उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Elections 2022) के तीसरे फेज में कुल 59 सीटों पर मतदान हुए. इस फेज में सबसे बड़ी परीक्षा बीजेपी के लिए थी, क्योंकि इन 59 सीटों में ज्यादातर सीटें मुस्लिम-यादव बहुल थीं. तीसरे फेज में बुंदेलखंड की वो 13 सीटें भी थीं, जहां पिछले चुनावों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों के मुकाबले, इस बार बुंदेलखंड के पांचों जिलों में कम मतदान हुआ.
बुंदेलखंड के 5 जिलों झांसी, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा में 13 सीट है. 2017 के विधानसभा चुनावों में कुल 64% मतदान हुआ था. 2022 विधानसभा चुनाव में इन 13 सीटों पर 60% ही वोट पड़े.
बुंदेलखंड में कम मतदान के पीछे आखिर क्या कारण है? क्या इस बार बीजेपी क्लीन स्वीप करने में कामयाब रहेगी?
छुट्टा जानवरों से परेशान किसान
ज्यादातर महीनों सूखे की समस्या से जूझते बुंदेलखंड के किसानों के सामने अपनी फसल बचाने के अलावा एक और बड़ी चुनौती है. वो है छुट्टा जानवर. फसल बर्बाद करते आवारा पशुओं से बुंदेलखंड का किसान काफी परेशान है. इनकी समस्या खत्म करने के लिए प्रशासन और सरकार ने कुछ नहीं किया है.
हालत ये है कि अब किसान खुद ही इस समस्या का हल निकालने में लग गए हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जालौन जिले के उरई विधानसभा क्षेत्र में नरछा गांव में कुछ किसानों ने अपनी फसल की निगरानी करने के लिए एक परिवार को रखा है. वहीं, इस इलाके के मुस्लिमों का कहना है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में यादवों का गरीबों पर दबदबा था, लेकिन बीजेपी सरकार भी समाज में बराबरी नहीं ला पाई.
बीजेपी का वोट काटेंगे आवारा पशु?
बुंदेलखंड में आवारा पशुओं की समस्या का कोई हल न निकालना बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में इस समस्या पर कुछ नहीं कहा है, लेकिन विपक्ष इसे पूरा कैश कर रहा है. कांग्रेस ने कहा है कि किसानों की फसल खराब होने पर उसकी भरपाई की जाएगी और गोबर की खरीद के लिए एक योजना भी शुरू की जाएगी.
वहीं, समाजवादी पार्टी ने बुल एक्सीडेंट्स में मारे गए लोगों के लिए 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद का वादा किया है.
कर्ज, बेरोजगारी से जूझते किसान
बुंदेलखंड के किसान सिर्फ छुट्टा जानवरों से परेशान नहीं हैं. यहां के किसान बेरोजगारी, गरीबी और कर्ज के बोझ तले दबे हैं. बुंदेलखंड के सिर्फ तीन जिलों- महोबा, बांदा और चित्रकूट में पिछले डेढ़ सालों में 408 किसानों और प्रवासी मजदूरों की खुदकुशी से मौत हो गई. क्विंट ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में पाया कि इन हादसों के पीछे बेरोजगारी, जमीन न होना, खेती में भारी नुकसान और मनरेगा के तहत कोई काम और भुगतान नहीं होना बड़ा कारण था.
इन गांवों में रोजगार के अवसर नहीं हैं. मनरेगा के तहत कोई काम उपलब्ध नहीं है, और खेती में कमाई बेहद कम है.
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में 14 दिन में भुगतान का वादा कर पश्चिमी यूपी के गन्ना किसानों को तो खुश किया है, लेकिन बुंदेलखंड के किसानों की परेशानियों को बीजेपी ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी.
वहीं, समाजवादी पार्टी ने 4 साल के अंदर किसानों को कर्ज मुक्त करने का वादा किया है और कहा है कि इसके लिए ऋण मुक्ति कानून बनाया जाएगा. कांग्रेस ने भी किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया है.
बुंदेलखंड में फिर बीजेपी क्लीन स्वीप करेगी या इस बार बयार बदलेगी, इसका फैसला तो 10 मार्च को होगा. लेकिन कम मतदान से बुंदेलखंड के लोगों ने मौजूदा सरकार के प्रति अपनी निराशा जाहिर जरूर कर दी है.
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