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यूपी चुनाव: क्या लखनऊ के लोग कोविड के दर्द और गंगा में तैरती लाशों को भूल गए?

यूपी में ऑक्सीजन की कमी से मरने वालों के कुछ परिजनों ने कहा-सेकेंड वेव के लिए BJP को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

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वीडियो एडिटर : दीप्ति रामदास

26 साल के स्वप्निल रस्तोगी परेशान रहते हैं. उन्होंने अपने पिता, राजकुमार रस्तोगी को अप्रैल 2021 में कोरोना (Covid19) की दूसरी लहर के दौरान खो दिया था. इधर-उधर दौड़ने के बाद, ऑक्सीजन और बेड की तलाश में काफी समय तक इधर उधर दोड़ने के बाद वो असहाय थे. इस दौरान जब उन्हें एक ऑक्सीजन सिलेंडर मिला तो उन्हें बताया गया कि उनके पिता की हालत गंभीर है और एक वेंटिलेटर की जरूरत है. इससे पहले कि वो हॉस्पिटल में एक वेंटिलेटर के साथ एक बेड की व्यवस्था कर पाते, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. स्वप्निल ने कहा कि तब तक मेरे पिता जिंदगी की जंग हार चुके थे.

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स्वप्निल का परिवार, उनके पिता के लिए सुविधाएं मुहैया हो सके इसके लिए दर-दर भटकता रहा. स्वप्निल ने कहा कि उस वक्त हर कोई गुस्से में था. मेरे अपने परिवार के सदस्य बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं. हमने जिस आघात का सामना किया और गंगा पर तैरते शवों को वें भूल गए हैं.

"मेरे पिता खुद बीजेपी के प्रबल समर्थक थे और बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का समर्थन करते थे. लेकिन अंत में क्या हुआ? जरूरत के समय उन्हें हॉस्पिटल का बेड भी नहीं मिला."
स्वप्निल
उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान गंगा नदी पर तैरती लाशों के नजारों से पूरे देश में आक्रोश फैला था.

यहां तक ​​कि विश्व स्तर पर निंदा की जा रही थी. उस वक्त यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया था कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद बीजेपी सरकार का पतन तय है. इस दौरान कई लोगों ने अपने प्रियजनों को ऑक्सीजन और हॉस्पिट में बेड की कमी के कारण खो दिया था.

मेरे पिता के रिश्तेदार उनकी मृत्यु को बहुत जल्दी तर्कसंगत बनाने लगे. वे कहते हैं कि अगर अमेरिका जैसा देश कोरोना के दौरान फेल साबित हुआ तो हम तो अभी भी एक विकासशील राष्ट्र हैं.
स्वप्निल

'मैंने अपने भाई को ऑक्सीजन की कमी के कारण खो दिया, लेकिन बीजेपी को दोष नहीं दे सकता'

द क्विंट से बात करते हुए, स्वप्निल के चाचा आर.बी. रस्तोगी ने कहा कि उस समय किसी की भी मृत्यु हो सकती थी. उन्होंने कहा कि पूरी तरह से भाग्य और संयोग की बात थी.

दिसंबर 2021 में यूपी सरकार ने विधान परिषद कहा कि कोरोना महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी के कारण राज्य में कोई मौत नहीं हुई. जबकि कई ग्राउंड रिपोर्ट इस कथन के पूरी तरह से विपरीत है. रस्तोगी ऑक्सीजन की कमी के लिए 'ब्लैक मार्केटर्स' को दोषी ठहराते हैं, सरकार को नहीं.

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यह कालाबाजारियों की गलती है, नहीं तो ऑक्सीजन की कमी नहीं होती. ऑक्सीजन की कमी के कारण मैंने अपना छोटा भाई खो दिया लेकिन मैं इसके लिए सरकार को दोष नहीं दूंगा.
आर बी रस्तोगी

योगी सरकार के बड़े प्रशंसक रस्तोगी ने कहा कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी ऐसा राजनेता नहीं देखा, जिसने जनता के लिए इतना कुछ किया हो.

उन्होंने आगे कहा कि योगी जी एक समय खुद कोरोना से संक्रमित हो गए थे. तो यह उन चीजों में से एक है जिसे आप किसी मशीन का उपयोग करके जादुई रूप से ठीक नहीं कर सकते. बीजेपी सरकार जितना अच्छा कर सकती थी किया, उसने अधिकतम प्रयास किए.

‘बीजेपी हमें आतंकियों से सुरक्षित महसूस कराती है'

तारा तिवारी के लिए परिवार का एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति, अपने पति को खोना एक विनाशकारी अनुभव था. उन्होंने कहा कि वह अनुभव खतरनाक था. अस्पताल ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, सुविधाएं कम थीं, हमारी शिकायतें नहीं सुनी जा रही थीं.

उनकी मृत्यु के बाद, तारा की बेटी, अरुशी ने राशन और अन्य सुविधाओं में मदद के लिए कई कोविड-सहायता समूहों के लिए खुद ही काम करना शुरू कर दिया. उसने कहा कि मैंने महसूस किया कि हम जिस दौर से गुजरे हैं, दूसरों को उससे बचाना चाहिए.

तारा और अरुशी दोनों का कहना है कि उन्होंने कोविड की लहर के दौरान "सड़कों पर कहर" देखा. इसके बावजूद दोनों ही बीजेपी को सपोर्ट कर रही हैं.
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उन्होंने कहा कि हां, कोविड मैनेजमेंट खराब था लेकिन और भी बातें हैं. मैं बीजेपी की सरकार में सुरक्षित महसूस करती हूं. कानून और व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है, खासकर महिलाओं के लिए.

उन्होंने कहा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मैं बीजेपी सरकार में किसी भी आतंकवादी या बाहरी खतरे से सुरक्षित महसूस करती हूं.

21 साल की आरुषि बीजेपी को लेकर थोड़ी कम उत्साहित हैं, लेकिन फिर भी तारीफ करती हैं.

"मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा है कि बीजेपी सरकार के तहत, हमें सीधे हमारे खातों में पैसा मिलता है, बीच में कोई बिचौलिया नहीं है."
आरुषि
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‘जनता को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए'

कोरोना की लहरों और लॉकडाउन के वक्त कई लोगों ने गंभीर आर्थिक नुकसान का सामना किया. एक मार्केटिंग फर्म में काम करने वाली 42 वर्षीय महिला ममता सिंह को कई महीनों तक बिना वेतन के रहना पड़ा.

उन्होंने कहा कि हालात इतने बुरे हो गए थे कि मुझे किराना और राशन के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ी और यहां तक कि गैस सिलेंडर जैसी बुनियादी चीजों के लिए भी.

इसके बाद भी ममता सिंह बीजेपी को सपोर्ट करती हैं.

"जो कुछ भी हुआ उसके लिए मैं सरकार को दोष नहीं दे सकती. प्राइवेट कंपनियों को यह समझने की जरूरत है कि उन्हें ऐसे समय में वेतन नहीं काटना चाहिए या लोगों की नौकरियां नहीं छीननी चाहिए. हमें, जनता को एक दूसरे की मदद करनी चाहिए. कई शिकायतें सरकार तक नहीं पहुंचती हैं. बिचौलियों और गवर्नमेंट सब ऑर्डिनेट्स को दोषी ठहराया जाना चाहिए."
ममता सिंह

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