उत्तर प्रदेश चुनाव (UP Election Result 2022) में कांग्रेस (Congress) का वही हुआ जिसका कांग्रेस और बाकी लोगों को अंदाजा था, लेकिन बीजेपी (BJP) और एसपी (SP) के बीच की इस लड़ाई में प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की रैलियों में जुटती भीड़ कांग्रेस को थोड़ा ढांढस बंधा रही थी कि भगवान भरोसी ही सही लेकिन शायद कुछ हो जाये. पर ऐसा कुछ हुआ नहीं, कांग्रेस के लिए रिजल्ट अपेक्षा से भी नीचे ही रहा है. लेकिन सवाल ये है कि दिल्ली के दुर्ग पर सबसे ज्यादा वक्त तक काबिज रहने वाली कांग्रेस ने यूपी चुनाव से क्या पाया और क्या खोया.
कांग्रेस को यूपी चुनाव से क्या मिला ?
लोकतंत्र में सबसे ब़ड़ी ताकत वोट को माना गया है और कांग्रेस उस ताकत से कोई खास हिस्सा यूपी में निकाल नहीं पाई है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस को 403 सीटों में से मात्र 2 सीटें हासिल हुई हैं, और मात्र 2.33 फीसदी वोट मिले हैं जो आरएलडी से भी कम हैं जबकि वो मात्र 33 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और कांग्रेस सारी सीटों पर. वैसे ही कांग्रेस की हालत उत्तर प्रदेश में पतली थी और रही सही कसर इस चुनाव में निकल गई. क्योंकि जरा देखिए 2017 का चुनाव कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था, और उसे 7 सीटें मिली थी. तब कांग्रेस का वोट प्रतिशत 6.25 फीसदी रहा था.
मतलब ये है कि कांग्रेस के पास इस चुनाव में खोने के लिए कुछ खास नहीं था लेकिन जो बचा था वो भी गंवा दिया.
प्रियंका गांधी क्या 2022 में 2024 की तैयारी कर रही थी?
प्रियंका गांधी ने नतीजों से ठीक एक दिन पहले अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक ट्वीट किया. जिसमें लिखा था कि मायूस नहीं होना, हमारी लड़ाई तो बस अभी शुरू हुई है. ऊर्जा के साथ हमें आगे बढ़ना है. प्रियंका गांधी का ये ट्वीट बताता है कि नतीजों का उन्हें पहले से अंदाजा था. वो जानती थीं कि भले ही उनकी सभाओं में जबरदस्त भीड़ उमड़ रही है लेकिन वो वोट तब्दील हो इसकी उम्मीद कम ही है. प्रियंका गांधी की नजर 2024 के आम चुनाव पर थी जिसमें बीजेपी के ठीक सामने कांग्रेस खड़ी होगी. उनके ट्वीट और चुनाव खत्म होने के बाद भी लड़की हूं लड़ सकती हूं कार्यक्रम करना तो इसी ओर इशारा करता है.
यूपी चुनाव नतीजे 2022 के बाद प्रियंका ने क्या कहा?
यूपी चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा कि, लोकतंत्र में जनता का मत सर्वोपरि है. हमारे कार्यकर्ताओं और नेताओं ने मेहनत की, संगठन बनाया, जनता के मुद्दों पर संघर्ष किया. लेकिन, हम अपनी मेहनत को वोट में तब्दील करने में कामयाब नहीं हुए.
उन्होंने आगे कहा कि,
कांग्रेस पार्टी सकारात्मक एजेंडे पर चलकर उप्र की बेहतरी व जनता की भलाई के लिए संघर्षशील विपक्ष का कर्तव्य पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाती रहेंगी.प्रियंका गांधी
कहां चूकीं प्रियंका गांधी?
प्रियंका गांधी पिछले लगभग दो साल से यूपी में सक्रिय दिख रही थीं. 2019 में उन्हें कांग्रेस ने महासचिव बनाया और फिर यूपी की जिम्मेदारी सौंपी. जिसके बाद कांग्रेस उम्मीद कर रही थी कि यूपी में बड़े नाम के साथ शायद कुछ कमाल किया जा सकता है.
