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मुजफ्फरनगर: एक बना गोबरघर, दूसरे पर ताला, 5 कॉलेजों पर नेताओं के धोखे की कहानी

Uttar Pradesh चुनाव से ठीक पहले कॉलेजों को खोलने का आया आदेश.

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"सरकार बोलती रही है कि मंदिर बनाओ, मस्जिद बनाओ, इन चीजों के लिए इनके पास बहुत पैसे हैं, लेकिन बच्चों की उन्नति के लिए उनके विकास के लिए बात होती है तो वहां सरकार चुप हो जाती है. चार साल से इस कॉलेज का कुछ नहीं हुआ, बिल्डिंग ऐसे ही बंद पड़ी हुई है." ये कहना है मुजफ्फरनगर के पुरबालियान के रहने वाले आलम चौधरी का. दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कई कॉलेज में न शिक्षक हैं, न बच्चे हैं, कहीं ताले लटके पड़े हैं तो कहीं सरकारी इंटर कॉलेज की बिल्डिंग खंडहर हो रही है. लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) में शिक्षा को लेकर चर्चा नहीं हो रही है.

क्विंट की टीम ऐसे ही कॉलेज की सच्चाई जानने के लिए मुजफ्फरनगर के कल्याणपुर, पुरबालयान, और जड़ौदा पहुंची.

बता दें कि साल 2018 में पुरबालयान, कल्याणपुर, कवाल, बहादुरपुड़ में चार सरकारी इंटर कॉलेज बनकर तैयार हुए थे, जहां चार साल बाद भी पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी है. इसके अलावा जड़ौदा में एक कॉलेज शिक्षा विभाग को अबतक हैंडओवर नहीं हुआ है. इसकी जिम्मेदारी फिलहाल अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के पास है.

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जडौदा का इंटर कॉलेज का कैंपस बना ‘गोबरघर’

क्विंट की टीम जब जड़ौदा पहुंची तो वहां कॉलेज के कैंपस में गाय औऱ भैंस के गोबर का ढ़ेर दिखा. सफेद रंग की दो मंजिला बिल्डिंग तैयार है लेकिन वीरान पड़ी है. जब हमने इसकी जानकारी लेनी चाहिए तो आसपास के लोगों ने बताया कि ये कॉलेज मल्टीसेक्टोरल डेवलपमेंट स्कीम के तहत बना था. लेकिन बीच में ही निर्माण का काम रुक गया.

बता दें कि मनमोहन सिंह की सरकार में मल्टीसेक्टोरल डेवलपमेंट स्कीम की शुरुआत हुई थी. जिसके तहत 25% अल्पसंख्यक आबादी वाले इलाके में कॉलेज खोले जाने थे. फिलहाल MsDP का नाम बदलकर प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम रखा गया है.

अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के अंतर्गत आने वाली इस बिल्डिंग के बारे में हमने जब पता चलाया तो हमारी बात अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ सहायक मोहम्मद साजिद से हुई. साजिद बतातें हैं,

‘जड़ौदा गांव में जो कॉलेज बन रहा है वो साल 2016 में सैंक्शन हुआ था. इसके निर्माण की कुल लागत थी दो करोड़ 55 लाख रुपए थी. पहली किस्त एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए बनाने वाली संस्था को दे दिया गया था. दूसरी किस्त नहीं मिली थी इसलिए इसका काम रुक गया था. इसी बीच इसके बनाने की लागत बढ़ने की वजह से इसका एस्टीमेट रिवाइज हुआ और अब इसका एस्टीमेट करीब तीन करोड़ 37 लाख 75 हजार रुपए जो अभी सैंक्शन होना बाकी है.’

हालांकि इसके अलावा भी चार और कॉलेज हैं जो बंद पड़े हुए हैं.

सरकारी स्कूल के लिए दी अपनी जमीन लेकिन हाथ लगी मायूसी

जब क्विंट की टीम मुजफ्फरनगर के पुरबालयान पहुंची तो हमारी मुलाकात शमीम चौधरी से हुई. शमीम चौधरी के पिता चौधरी शमशेर अहमद के नाम पर ही पुरबालयान का इंटर कॉलेज बना है. शमीम बताते हैं, "मेरे पिता ने ये जमीन गांव के बच्चों के भविष्य के लिए सरकार को दीन दी थी. लेकिन जिस मकसद से जमीन दी वो पूरा नहीं हुआ. हमारे पिता भी इससे काफी दुखी हुए. हमें सरकार से जमीन के लिए कोई पैसे नहीं चाहिए. हमारा मकसद बस यही कि बच्चे पढ़े लिखे और कामयाब बनें."

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चुनाव से ठीक पहले कॉलेज खोलने का आया आदेश

जब हमने कॉलेज के बंद पड़े होने की बात सरकारी अधिकारियों से की तो हमें बताया गया कि एक अप्रैल से कॉलेज खुल जाएंगे. मुजफ्फरनगर के डीआईओएस गजेंद्र कुमार बताते हैं कि एक कॉलेज को बनाने में चार करोड़ रुपए लगे हैं. गजेंद्र कहते हैं,

’चार विद्यालय ऐसे थे जिनका हैंडओवर हो गया था. लेकिन ताले लगे पड़े थे. अबतक इसकी वजह ये थी कि किसी भी नए विद्यालय में शासन की तरफ से पद सृजन नहीं होते हैं तबतक संचालन नहीं किया जा सकता. लेकिन आपकी खुशखबरी के लिए बता दें कि लगभग दो महीने पहले हमारे पास खबर आ गई है कि पद सृजन की इजाजत मिल गई है. अभी हमने एक-एक शिक्षक को विद्यालय की व्यवस्था ठीक करने के लिए लगा दिया है. एक अप्रैल 2022 से उन चारों विद्यालयों में कक्षाओं का संचालन शुरू कर देंगे.’

हालांकि मुजफ्फरनगर के लोगों को सरकार के फैसले पर शक है. समाजिक कार्यकर्ता आशु चौधरी कहते हैं कि चार साल का वक्त बीत गया लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया अब चुनाव से ठीक पहले कॉलेज खोलने की बात की जा रही है. हमें देखना है कि ये सच में होता है या नहीं. लेकिन हमें ये भी डर है कि ये कहीं बहकावा न हो.

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