगरा ग्रामीण सीट से चुनावी मैदान में उतारा गया और विधायक बनने के बाद उन्हें योगी आदित्यनाथ मंत्रिमंडल में शुक्रवार को कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल कर लिया गया।

दरअसल, भाजपा ने बेबी रानी मौर्य को मंत्री बनाकर एक साथ महिला और दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। दलितों में भी भाजपा की नजर बसपा के कट्टर वोट बैंक जाटव पर है । 2024 के लोकसभा चुनाव में महिला और दलित, दोनों ही मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। भाजपा को यह लग रहा है कि मायावती के लगातार कमजोर होने की वजह से जाटवों को भी अब भाजपा के पक्ष में लाना संभव हो गया है और इसलिए पहले बेबीरानी मौर्य को सक्रिय राजनीति में लाकर और बाद में उनका कद बढ़ाकर भाजपा ने बड़ा दांव खेल दिया है।

आपको बता दें कि, भारतीय राजनीति में आमतौर पर नेता राज्यपाल बनने के बाद सक्रिय राजनीति से रिटायरमेंट ले लेते हैं लेकिन मोतीलाल वोरा, एसएम कृष्णा और सुशील कुमार शिंदे जैसे कई ऐसे भी नेता रहे हैं, जिन्होंने राज्यपाल के पद से हटने के बाद दोबारा से सक्रिय राजनीति में लंबी पारी खेली है।

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×