उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (SP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के बीच गठबंधन लगभग तय माना जा रहा है. मंगलवार 23 नवंबर को दोनों दलों के प्रमुखों, SP अध्यक्ष अखिलेश यादव और RLD अध्यक्ष जयंत चौधरी की मुलाकात लखनऊ में हुई.
दोनों नेताओं ने बैठक समाप्त होने के तुरंत बाद की तस्वीरें पोस्ट कीं. जयंत चौधरी ने जहां तस्वीर का कैप्शन "बढ़ते कदम" दिया, वहीं अखिलेश यादव ने लिखा "श्री जयंत चौधरी के साथ, बदलाव की ओर".
संभावना जताई जा रही है कि जल्द ही दोनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे की घोषणा हो सकती है. सूत्रों के मुताबिक, उत्तरप्रदेश विधानसभा के आगामी चुनाव में 403 सीटों में से 30-36 सीटों पर आरएलडी (RLD) चुनाव लड़ सकती है. इनमें से कुछ सीटों पर SP उम्मीदवारों का मुकाबला RLD उम्मीदवारों से हो सकता है.
SP-RLD का यह गठबंधन कई मायनों में महत्वपूर्ण है.
उत्तरप्रदेश चुनाव में बढ़ता दो दलीय सिस्टम
यूपी चुनावों की बात करें तो पिछले तीन दशकों में यहां दो दलीय सिस्टम काफी हावी होते हुए दिखा है. यहां दो खेमों में ही तगड़ी चुनावी जंग देखने को मिली है. फिर चाहे वे दो पार्टी कोई भी क्यों न हो. ऐसे में SP-RLD गठबंधन दो दलीय सिस्टम में एक अहम कदम हो सकता है.
यदि यही प्रवृत्ति जारी रहती है तो BJP विरोधी वोटर, जिन्होंने पहले BSP, कांग्रेस, AIMIM, पीस पार्टी और अन्य दलों का समर्थन किया था, वही वोटर SP के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के लिए खुद को प्रेरित महसूस कर सकते हैं.
पिछले कुछ दशकों से उत्तर प्रदेश में शीर्ष दो दलों को लगभग 50-55 प्रतिशत वोट मिले हैं. ओपीनियन पोल की मानें तो यह संख्या संभवत: 70% से अधिक हो सकती है.
हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा होगा या नहीं. BJP के साथ वोट के अंतर को पाटने के लिए SP की मुख्य उम्मीद विपक्षी वोटों का एक बढ़ा हुआ एकीकरण है.
2. पश्चिम उत्तर प्रदेश और किसानों का विरोध प्रदर्शन (किसान आंदोलन)
RLD का सबसे ज्यादा प्रभाव पश्चिमी उत्तरप्रदेश में है. ओपीनियन पोल सर्वे के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही BJP के लिए सबसे बड़ी बाधा बन सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र में लोगों का BJP से गुस्से का मुख्य कारण कृषि कानून हैं.
भले ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि कानूनों को समाप्त कर दिया जाएगा, लेकिन यह देखा जाना बाकी है कि इससे यहां BJP को नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी या नहीं.
कृषि यूनियनों और वरुण गांधी व सत्यपाल मलिक जैसे BJP के आंतरिक आलोचकों ने पहले ही गोलपोस्ट को MSP गारंटी में बदल दिया है, जिससे यह मुद्दा फिर जिंदा हो गया है और इस पर बहस फिर से शुरू हो गई है.
चुनाव विशेषज्ञ और सी-वोटर के फाउंडर यशवंत देशमुख ने द क्विंट को बताया कि "कृषि कानून इस समस्या के केवल एक पहलू हैं. जाटों का मानना है कि वर्तमान सरकार द्वारा उनकी अनदेखी की जा रही है."
अगर यह केवल कृषि कानूनों के बारे में नहीं, बल्कि व्यापक राजनीतिक असंतोष के बारे में था तो यह संभव है कि जाटों के बीच भाजपा की रेटिंग में उल्लेखनीय सुधार न हो.
यूपी की एकमात्र जाट बहुल पार्टी RLD अब मुख्य विपक्षी SP से हाथ मिला रही है. ऐसे में जाटों के लिए यह स्पष्ट है कि कौन सा गठबंधन उन्हें सबसे अधिक महत्व देगा.
RLD की नींव और एक सामाजिक गठबंधन की संभावना
2013 के मुजफ्फरनगर की घटना (हिंसा) के बाद BJP के उदय के कारण जाटों के बीच RLD का समर्थन कम होता जा रहा था. हालांकि, जब से किसानों का विरोध शुरू हुआ है तबसे इसके हालात सुधरने लगे हैं.
जयंत चौधरी उन राजनेताओं में से एक हैं जो किसान आंदोलन के समर्थन में सबसे मुखर रहे हैं.
चौधरी के अनुसार RLD की कृषि राजनीति पश्चिम यूपी में भाजपा के उदय के साथ पैदा हुई सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की मारक (एंटीडॉट) है.
संभावना है कि चुनाव में इन 22 सीटों में से कई सीटें रालोद के कोटे में आ सकती हैं.
उत्तर प्रदेश में गठबंधन जाट, मुस्लिम और यादव मतदाताओं के बीच एक सामाजिक गठबंधन के फिर से सुधारने के द्वार खोलता है. हालांकि ऐसी कई सीटें नहीं हैं जहां जाट और यादव दोनों महत्वपूर्ण हैं, कुछ सीटों पर जाट + मुस्लिम और यादव + मुस्लिम गठबंधन शक्तिशाली हो सकता है और अन्य समुदायों से अधिक BJP विरोधी वोटों को आकर्षित करने के लिए आधार के रूप में काम कर सकता है.
यदि जाट और मुसलमान एक साथ आते हैं, तो यह अपने आप में एक बड़ी सफलता होगी, क्योंकि 2013 की मुजफ्फरनगर त्रासदी के बाद से दोनों पक्षों के बीच मतभेद हैं.
4. पारिवारिक और वैचारिक जुड़ाव
वैचारिक रूप से SP और RLD में काफी समानता है. कहा जाता है कि SP के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने चौधरी चरण सिंह से बहुत कुछ सीखा है. कभी चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह के गुरु व संरक्षक माने जाते थे. 1970 के दशक में चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए जाट और यादव जैसी मध्यवर्ती जातियों का गठबंधन बनाया था.
पश्चिम यूपी और दोआब क्षेत्र से आने वाले चरण सिंह और मुलायम सिंह यादव ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की कृषक जातियों को संगठित करने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया था.
अब अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी के सामने एक समान चुनौती पश्चिम यूपी और तेरा से लेकर मध्य और पूर्वी यूपी के साथ-साथ बुंदेलखंड तक किसान लामबंदी के लाभों को फैलाना होगी.
इंदिरा गांधी के धुर विरोधी चरण सिंह और मुलायम सिंह यादव की तरह ही अखिलेश यादव और जयंत चौधरी भी सत्ता पर एकाधिकार करने की चाहत रखने वाली शक्तिशाली हस्तियों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हैं.
दोनों नेता (अखिलेश और जयंत) मंगलवार को मिले और इस मुलाकात को सार्वजनिक भी किया. इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी विराम लगा दिया कि रालोद कांग्रेस के साथ समझौता कर सकता है या अकेले जा सकता है.
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