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चुनाव से पहले 'मौर्या एंड कंपनी' का जाना BJP के लिए बुरी खबर, समझिए कितना नुकसान

स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी की राजनीति के 'मौसम विज्ञानी' कहे जा सकते हैं. तो क्या उन्होंने बदलती हवा को भांप लिया है?

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उत्तर प्रदेश चुनाव (Uttar Pradesh Election) से पहले बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. योगी आदित्यनाथ की सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो लिए.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपना इस्तीफा राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को भेजते हुए बीजेपी सरकार पर दलितों, पिछड़ों, किसानों, बेरोजगार नौजवानों और छोटे व्यापारियों को नजर अंदाज करने का आरोप लगाया है.

स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ बांदा की तिंदवारी विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक बृजेश कुमार प्रजापति ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया है.

क्विंट से बात करते हुए बृजेश कुमार प्रजापति ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने के बाद उन लोगों के लिए पार्टी में कुछ बचा नहीं है. बृजेश प्रजापति ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि पार्टी ने दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदायों के नेताओं को कोई तवज्जो नहीं दी है इसलिए पार्टी छोड़ रहे हैंं.

बता दें कि ठीक एक दिन पहले बदायूं जिले के बिल्सी से बीजेपी विधायक राधा कृष्ण शर्मा ने पार्टी को अलविदा कहा और अखिलेश यादव से मिलकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा बीजेपी के लिए खतरे की घंटी क्यों?

  • मौर्य यूपी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. कुशीनगर के पडरौना सीट से वो लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए थे. इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर और उसके आसपास के इलाकों में कई सीटों पर स्वामी प्रसाद मौर्य का अपना दबदबा है.

  • स्वामी प्रसाद मौर्य कुशवाहा समाज से आते हैं या कहें पिछड़ा वर्ग मतलब ओबीसी क्लास. वेस्ट यूपी में कुशवाहा समाज के लोग ज्यादातर अपने नाम में शाक्य लगाते हैं, वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश में मौर्य. उत्तर प्रदेश में इटावा, मैनपुरी, कन्नौज इलाके में यादवों के बाद ओबीसी में सबसे ज्यादा मौर्य समाज की आबादी है. माना जाता है कि पिछले चुनाव में बीजेपी ने गैर यादव ओबीसी वोट मैनेज कर ही बड़ी जीत दर्ज की थी. इस बार अखिलेश भी गैर यादव ओबीसी वोट के जुगाड़ में हैं

  • मौर्य यूपी की राजनीति के 'मौसम विज्ञानी' कहे जा सकते हैं. 2017 में पासा पलटता देख बीजेपी में आए थे. तो क्या अब उन्होंने हवा के बदलते रुख को भांप लिया है? अगर ऐसा नहीं है तो फिर क्या उन्हें ये पता है कि बीजेपी में उनकी स्थिति खराब होने वाली है. चूंकि मौर्य का इस्तीफा ऐसे दिन में आया जब दिल्ली में बीजेपी यूपी में टिकट बंटवारे पर चर्चा कर रही थी. जातीय समीकरण कहता है कि मौर्य के साथ बीजेपी नाइंसाफी नहीं करेगी तो फिर क्या वजह वही है कि यूपी की राजनीति नब्ज पर पकड़ रखने वाले मौर्य वक्त बदलता देख रहे हैं?

बीजेपी से पहले वो मायावती की बहुजन समाज पार्टी में थे, लेकिन साल 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में जब बीएसपी ने स्‍वामी प्रसाद मौर्य के परिवारवालों को टिकट देने से इनकार किया तो मौर्य नाराज हो गए और पार्टी छोड़ दी. जिसके बाद मौर्य बीजेपी में शामिल हो गए. 2017 में फिर चुनाव जीते और बीएसपी छोड़ बीजेपी में आने का फायदा भी मिला. योगी आदित्‍यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री बन स्‍वामी प्रसाद मौर्य ने करीब साढ़े चार साल मंत्री बने रहे.

स्वामी प्रसाद अकेले नहीं

बता दें कि स्वामी प्रसाद के साथ करीब आधा दर्जन बीजेपी विधायकों के पार्टी छोड़ने की बात सामने आ रही है.

जानकारी के मुताबिक कानपुर देहात से बीजेपी विधायक भगवती सागर और शाहजहांपुर के तिलहर से बीजेपी विधायक रोशन लाल वर्मा ने भी बीजेपी का साथ छोड़ दिया है और अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं. विधायक रोशन लाल स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंचे थे.

स्वामी प्रसाद को लेकर बीजेपी में हलचल

बीजेपी के लिए यह झटका इतना बड़ा है इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि खुद सूबे के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने के लिए ट्वीट किया है और उन्हें बैठकर बात करने की अपील की है.

उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए लिखा है,

"आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफा दिया है मैं नहीं जानता हूँ उनसे अपील है कि बैठकर बात करें जल्दबाजी में लिये हुये फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं"

अब स्वामी प्रसाद के अलावा कई और नेताओं का नाम सामने आ रहा है जो समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं.

ये नेता छोड़ सकते हैं बीजेपी

  • दारा सिंह चौहान (योगी सरकार में मंत्री)

  • ममतेश शाक्य

  • विनय शाक्य

  • नीरज मौर्य और

  • धर्मेंद्र शाक्य

योगी आदित्यनाथ से कड़वाहट

अभी हाल ही में एक न्यूज चैनल से बात करते हुए स्वामी प्रसाद और योगी आदित्यनाथ के बीच की दूरी सामने आई थी. स्वामी प्रसाद मौर्य से जब अगले चुनाव में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, "केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा कि साल 2022 में मुख्यमंत्री कौन होगा. वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हो सकते हैं और कोई नया चेहरा भी हो सकता है. विधायक दल की बैठक में भी मुख्यमंत्री के नाम की मुहर लग सकती है." मतलब साफ था कि स्वामी प्रसाद मौर्य योगी को सीएम उम्मीदवार आसानी से नहीं मानना चाहते थे.

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स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी बीजेपी की सांसद

जो बीजेपी परिवारवाद पर दूसरी पार्टियों पर हमला करती है उसने स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य को बदायूं से लोकसभा चुनाव में टिकट दिया था. संघमित्रा मौर्य ने बदायूं में समाजवादी पार्टी के लंबे समय से चले आ रहे वर्चस्व को तोड़ते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की और मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव को हराया था. फिलहाल संघमित्रा के पार्टी छोड़ने को लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है.

कुल मिलाकर चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद मौर्या का बीजेपी का इस तरह से जाना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत नहीं है. ये सिर्फ कुछ सीटों की बात नहीं है जहां मौर्या और उनके समर्थक विधायकों की चलती है. खुद को सर्वशक्तिमान बता रही पार्टी को बड़े नेता चुनाव ऐसे ऐन पहले छोड़ दें तो वोटर के मन में सवाल उठता है कि कहीं हाथी के दांत दिखाने के और , खाने के और वाला मामला तो नहीं?

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