उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बस्ती जिले में बीजेपी का परफॉर्मेंस बहुत ही निराशाजनक रहा है. पार्टी यहां की 5 सीटों में से केवल एक सीट ही जीतने में कामयाब रही है. जबकि एसपी और उसके सहयोगी दल ने 4 सीटों पर कब्जा जमाया है. 2017 में पांचों सीटों पर कब्जा जमाने वाली बीजेपी की 2022 में शर्मनाक हार हुई है. जिले में मोदी-योगी फैक्टर भी नहीं काम कर पाया. तो एसपी ने बेहतर मैनेजमेंट के जरिए चुनाव में जीत हासिल की है.
किस सीट का क्या है हाल ?
बस्ती सदर
जीते- महेंद्र नाथ यादव (एसपी)- 86,029 वोट
दूसरे- दयाराम चौधरी (बीजेपी)- 84,250 वोट
तीसरे-आलोक रंजन वर्मा (बीएसपी)- 36,429 वोट
चौथे- देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव (कांग्रेस)- 4105 वोट
हरैया
जीते- अजय सिंह (बीजेपी)- 88,200 वोट
दूसरे- त्रयंबक नाथ (एसपी)- 69,871 वोट
तीसरे- राजकिशोर सिंह (बीएसपी)- 55,697 वोट
चौथे- लबोनी सिंह (कांग्रेस)- 2008 वोट
कप्तानगंज
जीते- कविंद्र चौधरी (एसपी)- 94,273 वोट
दूसरे- चंद्रप्रकाश शुक्ला (बीजेपी)- 70,094 वोट
तीसरे- जहीर अहमद (बीएसपी)- 40,381 वोट
चौथे- अंबिका सिंह (कांग्रेस)- 3527 वोट
रुधौली
जीते- राजेंद्र प्रसाद चौधरी (एसपी)- 86,360 वोट
दूसरे- संगीता देवी (बीजेपी)- 71,134 वोट
तीसरे- अशोक कुमार (बीएसपी)- 37,618 वोट
चौथे- पुष्करादित्य सिंह (आप)- 24,463 वोट
महादेवा
जीते- दूधराम (SBSP)- 83,350 वोट
दूसरे- रवि (बीजेपी)- 77,855 वोट
तीसरे- लक्ष्मीचंद खरबर (बीएसपी)- 40,207 वोट
चौथे- पूर्णिमा (JAP)- 2907 वोट
हार-जीत के बड़े कारण ?
बस्ती जिले में बीजेपी अंतर्कलह की शिकार हुई है. नतीजतन बीजेपी को 5 में से 4 सीटें गंवानी पड़ी. 2017 का इतिहास दोहराने की बात तो दूर पार्टी पूरा दमखम लगाने के बाद भी सम्मानजनक जीत दर्ज करने में असफल रही. टिकट बंटवारे के पहले से शुरू हुआ असंतोष चुनाव में भी देखने को मिला.
बीजेपी की एक लाॅबी बस्ती सीट पर शुरू से ही दयाराम का विरोध कर रही थी. इनका टिकट कटवाने यह धड़ा खुलकर विरोध कर रहा था. यही स्थिति रुधौली और कप्तानगंज सीट पर भी देखने को मिली. चुनाव नतीजों में बीजेपी की इस कलह का फायदा एसपी को हुआ है.
मुंडेरवा क्षेत्र में किसानों की नाराजगी, महंगाई और बेसहारा पशुओं का मुद्दा भुनाने में समाजवादी पार्टी सफल रही.
2022 के विधानसभा चुनाव में बस्ती के युवा वोटरों ने एसपी का खुलकर साथ दिया है. इस बार के चुनाव में युवा वोटर्स बीजेपी उम्मीदवारों से खुश नहीं थे. वहीं समाजवादी पार्टी युवा वोटर्स को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही.
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