भीड़ जुटाई वोट नहीं
प्रियंका गांधी की रैलियों और रोड शोज़ में भीड़ तो खूब आई लेकिन वो वोट में तब्दील नहीं हो सकी जैसा, प्रियंका ने खुद नतीजों के बाद माना. क्यों उनके लड़की हूं लड़ सकती हूं कैंपेन ने खूब सुर्खियां बटोरी और महिला को टिकटों में 40 प्रतिशत आरक्षण भी चर्चा का विषय बना. लेकिन ये चर्चा और भीड़ वोट जुटाने में नाकाम साबित हुई.
अंदरूनी कलह को नजरअंदाज किया ?
जब यूपी की कमान प्रयंका के हाथ में आई तो आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद और ललितेशपति त्रिपाठी उनसे कुछ खास खुश नहीं थे इसीलिए उन्होंने सोनिया गांधी को लेटर लिखा और राहुल गांधी के पास भी गए जहां से जवाब मिला कि प्रियंका से मिलो. लेकिन प्रियंका ने उनसे मुलाकात नहीं की और बाद में आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद बीजेपी में चले गए और ललितेशपति त्रिपाठी बीजेपी के साथ हो लिए.
इन नेताओं के जाने से थोड़ा ही सही लेकिन संगठन पर असर पड़ा जो पहले से ही उत्तर प्रदेश में वेंटिलेटर पर था.
राजनीतिक से ज्यादा सामाजिक लगा कैंपेन
प्रियंका गांधी जिस कैंपेन के साथ यूपी चुनाव में उतरी थी वो किताबों, भाषणों और चर्चाओं में तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन यूपी में राजनीतिक रूप से वो कितना स्वीकार्य है इसका जवाब नतीजों में साफ दिखता है. उन्होंने महिलाओं पर फोकस किया था. कई ऐसी महिलाओं को टिकट दिया गया था जिन्होंने पहले कभी चुनाव नहीं लड़ी. उन्नाव में रेप सर्वाइवर की मां को टिकट दिया गया लेकिन उन्हें भी वोट नहीं मिले.
यूपी चुनाव से कांग्रेस के लिए क्या कुछ पॉजिटिव भी निकला है?
जाहिर है कांग्रेस की यूपी विधानसभा चुनाव में बुरी हार हुई और इसकी बड़ी जिम्मेदारी का हिस्सा शायद प्रियंका गांधी पर ही आएगा, लेकिन आप ये तो मानेंगे कि कांग्रेस के पास इस चुनाव में खोने के लिए कुछ खास था भी नहीं. तो अगर इस चुनाव से कांग्रेस अपने लिए पॉजिटिव ढूंढेगी तो सबसे पहले उनकी नजर प्रियंका गांधी पर जाएगी. क्योंकि जिस आक्रामकता और दिलेरी से उन्होंने प्रचार किया था, उसने भीड़ को इकट्ठा जनता के बीच तक पहुंच बनाई. कम से कम ग्रामीण आंचल तक ये बात पहुंची कि कोई प्रियंका गांधी है जो कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं.
इसे एक उदाहरण से समझिए कि मैं उत्तर प्रदेश की अमरोहा विधानसभा के एक छोटे से गांव जोगीपुरा से आता हूं. वहां दशकों से मैंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का कभी नाम भी नहीं सुना था. क्योंकि लंबे समय से उस सीट पर एसपी जीतती आ रही है, लेकिन इस बार कई बच्चे मुझे प्रियंका का कैप और बिल्ला लगाए दिखे जिस पर मैं लड़की हूं लड़ सकती हूं छपा था. मैंने उनसे पूछा कि ये किसका है...उनका जवाब था प्रियंका का.
मतलब वो प्रयंका को जानते थे जो कांग्रेस के लिए बड़ी बात है क्योंकि कांग्रेस को यूपी के बच्चे कम ही पहचानते थे. तो कांग्रेस इस बात को पॉजिटिटिवली ले सकती है कि उनकी सभाओं में भीड़ी आई और प्रियंका गांधी को लोग पहचानने लगे.
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